कुरुक्षेत्र: अंतरराष्ट्रीय गीता महोत्सव पर भारत के विभिन्न राज्यों की संस्कृति के साथ अनेक शिल्पकार भी अपने प्रतिभा का प्रदर्शन कर रहे हैं. ऐसे ही जम्मू कश्मीर से पहुंचे सबिर अहमद सूद है. जो डेढ़ लाख रुपए कीमत की एक साल लेकर गीता जयंती पहुंचे हैं. साबिर अहमद का कहना है कि वह पिछले 7 -8 साल से गीता जयंती पर आ रहे हैं और लोगों का भरपूर प्यार उन्हें हर वर्ष मिलता है. उन्होंने कहा कि पशमीना उनकी पहचान है.
लोगों को भा रही पशमीना शॉल: उन्होंने बताया कि बिना वर्क की एक शॉल बनाने में कम से कम करीब 5 से 6 महीने का समय लगता है, अगर वर्क ज्यादा किया जाए तो इसमें सालों भी लग जाते हैं. इसलिए इस की कीमत डेढ़ लाख रुपये है. उन्होंने कहा कि अगर पशमीना की बात करें तो इससे महंगे दाम की पशमीना भी आती है. लेकिन खरीदारों को देखते हुए इससे महंगी शॉल लेकर वह यहां नहीं आते. उन्होंने कहा कि अब तक 60 से 70 हजार कीमत तक की शॉल उन्होंने गीता जयंती पर बेची है.
लाखों में है पशमीना शॉल की कीमत: गीता महोत्सव में ये प्रदर्शनी, शिल्प और क्राफ्ट मेला गीता महोत्सव में आने वाले लोगों के लिए आकर्षण का केंद्र बना हुआ है. वहीं, कश्मीर से आए हुए शिल्पकारों की पश्मीना शॉल पर्यटकों का मन मोह रही है. इस शॉल की खास बात ये है कि इसे बनाने में काफी ज्यादा मेहनत और तकरीबन साल भर का वक्त लगता है. इसकी कीमत भी लाखों रुपए में होती है. अंतर्राष्ट्रीय गीता महोत्सव पर वे कश्मीर से आए हुए शिल्पकार ने बताया कि वे पिछले 8 सालों से अंतर्राष्ट्रीय गीता महोत्सव में आ रहे हैं. उनके परिवार के मेंबर्स पिछले कई दशकों से पश्मीना शॉल बनाने का काम कर रहे हैं.
क्या है शॉल का शुरुआती प्राइस: उनके स्टाल पर 6500 रुपए से लेकर 2 लाख तक की पश्मीना शॉल ग्राहकों के लिए उपलब्ध है. शिल्पकार ने बताया कि उन्हें कई अवॉर्ड भी मिल चुके हैं. राज्य स्तरीय, राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर के अवार्ड से भी वे सम्मानित किया जा चुके हैं. उन्होंने कहा कि उनके अच्छे काम को देखते हुए भारत सरकार के द्वारा उनको राष्ट्रीय अवार्ड से नवाजा गया था. क्योंकि जो उन्होंने पशमीना सोल बनाई थी. उसकी गुणवत्ता काफी अच्छी थी और उसके चलते ही उनको सभी से बेहतर होने के चलते राष्ट्रीय अवार्ड से नवाजा गया था. उनकी सोल भारत में ही नहीं विदेशों में भी काफी लोकप्रिय है और वह अक्सर विदेश में भी ऐसे कार्यक्रमों पर जाते हैं.
ऑर्डर पर बनती है शॉल: पश्मीना शॉल के बारे में बताते हुए उन्होंने कहा कि ये मुगल काल के वक्त से काफी ज्यादा मशहूर है. उस वक्त के जो राजा थे, वे इसका इस्तेमाल किया करते थे. उन्होंने बताया कि अभी तक 6 हजार रुपए से लेकर 2 लाख तक की शॉल वे तैयार कर चुके हैं. जिस व्यक्ति की जो डिमांड होती है, उस डिमांड के आधार पर ही वे शॉल तैयार करते हैं. अगर किसी को इतनी महंगी शॉल चाहिए तो उसे ऑर्डर करना पड़ता है.
पशमीना शॉल की खासियत: अंतर्राष्ट्रीय गीता महोत्सव पर लोग दो लाख रुपये तक की शॉल की खरीदारी करते हैं. इसलिए वे 2 लाख रुपए तक की शॉल लेकर यहां पहुंचे हुए हैं. उन्होंने बताया कि शॉल बहुत ही मुलायम और गर्म होती है. जिसके चलते पहाड़ी क्षेत्र में रहने वाले लोग इसको ज्यादा पसंद करते हैं. सर्दी से बचाने के लिए ये बहुत ही ज्यादा कारगर होती है. इसकी खासियत ऐसी होती है कि ये एक छोटी सी अंगूठी में से भी ये शॉल आसानी से निकल जाती है. अंतर्राष्ट्रीय गीता महोत्सव पर लोग इसे खूब पसंद कर रहे हैं.
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