मंदसौर: अफीम से देश में कई तरह की जीवनरक्षक दवाइयों का निर्माण होता है. मध्य प्रदेश के मालवा और राजस्थान के मेवाड़ और हाड़ोती इलाकों उगाई जाने वाली इस फसल इन दिनों खूब पैदावार हो रही है. हालांकि नारकोटिक्स विभाग की कड़ी निगरानी में पैदा की जाने वाली इस फसल से निकलने वाले पदार्थ को शासन को ही सौंपना होता है.
मालवा, मेवाड़ और हाड़ोती क्षेत्र में बनाई जाती है अफीम की सब्जी
लेकिन क्या आप जानते हैं कि अफीम की फसल की शुरुआती अवस्था में इसके पौधों का उपयोग सब्जी के तौर पर भी होता है. जी हां, मालवा, मेवाड़ और हाड़ोती में अफीम के पौधे की शुरुआती चरण में उसकी सब्जी बनाई जाती है. यहां के लोगों का कहना है कि साल में एक या दो बार इसकी सब्जी खा लेने से पूरे साल शरीर में गर्मी की तासीर बनी रहती है. आइए आपको बताते हैं कि मालवा में कब और कैसे बनाई और खाई जाती है अफीम की ये सब्जी.
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बता दें कि ड्राई फ्रूट्स के राजा खसखस के दानों को ही अफीम का बीज कहा जाता है. इसी बीज से मालवा, मेवाड़ और हाड़ोती के किसान अफीम की फसल उगाते हैं. दरअसल सितंबर और अक्टूबर माह में केंद्रीय नारकोटिक्स विभाग नियमानुसार अफीम और उसके डोडा चूरा को शासन को सौंपने वाले किसानों को लाइसेंस जारी करता है.
नवंबर महीने में किया जाता है अफीम के बीज का छिड़काव
नारकोटिक्स विभाग समय-समय पर एक निश्चित एरिया मे उगने वाली फसल की निगरानी भी करता है. नवंबर महीने में इस फसल के बीज का छिड़काव किया जाता है. दिसंबर के आखिरी और जनवरी के पहले दूसरे सप्ताह यानी करीब 65 से 90 दिन के बीच वाली इस फसल के छोटे-छोटे पौधों की मालवा, मेवाड़ और हाड़ोती क्षेत्र में सब्जी बनाई जाती है. मेथी और पालक की तरह इन इलाकों में अफीम के इन छोटे पौधों को खाने का चलन है.
स्थानीय लोग के अनुसार कड़ाके की सर्दी शरीर को गर्म रखती है अफीम की सब्जी
चूंकि यह फसल की शुरुआती अवस्था होती है, इसलिए उसके पौधों में किसी भी प्रकार का नशीला या कड़वा पदार्थ बनाना नहीं शुरू होता है. लेकिन इसके पौधों के पत्तों की सब्जी की तासीर शारीर को गर्म रखने वाली होती है. लिहाजा कड़ाके की सर्दी में इलाके के किसान और अन्य लोग इसकी सब्जी सेहत की पुष्टि के लिए खाते हैं. इस अवस्था में किसान खेत में पौधों की छंटाई भी करते हैं.
खेत मे खड़े अतिरिक्त पौधों को बाहर निकाल कर नियत दूरी पर ही पौधे को क्रम से लगाया जाता है. इस दौरान जो अतिरिक्त पौधे खेत में से उखाड़कर बाहर निकल जाते हैं, उनकी सब्जी बनाई जाती है. इस अवस्था में पौधों की जड़ों और खराब पत्तों को साफ कर लिया जाता है. इसके बाद इसको चाकू से काटकर गर्म पानी में दो से तीन बार डुबोया जाता है जिससे कि यदि किसी पत्ते पर कीट, मच्छर या रासायनिक दवाओं का प्रभाव हो तो उसको साफ किया जा सके. इसके बाद इसके पत्तों को हल्का सा उबाल कर उसमें प्याज, लहसुन और हरे मटर या हरे चने के साथ भूनकर सब्जी तैयार की जाती है.
मटर, हरे चने और मसाले के कांबिनेशन वाली इस सब्जी के मुरीद हैं इलाके के लोग
मालवा इलाके की एक गृहिणी सरोज कुमारी ने बताया "हमारे यहां परंपरागत तरीके से इसकी सब्जी बनाई और खाई जाती है. खाने में यह सब्जी काफी स्वादिष्ट लगती है. मटर, हरे चने और मसाले के कांबिनेशन वाली यह सब्जी इस इलाके की लाजवाब सब्जियों में गिनी जाती है. लोग साल में इसका एक या दो बार ही इसका सेवन करते हैं. इस सब्जी को कड़ाके की सर्दी से लड़ने कारगर समझा जाता है."
वहीं कृषि विज्ञान केंद्र के अधिकारी जीएस चुंडावत ने कहा "यह बात सच है कि समूचे इलाके में अफीम के पौधों की सब्जी बनाई और खाई जाती है." उन्होंने इस फसल को रासायनिक दवाओं के छिड़काव से पहले और 90 दिन की अवस्था में ही उसके पत्तों की सब्जी बनाकर खाने की सलाह दी है.