लखनऊ : बीते गुरुवार को राजधानी के आशियाना इलाके में आबकारी विभाग ने 13 हजार लीटर पेट्रोलियम पदार्थ और 3600 लीटर स्प्रिट बरामद की. जांच में सामने आया कि, आरोपी जुगाड़ से टैंकर का डिजिटल लॉक खोलकर उससे डीजल निकाल रहे थे. अफसरों को शक था कि टैंकर से पेट्रोलियम पदार्थ निकालकर उसमें स्प्रिट मिलाया जा रहा था. इसके बाद इसे पेट्रोल पंप पर जाकर बेचा जा रहा था. ये गैंग लखनऊ समेत आसपास के जिलों में सक्रिय था. लिहाजा इस बात से नकारा नहीं जा सकता है कि पेट्रोल पंपों पर अनजाने में लोगों को मिलावटी पेट्रोल और डीजल बेचा जा रहा है. ऐसे में पैट्रोलियम पदार्थ की गुणवत्ता को परखना बेहद जरूरी हो जाता है. आइए जानते हैं इसके तरीकों के बारे में...
जिला पूर्ति अधिकारी विजय प्रताप सिंह बताते है कि, वैसे तो बीते कुछ वर्षों में अब तक मिलावटी पेट्रोलियम पदार्थ बेचे जाने की शिकायत नहीं मिली है. आशियाना इलाके में लाख सुरक्षा व्यवस्था के बाद भी डीजल चोरी करने और स्प्रिट की बरामदगी के बाद शक गहराता है कि हो सकता है कि पेट्रोल पंप कंपनियों की बिना जानकारी में मिलावटी पेट्रोल-डीजल बेचा जा रहा हो. ऐसे में आदमी का अधिकार है कि वह पेट्रोल या डीजल की जांच खुद से कर सकता है.
अपनाना होगा यह तरीका : जिला पूर्ति अधिकारी के मुताबिक, हर पेट्रोल पंप पर एक पेपर मौजूद रहता है. इसे लिटमस पेपर कहते हैं. यह एक गोल आकार का कागज होता है. यदि उपभोक्ता चाहता है कि जिस पेट्रोल को वह ले रहा है उसकी गुणवत्ता को परखा जाए तो वह पेट्रोल पंप में मौजूद कर्मचारी से लिटमस पेपर मांग सकता है. इसके बाद लिटमस पेपर में पेट्रोल की कुछ बूंदें डालनी हैं. थोड़ी देर में वह कागज पहली की ही तरह सफेद हो जाएगा और पेट्रोल उड़ जाएगा. ऐसे में यदि कागज दोबारा वैसा ही सफेद हो जाता है तो समझिए लिया गया पेट्रोल शुद्ध है. इस प्रक्रिया में कुल 2 मिनट का ही समय लगता है.
अधिकारी के मुताबिक, यदि लिटमस पेपर में आपके द्वारा डाला गया पेट्रोल काफी देर तक कागज में चिपका रहता है और कागज में दाग भी रहता है तो समझिए वह पेट्रोल मिलावटी है. इसकी शिकायत आप तत्काल जिला पूर्ति कार्यालय या फिर संबंधित कंपनी में भीकर सकते हैं.
कैसे हो रहा खेल ? : दरअसल, गुरुवार को जो टैंकर आशियाना इलाके से बरामद किया गया वह सीतापुर के बिसवा में जाने वाला था. टैंकर में जीपीएस ट्रैकर लगा होता है , जिसे कंपनी और संबंधित पेट्रोल पंप नजर रखते हैं. उसके बाद भी यह टैंकर बिसवा जाने के बजाय उल्टी दिशा आशियाना में पहुंच गया. इतना ही नहीं टैंकर का डिजिटल लॉक खोलने के लिए एक ओटीपी की जरूरत पड़ती है जो पेट्रोल पंप के पास आता है. बावजूद इसके बिना ओटीपी के ही टैंकर का डिजिटल लॉक भी खुल गया. जब आबकारी, पुलिस और जिला पूर्ति की टीम छापेमारी करने पहुंची तो टैंकर में करीब 12000 लीटर डीजल था. इतना ही नहीं 3600 लीटर आरोपियों के पास स्प्रिट मौजूद था. टैंकर से डीजल निकालने के बाद स्प्रिट भरा जाना था.
स्प्रिट की क्या है भूमिका : अब सवाल उठता है कि आखिर स्प्रिट ही क्यों टैंकर में आरोपी मिलाने वाले थे. असल में मौजूदा समय डीजल 87 रुपए है जबकि स्प्रिट महज 50 रुपए प्रति लीटर मिलता है. आरोपी 12 हजार से लेकर 20 हजार लीटर तक के टैंकर से सिर्फ दो हजार लीटर डीजल निकाल कर उतना ही स्प्रिट मिला देते हैं तो प्रति टैंकर से 75 हजार तक की अवैध कमाई कर सकते हैं. इतना ही नहीं टैंकर से जितना डीजल निकाला जाता है उसमें भी स्प्रिट मिलाकर उसे ब्लैक में बेच दिया जाता है, उससे भी आरोपियों की कमाई होती है. आमतौर पर लोग सिर्फ मात्रा पर ध्यान देते है लेकिन उसकी गुणवत्ता की जांच नही की जाती है. ऐसे में ये आरोपी अपना खेल जारी रखते हैं.
आरोपियों को कैसे मिला स्प्रिट ? :जिला आबकारी अधिकारी राकेश सिंह ने बताया कि, आरोपियों के पास से जो स्प्रिट बरामद हुआ है, ऐसा नहीं है कि उसे कोई भी खरीद सकता है. इसके लिए भी लाइसेंस होना चाहिए ऐसे में जांच इस बात की भी हो रही है कि इन्हे स्प्रिट की सप्लाई कहां से हो रही है. उन्होंने बताया कि ये गैंग कानपुर, लखनऊ, सीतापुर, उन्नाव, बाराबंकी समेत कई जिलों में एक्टिव है. ऐसे में अब वृहद तरीके से जांच की जा रही है जिससे इस पूरे नेक्सस का भंडाफोड़ किया जा सके.