नई दिल्लीः दिल्ली हाईकोर्ट ने मौलाना आजाद एजुकेशन फाउंडेशन को बंद करने के सेंट्रल वक्फ काउंसिल के प्रस्ताव को चुनौती देनेवाली याचिका खारिज कर दी. मंगलवार को मामले की सुनवाई करते हुए कार्यकारी चीफ जस्टिस मनमोहन की अध्यक्षता वाली बेंच ने यह फैसला सुनाया. कोर्ट ने कहा कि मौलाना आजाद एजुकेशन फाउंडेशन को बंद करने का फैसला इसके जनरल बॉडी की बैठक में लिया गया था, जो इसके नियमों के मुताबिक सही था.
कोर्ट ने कहा कि अल्पसंख्यक मामलों का मंत्रालय अल्पसंख्यक समुदाय के शैक्षिक और व्यावसायिक जरूरतों के हित में काम करता है. ऐसे में याचिकाकर्ता का ये कहना गलत है कि मंत्रालय की ओर से किया गया कार्य मौलाना आजाद एजुकेशन फाउंडेशन की तरह नहीं है. इससे पहले हाईकोर्ट ने 13 मार्च को फैसला सुरक्षित रख लिया था.
तब सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार ने मौलाना आजाद एजुकेशन फाउंडेशन को बंद करने के फैसले का बचाव करते हुए कहा था कि इस फाउंडेशन की स्थापना तब हुई थी जब अल्पसंख्यक मामलों का मंत्रालय नहीं था. जब अल्पसंख्यकों के विकास के लिए सरकार काम कर रही है तो ये काम किसी और को नहीं दिया जा सकता है.
यह भी पढ़ेंः दिल्ली पुलिस को न्यूजक्लिक मामले में UAPA के तहत केस चलाने की अनुमति मिली
केंद्र सरकार की ओर से एएसजी चेतन शर्मा ने कहा था कि फिलहाल अल्पसंख्यकों के विकास के लिए एक विशेष मंत्रालय है. पर्याप्त स्टाफ हैं. ये मंत्रालय अल्पसंख्यकों की जरूरतों के मुताबिक काम करता है. ऐसे में अल्पसंख्यकों के विकास का काम किसी संस्था विशेष को देने के पुराने ढर्रे पर नहीं किया जा सकता है. याचिका डॉ. सईदा सैयदेन हमीद, डॉ जॉन दयाल और दया सिंह ने दायर किया था.
याचिका में क्या कहा गया थाः याचिका में कहा गया था कि मौलाना आजाद एजुकेशन फाउंडेशन की फंडिंग केंद्र सरकार करती है और इसका लक्ष्य मुस्लिम समुदाय के वंचित तबके को शिक्षा मुहैया कराना है. फाउंडेशन को बंद करने से मुस्लिम समुदाय के गरीब, जरूरतमंद और मेधावी खासकर छात्राओं का काफी नुकसान होगा. फाउंडेशन को बंद करने का प्रस्ताव देना सेंट्रल वक्फ काउंसिल के अधिकार क्षेत्र में नहीं आता है, क्योंकि ये फाउंडेशन सोसायटी रजिस्ट्रेशन एक्ट के तहत रजिस्टर्ड है.
यह भी पढ़ेंः UPSC में जामिया के 31 स्टूडेंट्स सेलेक्ट, नौशीन ने हासिल की 9वीं रैंक