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प्रतिबंध बरकरार रखने का यूएपीए ट्रिब्यूनल का फैसला कानून सम्मत नहीं: पीएफआई - Popular Front of India

दिल्ली हाईकोर्ट में सुनवाई के दौरान पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया ने कहा कि उस पर लगे प्रतिबंध को बरकरार रखने का यूएपीए ट्रिब्यूनल का फैसला कानून सम्मत नहीं है. PFI ने कहा कि ट्रिब्यूनल ने उनकी दलीलों को ठीक तरीके से नहीं सुना और फैसला सुना दिया.

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पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (File Photo)
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By ETV Bharat Delhi Team

Published : Sep 11, 2024, 3:59 PM IST

नई दिल्ली: पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (PFI) ने दिल्ली हाईकोर्ट में कहा कि उस पर लगे प्रतिबंध को बरकरार रखने का यूएपीए ट्रिब्यूनल का फैसला कानून सम्मत नहीं है. PFI ने कहा कि यूएपीए ट्रिब्यूनल ने उनकी दलीलों को पूरे तरीके से नहीं सुना और फैसला सुना दिया. हाईकोर्ट ने इस मामले पर अगली सुनवाई 8 अक्टूबर को करने का आदेश दिया. PFI की ओर से पेश वकील अदीत एस पुजारी ने कहा कि यूएपीए ट्रिब्यूनल का फैसला कानूनी प्रावधनों के विपरीत है.

उन्होंने कहा कि हाईकोर्ट को विभिन्न प्राधिकारों की ओर से पेश साक्ष्यों की समीक्षा करनी चाहिए. सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार की ओर से पेश एएसजी चेतन शर्मा ने कहा कि यूएपीए के तहत कार्रवाई स्थापित कानूनी प्रावधानों के तहत की गई है और ट्रिब्यूनल के आदेश की समीक्षा की मांग करना आम बात हो गई है. बता दें, 21 अगस्त को सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार की ओर से पेश एएसजी चेतन शर्मा ने पीएफआई की याचिका में लिखे कुछ वाक्यों पर आपत्ति जताई थी.

याचिका में लिखा गया था कि PFI को प्रतिबंधित करने का नोटिफिकेशन कानून का दुरुपयोग है और वो गैरकानूनी और मानवाधिकारों के उल्लंघन वाला है. याचिका में लिखे इन वाक्यों पर चेतन शर्मा ने आपत्ति जताई थी. पीएफआई की ओर से पेश वकील अदीत एस पुजारी ने कहा था कि याचिका में लिखे गए ये वाक्य उन गवाहों के बयान पर आधारित है जो ट्रिब्यूनल के समक्ष पेश हुए थे.

प्रतिबंध के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिकाः PFI ने प्रतिबंध के खिलाफ पहले सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर किया था. सुप्रीम कोर्ट ने 6 नवंबर 2023 को याचिका पर सुनवाई करने से इनकार करते हुए हाईकोर्ट जाने को कहा था. पीएफआई ने यूएपीए ट्रिब्यूनल द्वारा उस पर लगे प्रतिबंध को बरकरार रखने को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की थी. दरअसल, PFI को केंद्र सरकार ने गैरकानूनी संगठन अधिनियम की धारा 3(1) में दिए गए अधिकार का इस्तेमाल करते हुए प्रतिबंधित करार दिया था. 21 मार्च को दिल्ली हाईकोर्ट के जज जस्टिस दिनेश शर्मा की अध्यक्षता वाली यूएपीए ट्रिब्युनल ने पीएफआई और उससे जुड़े दूसरे संगठनों पर प्रतिबंध लगाने के केंद्र सरकार के फैसले पर मुहर लगाई थी.

28 सितंबर 2022 को केंद्र सरकार ने PFI और उसके सहयोगी संगठनों को पांच सालों के लिए प्रतिबंधित कर दिया था. केंद्र सरकार ने यूएपीए की धारा 3(1) के अधिकारों के तहत ये प्रतिबंध लगाया था. केंद्र सरकार ने PFI के सहयोगी संगठनों, रिहैब इंडिया फाउंडेशन (आरआईएफ), कैंपस फ्रंट ऑफ इंडिया (सीएफआई), ऑल इंडिया इमाम्स काउंसिल (एआईसीसी), नेशनल कंफेडरेशन ऑफ ह्यूमन राईट्स आर्गनाइजेशन (एनसीएचआरओ) नेशनल वुमंस फ्रंट, जूनियर फ्रंट, एम्पावर इंडिया फाउंडेशन और रिहैब फाउंडेशन, केरल को भी प्रतिबंधित किया था.

ये भी पढ़ें: प्रतिबंधित संगठन पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया के चेयरमैन ओमा सलाम की अंतरिम जमानत याचिका खारिज

ये भी पढ़ें: बच्‍चों के सबसे बड़े सरकारी अस्‍पताल में म‍िली बम की कॉल, फौरन हरकत में आई दिल्ली पुलिस, जानें पूरा मामला

नई दिल्ली: पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (PFI) ने दिल्ली हाईकोर्ट में कहा कि उस पर लगे प्रतिबंध को बरकरार रखने का यूएपीए ट्रिब्यूनल का फैसला कानून सम्मत नहीं है. PFI ने कहा कि यूएपीए ट्रिब्यूनल ने उनकी दलीलों को पूरे तरीके से नहीं सुना और फैसला सुना दिया. हाईकोर्ट ने इस मामले पर अगली सुनवाई 8 अक्टूबर को करने का आदेश दिया. PFI की ओर से पेश वकील अदीत एस पुजारी ने कहा कि यूएपीए ट्रिब्यूनल का फैसला कानूनी प्रावधनों के विपरीत है.

उन्होंने कहा कि हाईकोर्ट को विभिन्न प्राधिकारों की ओर से पेश साक्ष्यों की समीक्षा करनी चाहिए. सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार की ओर से पेश एएसजी चेतन शर्मा ने कहा कि यूएपीए के तहत कार्रवाई स्थापित कानूनी प्रावधानों के तहत की गई है और ट्रिब्यूनल के आदेश की समीक्षा की मांग करना आम बात हो गई है. बता दें, 21 अगस्त को सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार की ओर से पेश एएसजी चेतन शर्मा ने पीएफआई की याचिका में लिखे कुछ वाक्यों पर आपत्ति जताई थी.

याचिका में लिखा गया था कि PFI को प्रतिबंधित करने का नोटिफिकेशन कानून का दुरुपयोग है और वो गैरकानूनी और मानवाधिकारों के उल्लंघन वाला है. याचिका में लिखे इन वाक्यों पर चेतन शर्मा ने आपत्ति जताई थी. पीएफआई की ओर से पेश वकील अदीत एस पुजारी ने कहा था कि याचिका में लिखे गए ये वाक्य उन गवाहों के बयान पर आधारित है जो ट्रिब्यूनल के समक्ष पेश हुए थे.

प्रतिबंध के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिकाः PFI ने प्रतिबंध के खिलाफ पहले सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर किया था. सुप्रीम कोर्ट ने 6 नवंबर 2023 को याचिका पर सुनवाई करने से इनकार करते हुए हाईकोर्ट जाने को कहा था. पीएफआई ने यूएपीए ट्रिब्यूनल द्वारा उस पर लगे प्रतिबंध को बरकरार रखने को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की थी. दरअसल, PFI को केंद्र सरकार ने गैरकानूनी संगठन अधिनियम की धारा 3(1) में दिए गए अधिकार का इस्तेमाल करते हुए प्रतिबंधित करार दिया था. 21 मार्च को दिल्ली हाईकोर्ट के जज जस्टिस दिनेश शर्मा की अध्यक्षता वाली यूएपीए ट्रिब्युनल ने पीएफआई और उससे जुड़े दूसरे संगठनों पर प्रतिबंध लगाने के केंद्र सरकार के फैसले पर मुहर लगाई थी.

28 सितंबर 2022 को केंद्र सरकार ने PFI और उसके सहयोगी संगठनों को पांच सालों के लिए प्रतिबंधित कर दिया था. केंद्र सरकार ने यूएपीए की धारा 3(1) के अधिकारों के तहत ये प्रतिबंध लगाया था. केंद्र सरकार ने PFI के सहयोगी संगठनों, रिहैब इंडिया फाउंडेशन (आरआईएफ), कैंपस फ्रंट ऑफ इंडिया (सीएफआई), ऑल इंडिया इमाम्स काउंसिल (एआईसीसी), नेशनल कंफेडरेशन ऑफ ह्यूमन राईट्स आर्गनाइजेशन (एनसीएचआरओ) नेशनल वुमंस फ्रंट, जूनियर फ्रंट, एम्पावर इंडिया फाउंडेशन और रिहैब फाउंडेशन, केरल को भी प्रतिबंधित किया था.

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