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बिलासपुर स्थानीय नगर निगम के परिसीमन के लिए जारी अधिसूचना के खिलाफ भी हाईकोर्ट में याचिका - notification for delimitation

नगर निगम के परिसीमन के लिए जारी अधिसूचना के खिलाफ भी हाईकोर्ट में याचिका दायर की गई है. दायर याचिका में कहा गया है कि आपत्तियों निपटारा किए बिना अधिसूचना जारी कर दी गई. याचिका में कहा गया है कि इसके साथ और भी अनियमितताएं बरती गई हैं. याचिका में कहा गया है कि परिसीमन रद्द कर पूर्व प्रक्रिया अनुसार निगम चुनाव कराए जाएं.

notification issued for delimitation
हाईकोर्ट में याचिका (ETV Bharat)
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By ETV Bharat Chhattisgarh Team

Published : Aug 3, 2024, 10:55 PM IST

बिलासपुर: स्थानीय नगर निगम के परिसीमन के लिए जारी अधिसूचना के खिलाफ भी हाईकोर्ट में याचिका दायर हो गई है. याचिका में बताया गया है कि ''आपत्तियों का निराकरण किए बिना अधिसूचना जारी की गई. याचिका में ये भी कहा गया है कि शासन द्वारा पूरे प्रदेश में परिसीमन के लिए दिशा निर्देश जून में ही दे दिए गए. बिलासपुर में कांग्रेस कमेटी द्वारा इसका विरोध किया गया. कहा गया कि बिना जरूरत के परिसीमन करना ठीक नहीं था. इसके बाद भी शासन ने हड़बड़ी में और सत्ता का दुरुपयोग करते हुए दावा आपत्तियों को दरकिनार कर अधिसूचना जारी कर दी गई.''

अधिसूचना के खिलाफ भी हाईकोर्ट में याचिका: याचिका में अधिसूचना पर रोक और पूर्व के परिसीमन के आधार पर ही आगामी निगम चुनाव करवाने की मांग की गई है. दरअसल पूर्व कांग्रेसी विधायक शैलेश पांडेय और कांग्रेस के चार ब्लॉक अध्यक्ष विनोद साहू, मोती थारवानी, जावेद मेमन, अरविंद शुक्ला ने हाईकोर्ट में याचिका लगाई गई है. अपनी याचिका में कहा है कि ''इससे बिलासपुर शहर की पांच लाख जनता को परेशानी का सामना करना पड़ेगा और उनके पते बदल जाएंगे. राशन कार्ड, पासपोर्ट, आधार कार्ड और अन्य आवश्यक दस्तावेज को बदलने की जरूरत पड़ेगी. यह परिसीमन बिना किसी जरूरत के किया जा रहा है.''

हाईकोर्ट ने पूछा है: परिसीमन के खिलाफ दायर याचिका पर हाईकोर्ट ने शासन से पूछा है कि ''परिसीमन का आखिर आधार क्या है''. राज्य शासन का कहना है कि ''जिन स्लम बस्तियों को विस्थापित किया गया है और वहां के निवासियों को अलग-अलग वार्डों में शिफ्ट किया गया है, यह परिसीमन उनके लिए किया जा रहा है. इसमें वर्ष 2011 की जनगणना को आधार नहीं बनाया गया है''. जबकि अपने सर्कुलर में पहले राज्य शासन ने जनगणना को आधार माना. शासन के जवाब के बाद जब कोर्ट ने पूछा कि ''क्या केवल उन्हीं वार्डों का परिसीमन किया गया है जहां स्लम बस्ती के लोग रह रहे हैं''. निगम की ओर से कहा गया है कि ''शहर की 13 स्लम बस्तियों को आइएचएसडीपी और प्रधानमंत्री आवास योजना, बाम्बे आवास योजना के तहत बने मकानों में शिफ्ट किया गया है. जिनकी संख्या लगभग दो हजार 617 है''.

'तीसरे परिसीमन की जरुरत क्यों पड़ी': राज्य सरकार ने प्रदेशभर के निकायों के वार्ड परिसीमन के लिए जो आदेश जारी किया उसमें वर्ष 2011 के जनगणना को आधार माना. इसी आधार पर परिसीमन का कार्य करने को कहा गया है. याचिकाकर्ताओं का कहना है कि ''वार्ड परिसीमन के लिए बनाए गए नियमों के अनुसार अंतिम जनगणना को आधार माना गया''. राज्य सरकार ने अपने सर्कुलर में भी परिसीमन के लिए अंतिम जनगणना को आधार माना. सरकार ने इसके पहले वर्ष 2014, 2019 में भी वर्ष 2011 की जनगणना के आधार पर परिसीमन का कार्य किया है. जब आधार एक ही है तो इस बार क्यों परिसीमन का कार्य किया जा रहा है. याचिका के अनुसार वर्ष 2011 के बाद जनगणना हुई नहीं है तो फिर उसी जनगणना को आधार मानकर तीसरा परिसीमन कराने की आवश्यकता क्यों पड़ रही है''.

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बिलासपुर: स्थानीय नगर निगम के परिसीमन के लिए जारी अधिसूचना के खिलाफ भी हाईकोर्ट में याचिका दायर हो गई है. याचिका में बताया गया है कि ''आपत्तियों का निराकरण किए बिना अधिसूचना जारी की गई. याचिका में ये भी कहा गया है कि शासन द्वारा पूरे प्रदेश में परिसीमन के लिए दिशा निर्देश जून में ही दे दिए गए. बिलासपुर में कांग्रेस कमेटी द्वारा इसका विरोध किया गया. कहा गया कि बिना जरूरत के परिसीमन करना ठीक नहीं था. इसके बाद भी शासन ने हड़बड़ी में और सत्ता का दुरुपयोग करते हुए दावा आपत्तियों को दरकिनार कर अधिसूचना जारी कर दी गई.''

अधिसूचना के खिलाफ भी हाईकोर्ट में याचिका: याचिका में अधिसूचना पर रोक और पूर्व के परिसीमन के आधार पर ही आगामी निगम चुनाव करवाने की मांग की गई है. दरअसल पूर्व कांग्रेसी विधायक शैलेश पांडेय और कांग्रेस के चार ब्लॉक अध्यक्ष विनोद साहू, मोती थारवानी, जावेद मेमन, अरविंद शुक्ला ने हाईकोर्ट में याचिका लगाई गई है. अपनी याचिका में कहा है कि ''इससे बिलासपुर शहर की पांच लाख जनता को परेशानी का सामना करना पड़ेगा और उनके पते बदल जाएंगे. राशन कार्ड, पासपोर्ट, आधार कार्ड और अन्य आवश्यक दस्तावेज को बदलने की जरूरत पड़ेगी. यह परिसीमन बिना किसी जरूरत के किया जा रहा है.''

हाईकोर्ट ने पूछा है: परिसीमन के खिलाफ दायर याचिका पर हाईकोर्ट ने शासन से पूछा है कि ''परिसीमन का आखिर आधार क्या है''. राज्य शासन का कहना है कि ''जिन स्लम बस्तियों को विस्थापित किया गया है और वहां के निवासियों को अलग-अलग वार्डों में शिफ्ट किया गया है, यह परिसीमन उनके लिए किया जा रहा है. इसमें वर्ष 2011 की जनगणना को आधार नहीं बनाया गया है''. जबकि अपने सर्कुलर में पहले राज्य शासन ने जनगणना को आधार माना. शासन के जवाब के बाद जब कोर्ट ने पूछा कि ''क्या केवल उन्हीं वार्डों का परिसीमन किया गया है जहां स्लम बस्ती के लोग रह रहे हैं''. निगम की ओर से कहा गया है कि ''शहर की 13 स्लम बस्तियों को आइएचएसडीपी और प्रधानमंत्री आवास योजना, बाम्बे आवास योजना के तहत बने मकानों में शिफ्ट किया गया है. जिनकी संख्या लगभग दो हजार 617 है''.

'तीसरे परिसीमन की जरुरत क्यों पड़ी': राज्य सरकार ने प्रदेशभर के निकायों के वार्ड परिसीमन के लिए जो आदेश जारी किया उसमें वर्ष 2011 के जनगणना को आधार माना. इसी आधार पर परिसीमन का कार्य करने को कहा गया है. याचिकाकर्ताओं का कहना है कि ''वार्ड परिसीमन के लिए बनाए गए नियमों के अनुसार अंतिम जनगणना को आधार माना गया''. राज्य सरकार ने अपने सर्कुलर में भी परिसीमन के लिए अंतिम जनगणना को आधार माना. सरकार ने इसके पहले वर्ष 2014, 2019 में भी वर्ष 2011 की जनगणना के आधार पर परिसीमन का कार्य किया है. जब आधार एक ही है तो इस बार क्यों परिसीमन का कार्य किया जा रहा है. याचिका के अनुसार वर्ष 2011 के बाद जनगणना हुई नहीं है तो फिर उसी जनगणना को आधार मानकर तीसरा परिसीमन कराने की आवश्यकता क्यों पड़ रही है''.

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