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अलवर में 109 सालों से पारसी शैली में आयोजित की जाती है रामलीला, दिलचस्प है इसके पीछे की कहानी - Ramleela in Alwar - RAMLEELA IN ALWAR

Parsi Style Ramleela : अलवर में 109 सालों से पारसी शैली में रामलीला का आयोजन होता आ रहा है. इसमें 6 माह से लेकर 85 साल के बुजुर्ग तक हिस्सा लेते हैं. इसकी शुरुआत महाराजा जयसिंह ने की थी. पढ़िए कैसे इस आधुनिक युग में इस प्रकार के रामलीला को लोगों का प्यार मिल रहा है....

अलवर में 109 सालों से आयोजित की जाती है रामलीला
अलवर में 109 सालों से आयोजित की जाती है रामलीला (ETV Bharat Alwar)
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By ETV Bharat Rajasthan Team

Published : Sep 30, 2024, 11:39 AM IST

अलवर : टेक्नोलॉजी के युग में आज भी अलवर शहर में रामलीला को शहर वासियों का खूब साथ मिल रहा है. अलवर शहर के राजर्षि अभय समाज के रंगमंच पर होने वाली रामलीला करीब 109 सालों से सफलतापूर्वक चल रही है. अलवर के महाराजा जयसिंह ने इसकी शुरू की थी. ऐसा कहा जाता है कि अलवर में कई जगहों पर रामलीला का आयोजन किया जाता है. इसीलिए महाराजा जयसिंह ने दो समाजों को मिलाकर राजर्षि अभय समाज समिति का निर्माण किया. वर्तमान में इसी समिति के तत्वाधान में पारसी शैली में रामलीला का सफल आयोजन किया जाता है. इस आयोजन में सरकारी कर्मचारी भी कई सालों से हिस्सा ले रहे हैं.

30 अक्टूबर से शुरू होगी रामलीला : राजर्षि अभय समाज समिति के कार्यकारिणी सदस्य राजेंद्र प्रसाद शर्मा ने बताया कि अलवर में 1916 से रामलीला का आयोजन किया जा रहा है. उस समय हरिकीर्तन समाज की ओर से रामलीला का आयोजन किया जाता था. इसके बाद एक और समाज ने रामलीला का मंचन का आयोजन किया. कई सालों तक यह दौर जारी रहा. सन 1939 में अलवर के तत्कालीन महाराजा जय सिंह ने दोनों समाजों का अभिनय देखा और कुशल अभिनेताओं का एक समूह बनाया, जिसे राजर्षि अभय समाज समिति का नाम दिया गया. इसके बाद से राजर्षि अभय समाज के रंग मंच पर पारसी शैली में रामलीला का आयोजन किया जा रहा है. उन्होंने बताया कि राजर्षि अभय समाज की ओर से की जाने वाली रामलीला इस साल 30 अक्टूबर से शुरू होगी. इसके लिए पूरी तैयारी की जा चुकी है.

अलवर की रामलीला (ETV Bharat Alwar)

इसे भी पढ़ें. इस बार दशहरे में 3D रावण का होगा दहन, रामायण की थीम पर मेला, गेट और बाजार को दिए गए पात्रों के नाम

दो माह पहले शुरू होती है रिहर्सल : उन्होंने बताया कि रामलीला के आयोजन से करीब दो माह पहले इसके रिहर्सल की शुरुआत की जाती है. इसके लिए सभी कलाकर अपने-अपने डायलॉग की तैयारी रोजाना रंगमंच पर आकर करते हैं. हर साल उनके साथ नए कलाकार भी जुड़ते हैं. यदि उनके साथ कोई कलाकार जुड़ना चाहता है, तो वह रिहर्सल के समय अभय समाज के ऑफिस में आकर मिल सकता है. रामलीला में अभिनय करने से पहले उसके अभिनय को सदस्यों की ओर से परखा जाता है. रामलीला आयोजन के दौरान 6 माह के कलाकार से लेकर 85 वर्ष तक के कलाकार अलग-अलग पात्र के माध्यम से अपनी कलाकारी मंच पर बिखरते हैं. कलाकारों का उनके साथ जुड़ाव हो गया है और लंबे समय से कलाकार अपने पात्र को निभा रहे हैं.

स्टेज पर रिहर्सल करते कलाकार
स्टेज पर रिहर्सल करते कलाकार (ETV Bharat Alwar)

आज भी मिल रहा शहरवासियों का प्यार : उन्होंने बताया कि अब टेक्नोलॉजी का जमाना है. लोग फोन, टीवी व लैपटॉप के जरिए अपना मनोरंजन करते हैं, लेकिन पहले के समय में नौटंकी और रामलीला के जरिए ही लोगों का मनोरंजन होता था. राजर्षि अभय समाज के रंगमंच पर होने वाली रामलीला को आज भी शहर वासियों का उतना ही प्यार मिल रहा है. यहां लोग बड़ी संख्या में पहुंचते हैं और कलाकारों के अभिनय व मेहनत का उत्साह वर्धन करते हैं. इस रामलीला को देखने के लिए महाराजा जयसिंह भी अपने शाही लवाजमे के साथ आते थे और कलाकारों की हौसला अफजाई करते थे.

इस तरह होता है रामलीला का मंचन
इस तरह होता है रामलीला का मंचन (ETV Bharat Alwar)

इसे भी पढ़ें. इस बार हेमा मालिनी करेंगी दशहरा मेले का उद्घाटन, 28 साल पहले हुआ था ये विवाद... कोर्ट पहुंचा था मामला

आज भी पारसी शैली में होता है मंचन : उन्होंने बताया कि समिति की ओर से आयोजित होने वाली रामलीला में आज भी पारसी शैली में रामलीला का मंचन किया जाता है. पारसी शैली एक अनोखी शैली है, इसमें लकड़ी के घूर्णक के सहारे बड़े बड़े पर्दे गिरते, पल भर में परिवर्तित होती दृश्य, तेज प्रकाश, पटाखे के साथ प्रदर्शन का आरंभ होता है. साथ ही आकस्मिक घटनाओं पत्रों के प्रवेश, पत्रों की मृत्यु पर पटाखे की तेज आवाज सहित पत्र अनुरूप वेष विन्यास व श्रृंगार इस कला में पाई जाती है. आज भी इस कला को लोगों का भरपूर प्यार देख आनंद आता है.

अलवर : टेक्नोलॉजी के युग में आज भी अलवर शहर में रामलीला को शहर वासियों का खूब साथ मिल रहा है. अलवर शहर के राजर्षि अभय समाज के रंगमंच पर होने वाली रामलीला करीब 109 सालों से सफलतापूर्वक चल रही है. अलवर के महाराजा जयसिंह ने इसकी शुरू की थी. ऐसा कहा जाता है कि अलवर में कई जगहों पर रामलीला का आयोजन किया जाता है. इसीलिए महाराजा जयसिंह ने दो समाजों को मिलाकर राजर्षि अभय समाज समिति का निर्माण किया. वर्तमान में इसी समिति के तत्वाधान में पारसी शैली में रामलीला का सफल आयोजन किया जाता है. इस आयोजन में सरकारी कर्मचारी भी कई सालों से हिस्सा ले रहे हैं.

30 अक्टूबर से शुरू होगी रामलीला : राजर्षि अभय समाज समिति के कार्यकारिणी सदस्य राजेंद्र प्रसाद शर्मा ने बताया कि अलवर में 1916 से रामलीला का आयोजन किया जा रहा है. उस समय हरिकीर्तन समाज की ओर से रामलीला का आयोजन किया जाता था. इसके बाद एक और समाज ने रामलीला का मंचन का आयोजन किया. कई सालों तक यह दौर जारी रहा. सन 1939 में अलवर के तत्कालीन महाराजा जय सिंह ने दोनों समाजों का अभिनय देखा और कुशल अभिनेताओं का एक समूह बनाया, जिसे राजर्षि अभय समाज समिति का नाम दिया गया. इसके बाद से राजर्षि अभय समाज के रंग मंच पर पारसी शैली में रामलीला का आयोजन किया जा रहा है. उन्होंने बताया कि राजर्षि अभय समाज की ओर से की जाने वाली रामलीला इस साल 30 अक्टूबर से शुरू होगी. इसके लिए पूरी तैयारी की जा चुकी है.

अलवर की रामलीला (ETV Bharat Alwar)

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दो माह पहले शुरू होती है रिहर्सल : उन्होंने बताया कि रामलीला के आयोजन से करीब दो माह पहले इसके रिहर्सल की शुरुआत की जाती है. इसके लिए सभी कलाकर अपने-अपने डायलॉग की तैयारी रोजाना रंगमंच पर आकर करते हैं. हर साल उनके साथ नए कलाकार भी जुड़ते हैं. यदि उनके साथ कोई कलाकार जुड़ना चाहता है, तो वह रिहर्सल के समय अभय समाज के ऑफिस में आकर मिल सकता है. रामलीला में अभिनय करने से पहले उसके अभिनय को सदस्यों की ओर से परखा जाता है. रामलीला आयोजन के दौरान 6 माह के कलाकार से लेकर 85 वर्ष तक के कलाकार अलग-अलग पात्र के माध्यम से अपनी कलाकारी मंच पर बिखरते हैं. कलाकारों का उनके साथ जुड़ाव हो गया है और लंबे समय से कलाकार अपने पात्र को निभा रहे हैं.

स्टेज पर रिहर्सल करते कलाकार
स्टेज पर रिहर्सल करते कलाकार (ETV Bharat Alwar)

आज भी मिल रहा शहरवासियों का प्यार : उन्होंने बताया कि अब टेक्नोलॉजी का जमाना है. लोग फोन, टीवी व लैपटॉप के जरिए अपना मनोरंजन करते हैं, लेकिन पहले के समय में नौटंकी और रामलीला के जरिए ही लोगों का मनोरंजन होता था. राजर्षि अभय समाज के रंगमंच पर होने वाली रामलीला को आज भी शहर वासियों का उतना ही प्यार मिल रहा है. यहां लोग बड़ी संख्या में पहुंचते हैं और कलाकारों के अभिनय व मेहनत का उत्साह वर्धन करते हैं. इस रामलीला को देखने के लिए महाराजा जयसिंह भी अपने शाही लवाजमे के साथ आते थे और कलाकारों की हौसला अफजाई करते थे.

इस तरह होता है रामलीला का मंचन
इस तरह होता है रामलीला का मंचन (ETV Bharat Alwar)

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आज भी पारसी शैली में होता है मंचन : उन्होंने बताया कि समिति की ओर से आयोजित होने वाली रामलीला में आज भी पारसी शैली में रामलीला का मंचन किया जाता है. पारसी शैली एक अनोखी शैली है, इसमें लकड़ी के घूर्णक के सहारे बड़े बड़े पर्दे गिरते, पल भर में परिवर्तित होती दृश्य, तेज प्रकाश, पटाखे के साथ प्रदर्शन का आरंभ होता है. साथ ही आकस्मिक घटनाओं पत्रों के प्रवेश, पत्रों की मृत्यु पर पटाखे की तेज आवाज सहित पत्र अनुरूप वेष विन्यास व श्रृंगार इस कला में पाई जाती है. आज भी इस कला को लोगों का भरपूर प्यार देख आनंद आता है.

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