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नकली प्लाज्मा चढ़ाने से हुई थी मरीज की मौत, कोर्ट ने मामले में पांच आरोपियों को बरी किया

ग्वालियर की कोर्ट ने अजय शंकर त्यागी को फर्जी दस्तावेज बनाने का दोषी मानते हुए 10 साल की सजा सुनाई है.

GWALIOR COURT
GWALIOR COURT (Etv Bharat)
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By ETV Bharat Madhya Pradesh Team

Published : Nov 25, 2024, 9:29 PM IST

ग्वालियर: कोरोना काल के दौरान शहर के निजी अस्पताल में भर्ती मरीज की नकली प्लाज्मा चढ़ाने से हुई मौत मामले के मुख्य आरोपी को कोर्ट ने 10 साल की सजा सुनाई है. हैरानी की बात यह है कि नकली प्लाज्मा चढ़ाए जाने को कोर्ट में सिद्ध नहीं किया जा सका. कोर्ट ने अजय शंकर त्यागी को फर्जी दस्तावेज बनाने का दोषी मानते हुए उसे सजा सुनाई है.

नकली प्लाज्मा को कोर्ट में पेश नहीं कर सकी पुलिस जिससे मरीज की हुई मौत

इस मामले में एक बार फिर पुलिस की विवेचना सवालों के घेरे में खड़ी हो गई. जिस नकली प्लाज्मा को लेकर मरीज की मौत हुई उसे न तो कोर्ट में पेश किया गया और न ही उसकी कोई कोई फोरेंसिक जांच की गई. इस चर्चित कांड में अस्पताल के प्रबंधन के अलावा बड़े लोग शामिल थे. इसीलिए पुलिस भी मुकदमा दर्ज करने से कतरा रही थी. लेकिन मृतक मनोज गुप्ता के परिवार के लोगों ने इस मामले को लेकर हंगामा खड़ा किया तब कहीं जाकर पड़ाव पुलिस ने गैर इरादतन हत्या और धोखाधड़ी की धाराओं में मुकदमा दर्ज किया था.

Defense counsel Manoj Upadhyay (Etv Bharat)

न्यायालय ने नकली प्लाज्मा चढ़ाने की बात को सही नहीं माना और इस मामले में सभी आरोपियों को बरी कर दिया. लेकिन एक आरोपी अजय शंकर त्यागी को धोखाधड़ी और कूट रचना कारित करने का दोषी मानते हुए उसे 10 साल की सजा से दंडित किया है. बचाव पक्ष के अधिवक्ता मनोज उपाध्याय का कहना है कि वह इस निर्णय के खिलाफ अपर कोर्ट में अपील करेंगे.

मनोज गुप्ता को कोरोना संक्रमण के बाद अस्पताल में भर्ती कराया गया था

दरअसल 3 दिसंबर 2020 को दतिया के व्यवसायी मनोज गुप्ता को कोरोना संक्रमण के बाद आरजेएन अपोलो अस्पताल में भर्ती कराया गया था. जहां उनकी हालत में कोई सुधार नहीं हुआ. तब 8 दिसंबर 2020 को उन्हें प्लाज्मा चढ़ाने का फैसला किया गया. इसके लिए परिजनों से 18 हजार रुपये भी वसूले गए. लेकिन प्लाज्मा की थोड़ी मात्रा चढ़ते ही मनोज गुप्ता की हालत बिगड़ने लगी और 10 दिसंबर 2020 की सुबह उन्होंने दम तोड़ दिया.

बाद में परिवार के लोगों को पता चला कि मनोज को नकली प्लाज्मा चढ़ाया गया था. जिससे उनकी मौत हुई. इसके बाद काफी हो हल्ला हुआ. झांसी के एक राजनेता के हस्तक्षेप के बाद पड़ाव पुलिस ने बड़ी मुश्किल से अस्पताल के पांच कर्मचारियों के खिलाफ मुकदमा दर्ज किया था. लेकिन इनमें कोई भी डॉक्टर नहीं था. इनमें चौकीदार, लैब टेक्नीशियन और क्लर्क का काम करने वाले लोग शामिल थे.

अदालत ने मामले में 5 आरोपियों को बरी कर दिया

अजय शंकर त्यागी ने बताया था कि इस प्लाज्मा को जयारोग्य अस्पताल से लाया गया था और इसके लिए कागजात भी तैयार किए थे. जबकि जयारोग्य अस्पताल ने इस प्लाज्मा के अपने यहां से सप्लाई होने की बात इंकार किया था. ऐसे में अभियोजन को इस नकली प्लाज्मा की बेहद सावधानी और सतर्कता से जांच कराना थी लेकिन ऐसा नहीं किया गया. यह नकली प्लाज्मा कहां गया इसको लेकर पुलिस और अभियोजन पर सवाल उठ रहे हैं. जिन लोगों को इस केस से बरी किया गया है उनमें अस्पताल के चौकीदार जगदीश भदकारिया, लैब टेक्नीशियन देवेंद्र गुप्ता, अशोक समाधिया व महेश आर्य आदि शामिल हैं.

ग्वालियर: कोरोना काल के दौरान शहर के निजी अस्पताल में भर्ती मरीज की नकली प्लाज्मा चढ़ाने से हुई मौत मामले के मुख्य आरोपी को कोर्ट ने 10 साल की सजा सुनाई है. हैरानी की बात यह है कि नकली प्लाज्मा चढ़ाए जाने को कोर्ट में सिद्ध नहीं किया जा सका. कोर्ट ने अजय शंकर त्यागी को फर्जी दस्तावेज बनाने का दोषी मानते हुए उसे सजा सुनाई है.

नकली प्लाज्मा को कोर्ट में पेश नहीं कर सकी पुलिस जिससे मरीज की हुई मौत

इस मामले में एक बार फिर पुलिस की विवेचना सवालों के घेरे में खड़ी हो गई. जिस नकली प्लाज्मा को लेकर मरीज की मौत हुई उसे न तो कोर्ट में पेश किया गया और न ही उसकी कोई कोई फोरेंसिक जांच की गई. इस चर्चित कांड में अस्पताल के प्रबंधन के अलावा बड़े लोग शामिल थे. इसीलिए पुलिस भी मुकदमा दर्ज करने से कतरा रही थी. लेकिन मृतक मनोज गुप्ता के परिवार के लोगों ने इस मामले को लेकर हंगामा खड़ा किया तब कहीं जाकर पड़ाव पुलिस ने गैर इरादतन हत्या और धोखाधड़ी की धाराओं में मुकदमा दर्ज किया था.

Defense counsel Manoj Upadhyay (Etv Bharat)

न्यायालय ने नकली प्लाज्मा चढ़ाने की बात को सही नहीं माना और इस मामले में सभी आरोपियों को बरी कर दिया. लेकिन एक आरोपी अजय शंकर त्यागी को धोखाधड़ी और कूट रचना कारित करने का दोषी मानते हुए उसे 10 साल की सजा से दंडित किया है. बचाव पक्ष के अधिवक्ता मनोज उपाध्याय का कहना है कि वह इस निर्णय के खिलाफ अपर कोर्ट में अपील करेंगे.

मनोज गुप्ता को कोरोना संक्रमण के बाद अस्पताल में भर्ती कराया गया था

दरअसल 3 दिसंबर 2020 को दतिया के व्यवसायी मनोज गुप्ता को कोरोना संक्रमण के बाद आरजेएन अपोलो अस्पताल में भर्ती कराया गया था. जहां उनकी हालत में कोई सुधार नहीं हुआ. तब 8 दिसंबर 2020 को उन्हें प्लाज्मा चढ़ाने का फैसला किया गया. इसके लिए परिजनों से 18 हजार रुपये भी वसूले गए. लेकिन प्लाज्मा की थोड़ी मात्रा चढ़ते ही मनोज गुप्ता की हालत बिगड़ने लगी और 10 दिसंबर 2020 की सुबह उन्होंने दम तोड़ दिया.

बाद में परिवार के लोगों को पता चला कि मनोज को नकली प्लाज्मा चढ़ाया गया था. जिससे उनकी मौत हुई. इसके बाद काफी हो हल्ला हुआ. झांसी के एक राजनेता के हस्तक्षेप के बाद पड़ाव पुलिस ने बड़ी मुश्किल से अस्पताल के पांच कर्मचारियों के खिलाफ मुकदमा दर्ज किया था. लेकिन इनमें कोई भी डॉक्टर नहीं था. इनमें चौकीदार, लैब टेक्नीशियन और क्लर्क का काम करने वाले लोग शामिल थे.

अदालत ने मामले में 5 आरोपियों को बरी कर दिया

अजय शंकर त्यागी ने बताया था कि इस प्लाज्मा को जयारोग्य अस्पताल से लाया गया था और इसके लिए कागजात भी तैयार किए थे. जबकि जयारोग्य अस्पताल ने इस प्लाज्मा के अपने यहां से सप्लाई होने की बात इंकार किया था. ऐसे में अभियोजन को इस नकली प्लाज्मा की बेहद सावधानी और सतर्कता से जांच कराना थी लेकिन ऐसा नहीं किया गया. यह नकली प्लाज्मा कहां गया इसको लेकर पुलिस और अभियोजन पर सवाल उठ रहे हैं. जिन लोगों को इस केस से बरी किया गया है उनमें अस्पताल के चौकीदार जगदीश भदकारिया, लैब टेक्नीशियन देवेंद्र गुप्ता, अशोक समाधिया व महेश आर्य आदि शामिल हैं.

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