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'बिना अवमानना याचिका के आदेशों को लागू नहीं किया जा रहा है..' पटना हाईकोर्ट की सरकारी अफसरों को फटकार - Patna High Court

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By ETV Bharat Bihar Team

Published : Sep 2, 2024, 4:35 PM IST

Patna High Court contempt petition : पटना हाईकोर्ट ने अदालती आदशों का अनुपालन नहीं करने के मामले पर सरकारी अधिकारियों को फटकार लगाई है. अवमानना वाद पर सुनवाई करते हुए पटना हाईकोर्ट तीखी टिप्पणी की और कहा कि अवमानना याचिका के बिना इस आदेश के आदेशों को लागू नहीं किया जा रहा है. पढ़ें पूरी खबर-

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पटना हाईकोर्ट (Etv Bharat)

पटना : बिहार की पटना हाईकोर्ट ने अदालती आदेशों का अनुपालन न करने के लिए सरकारी अधिकारियों के रवैये की कड़ी आलोचना की है. नतीजतन हजारों अवमानना ​​​​याचिकाएं दायर की गईं. मुख्य न्यायाधीश पवनकुमार भीमप्पा बजंथरी व आलोक कुमार पाण्डेय की खंडपीठ ने याचिकाकर्ता संजय कुमार द्वारा दायर अवमानना वाद की सुनवाई करते हुए सरकारी अधिकारियों के रवैये पर कड़ी फटकार लगायी है.

अवमानना याचिका दायर : कोर्ट ने कहा कि कई मामलों में अवमानना ​​याचिका दायर किए बिना कोर्ट के आदेशों का पालन नहीं हो पा रहा है. कोर्ट ने कहा कि हमने कई मामलों में देखा है कि अवमानना ​​याचिका के बिना इस अदालत के आदेशों को लागू नहीं किया जा रहा है. विचाराधीन मामले में एक आरा मिल से संबंधित एक याचिका शामिल था, जहां दी गई समय सीमा के लगभग दो साल बाद भी अदालत के आदेश का अनुपालन नहीं किया गया था.

पटना हाईकोर्ट इसे लेकर गंभीर : इस तरह अदालती आदेशों का पालन सरकारी अधिकारियों के आदत को गंभीरता से लेते हुए, अदालत ने पहले प्रधान मुख्य वन संरक्षक एन जवाहर बाबू अदालत की अवमानना ​​​​की कार्यवाही शुरू करने या जुर्माना लगाने के संबंध में स्पष्टीकरण देने के लिए बुलाया था. अधिकारी का स्पष्टीकरण सुनने के बाद, अदालत ने टिप्पणी की कि तलब किए जाने के बाद ही अधिकारियों ने इस मामले पर कार्रवाई की.

कोर्ट में दी गई दलील : पर्यावरण, जलवायु परिवर्तन और वन विभाग ने कोर्ट को बताया कि याचिकाकर्ता की शिकायत को संबोधित करने में कुछ प्रशासनिक कठिनाइयां थीं, जिसके कारण और विलम्ब हुआ. आदेश का अनुपालन नहीं किया जाने पर विचार करते हुए, कोर्ट ने निर्देश दिया कि याचिकाकर्ता को तीन हजार रुपये का भुगतान करने का निर्देश दिया.

कोर्ट ने जताई चिंता : कोर्ट ने अपने आदेशों का बार-बार अनुपालन न होने पर भी अपनी चिंता जताते हुए कहा कि यह अपवाद के बजाय एक नियम बन गया है कि, एक वादी एक संवैधानिक कोर्ट से आदेश प्राप्त करने के बाद, आदेश के असर के बारे में निश्चित नहीं होता है कि वास्तविक रूप में राहत मिलेगा या नहीं. कोर्ट ने इस पर निराशा व्यक्त की कि प्रत्येक वादी को विभिन्न परिस्थितियों में एक ही कारण से बार-बार अदालत का दरवाजा खटखटाने के लिए मजबूर किया जाता है.

असंवेदनशील रवैये की आलोचना : कोर्ट ने कुछ अधिकारियों के असंवेदनशील रवैये की आलोचना की, जिसने अवमानना ​​की गंभीर संवैधानिक शक्ति को कम कर दिया था. अदालत ने कहा कि बार-बार की टिप्पणियों के बावजूद सरकारी अधिकारियों ने कोर्ट के आदेशों को लागू करने के प्रति अपने दृष्टिकोण में सुधार नहीं किया है. कोर्ट ने कहा कि हजारों की संख्या में अवमानना ​​याचिकाएं दायर की जाती हैं. उन्होंने कहा कि ज्यादातर मामलों में, रिट या अपील की अनुमति दिए जाने के बाद, राज्य के या विश्वविद्यालय के अधिकारियों ने अवमानना ​​याचिका दायर होने तक हाईकोर्ट के समक्ष आगे मुकदमेबाजी नहीं की.

अफसरों के रवैये से हाईकोर्ट नाराज : कोर्ट ने टिप्पणी की कि अवमानना ​​​​की याचिका दायर होने तक वे सचेत नहीं होते हैं. कोर्ट ने इस बात पर भी प्रकाश डाला कि जब अवमानना ​​​​नोटिस जारी किया गया था, तो अधिकारी या तो कई वर्षों की देरी के बाद अदालत के आदेशों को लागू करते हैं, या पेटेंट अपील (एलपीए) के लिए डिवीज़न बेंच या सुप्रीम कोर्ट में जाने के लिए समय मांगते हैं. कोर्ट ने सरकारी अधिकारियों के रवैये पर नाराजगी जाहिर किया.

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पटना : बिहार की पटना हाईकोर्ट ने अदालती आदेशों का अनुपालन न करने के लिए सरकारी अधिकारियों के रवैये की कड़ी आलोचना की है. नतीजतन हजारों अवमानना ​​​​याचिकाएं दायर की गईं. मुख्य न्यायाधीश पवनकुमार भीमप्पा बजंथरी व आलोक कुमार पाण्डेय की खंडपीठ ने याचिकाकर्ता संजय कुमार द्वारा दायर अवमानना वाद की सुनवाई करते हुए सरकारी अधिकारियों के रवैये पर कड़ी फटकार लगायी है.

अवमानना याचिका दायर : कोर्ट ने कहा कि कई मामलों में अवमानना ​​याचिका दायर किए बिना कोर्ट के आदेशों का पालन नहीं हो पा रहा है. कोर्ट ने कहा कि हमने कई मामलों में देखा है कि अवमानना ​​याचिका के बिना इस अदालत के आदेशों को लागू नहीं किया जा रहा है. विचाराधीन मामले में एक आरा मिल से संबंधित एक याचिका शामिल था, जहां दी गई समय सीमा के लगभग दो साल बाद भी अदालत के आदेश का अनुपालन नहीं किया गया था.

पटना हाईकोर्ट इसे लेकर गंभीर : इस तरह अदालती आदेशों का पालन सरकारी अधिकारियों के आदत को गंभीरता से लेते हुए, अदालत ने पहले प्रधान मुख्य वन संरक्षक एन जवाहर बाबू अदालत की अवमानना ​​​​की कार्यवाही शुरू करने या जुर्माना लगाने के संबंध में स्पष्टीकरण देने के लिए बुलाया था. अधिकारी का स्पष्टीकरण सुनने के बाद, अदालत ने टिप्पणी की कि तलब किए जाने के बाद ही अधिकारियों ने इस मामले पर कार्रवाई की.

कोर्ट में दी गई दलील : पर्यावरण, जलवायु परिवर्तन और वन विभाग ने कोर्ट को बताया कि याचिकाकर्ता की शिकायत को संबोधित करने में कुछ प्रशासनिक कठिनाइयां थीं, जिसके कारण और विलम्ब हुआ. आदेश का अनुपालन नहीं किया जाने पर विचार करते हुए, कोर्ट ने निर्देश दिया कि याचिकाकर्ता को तीन हजार रुपये का भुगतान करने का निर्देश दिया.

कोर्ट ने जताई चिंता : कोर्ट ने अपने आदेशों का बार-बार अनुपालन न होने पर भी अपनी चिंता जताते हुए कहा कि यह अपवाद के बजाय एक नियम बन गया है कि, एक वादी एक संवैधानिक कोर्ट से आदेश प्राप्त करने के बाद, आदेश के असर के बारे में निश्चित नहीं होता है कि वास्तविक रूप में राहत मिलेगा या नहीं. कोर्ट ने इस पर निराशा व्यक्त की कि प्रत्येक वादी को विभिन्न परिस्थितियों में एक ही कारण से बार-बार अदालत का दरवाजा खटखटाने के लिए मजबूर किया जाता है.

असंवेदनशील रवैये की आलोचना : कोर्ट ने कुछ अधिकारियों के असंवेदनशील रवैये की आलोचना की, जिसने अवमानना ​​की गंभीर संवैधानिक शक्ति को कम कर दिया था. अदालत ने कहा कि बार-बार की टिप्पणियों के बावजूद सरकारी अधिकारियों ने कोर्ट के आदेशों को लागू करने के प्रति अपने दृष्टिकोण में सुधार नहीं किया है. कोर्ट ने कहा कि हजारों की संख्या में अवमानना ​​याचिकाएं दायर की जाती हैं. उन्होंने कहा कि ज्यादातर मामलों में, रिट या अपील की अनुमति दिए जाने के बाद, राज्य के या विश्वविद्यालय के अधिकारियों ने अवमानना ​​याचिका दायर होने तक हाईकोर्ट के समक्ष आगे मुकदमेबाजी नहीं की.

अफसरों के रवैये से हाईकोर्ट नाराज : कोर्ट ने टिप्पणी की कि अवमानना ​​​​की याचिका दायर होने तक वे सचेत नहीं होते हैं. कोर्ट ने इस बात पर भी प्रकाश डाला कि जब अवमानना ​​​​नोटिस जारी किया गया था, तो अधिकारी या तो कई वर्षों की देरी के बाद अदालत के आदेशों को लागू करते हैं, या पेटेंट अपील (एलपीए) के लिए डिवीज़न बेंच या सुप्रीम कोर्ट में जाने के लिए समय मांगते हैं. कोर्ट ने सरकारी अधिकारियों के रवैये पर नाराजगी जाहिर किया.

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