गया: बिहार के गयाजी धाम में पिंडदानियों ने फल्गु स्थित देवघाट पर पितृ दिवाली मनाई. पितृ दिवाली में दीप जलाकर पिंडदानियों ने अपने पितरों के मोक्ष की कामना की. वहीं उनसे भरपूर आशीर्वाद भी मांगा. आश्विन कृष्ण त्रयोदशी के दिन पितृ दिवाली मनाने की पौराणिक परंपरा रही है. इस दौरान महिला-पुरुष पिंडादानियों ने ढोलक की धुन पर डांस भी किया. माना जाता है कि अपने वंशज जो की पिंडदान करने आए हैं, उन्हें प्रसन्न देखकर पितृ भी प्रसन्न हो जाते हैं और खूब आशीर्वाद देते हैं.
फल्गु तट पर ऐसे मनाई गई पितृ दिवाली: पितृ दिवाली को देखते हुए यहां प्रशासन के द्वारा काफी व्यवस्था की गई थी. वहीं काफी संख्या में पिंडदानियों की भीड़ पितृ दिवाली मनाने फल्गु तट के देवघाट पर उमड़ी है. इस दौरान चारों ओर और दीप ही दीप दिखाई दिए. कहीं पितरों के फोटो को रख उनके चारों ओर दीप जलाए गए. तो कहीं स्वास्तिक बनाकर पूजा अर्चना की गई. इस तरह पितृ दिवाली काफी धूमधाम से मनाई गई.
पितरों के मोक्ष की कामना: वहीं छत्तीसगढ़ के मदनपुर से आई सोनिया अग्रवाल ने बताया कि वह पितृ दिवाली मना रही है. पितरों की दिवाली पौराणिक काल से मनाई जाती रही है. घर में जितनी अच्छी तरह से दीपावली मनाते हैं, उससे भी अच्छे तरह से पितरों की दीपावली वो मनाते हैं. उनसे भरपूर आशीर्वाद मांगते हैं.
"नाच गान और ढोलक बजाकर पितरों के मोक्ष की कामना करते हैं. हम लोग सौभाग्य मानते हैं, कि हम लोगों को इस तरह पूर्वजों के लिए कुछ करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ. हमारे बच्चे भी ऐसा करें, यह हम लोग अपेक्षा रखते हैं."- सोनिया अग्रवाल, छत्तीसगढ़ की तीर्थ यात्री
पितरों का पर्व है पितृ दिवाली: इस संबंध में गयापाल पंडा गजाधर लाल कटरियार ने बताया कि पितरों का पर्व पितृ पक्ष मेला है. पितृ पक्ष मेला में जो त्रैपाक्षिक श्राद्ध करने आते हैं. वह पितृ पर्व के बीच पितृ दिवाली मनाते हैं. उन्हें एक सुनहरा अवसर पितृ दिवाली मनाने का प्राप्त होता है. पितरों के नाम से यह दीप जलाते हैं. पितृ दिवाली का महत्व पौराणिक काल से है. पितर के नाम पर दीपक जलाया जाता है. इससे प्राकृतिक भी शुद्ध होती है और पितर भी खुश हो जाते हैं और उन्हें मोक्ष की प्राप्ति हो जाती है.
पितृ दीपावली मनाने से मिलेगा ये फल: वहीं पितृ दिवाली मनाने से पितृ अपने वंशज को आशीर्वाद देते हैं, जिससे घर में सुख संपदा और शांति बनी रहती है. यह शास्त्रयुक्त परंपराएं गया जी में पौराणिक काल से है. पिंडदान करने आए तीर्थ यात्रियों ने पितरों के पर्व में आश्विन कृष्ण त्रयोदशी को पितृ उत्सव पितृ दिवाली उत्सव के रूप में मनाया. इसे पितरों के लिए उत्सव के नाम से भी जाना जाता है.
"सृष्टि की रचना के समय से ही पितृ पक्ष मेले में आश्विन कृष्ण त्रयोदशी को पितृ दीपावली मनाने की परंपरा है. इससे पितृ प्रसन्न होते हैं और स्वर्ग लोक उन्हें प्राप्त होता है. वहीं वो अपने वंशज को ढेर सारा आशीर्वाद देते हैं."-गजाधर लाल कटरियार, गयापाल पंडा
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