चरखी दादरी: पेरिस पैरालंपिक-2024 में बैडमिंटन एकल स्पर्धा में गोल्ड मेडल लेकर भारत का नाम रोशन करने वाले नितेश लुहाच को आज अर्जुन अवार्ड से सम्मानित किया गया है. वो चरखी दादरी के नांधा गांव के रहने वाले हैं. राष्ट्रपति दौपदी मुर्मू के हाथों अजुर्न अवार्ड मिलने पर नितेश के पैतृक गांव नांधा में खुशी का माहौल है. ग्रामीणों ने लड्डू बांटकर खुशी का इजहार किया. आइए जानते हैं कैसे एक फुटबॉल खिलाड़ी ने आगे जाकर बैडमिंटन में गोल्ड जीता.
एक हादसे ने जीवन बदला : दरअसल, बैडमिंटन में देश के लिए गोल्ड मेडल जीतने वाले नितेश मूल रूप से फुटबॉल के अच्छे खिलाड़ी थे. वो फुटबॉल के खेल में ही अपना भविष्य देखते थे. एक हादसे ने उनके जीवन को पूरी तरह से बदल दिया. करीब 15 वर्ष की आयु में विशाखापट्टनम में रेल की चपेट में आने से नितेश ने अपना बाया पैर गंवा दिया. इसके कुछ समय बाद उन्होंने बैडमिंटन खेलना शुरू किया, जिसमें महारत हासिल कर उन्होंने पैरालंपिक में आज बड़ा मुकाम हासिल किया है.
मा. राष्ट्रपति श्रीमती द्रौपदी मुर्मु जी ने आज नई दिल्ली में 'राष्ट्रीय खेल पुरस्कार-2024' के अंतर्गत हरियाणा के धाकड़ पैरा-एथलेटिक्स खिलाड़ी, बैडमिंटन गोल्ड मेडलिस्ट श्री नीतेश कुमार जी को उनकी उत्कृष्ट उपलब्धियों हेतु प्रतिष्ठित 'अर्जुन पुरस्कार-2024' से सम्मानित होने पर आपको… pic.twitter.com/9FPWXzVil8
— Nayab Saini (@NayabSainiBJP) January 17, 2025
इंडियन नेवी से रिटायर्ड है पिताः नितेश लुहाच के पिता इंडियन नेवी से रिटायर्ड है. वे परिवार के साथ जयपुर में रहते है. नितेश की प्रारंभिक शिक्षा गांव में ही अपने ताऊ गुणपाल के पास रहते हुए हुई थी. उसके बाद पिता की पोस्टिंग के अनुसार अलग-अलग शहरों में नितेश ने पढ़ाई की.
दोस्त के बर्थडे से लौटने के दौरान गंवाना पड़ा पैरः गांव में नितेश के ताऊ गुणपाल और चाचा सत्येंद्र ने नितेश के दिव्यांग होने की घटना का जिक्र करते हुए बताया कि नितेश जब करीब 15 साल के थे, उस दौरान उनके पिता बिजेंद्र सिंह की विशाखापट्टनम में पोस्टिंग थी. उस दौरान वह फुटबॉल खेलता था. एक दिन वह फुटबॉल खेलने के लिए गया हुआ था. इसी दिन उनके एक दोस्त का जन्मदिन भी था, जिसके पिता रेलवे में नौकरी करते थे. नितेश रेलवे यार्ड के समीप उनके क्वार्टर पर गया था और वापस आते समय रेलवे यार्ड में रेल के नीचे से पटरी पार कर रहा था. इसी दौरान रेल चल पड़ी जिससे वह ट्रेन की चपेट में आ गया और उसका पैर जांघ के समीप से अलग हो गया.
टाइम पास खिलाड़ी से बने पैरालंपिक गोल्ड मेडलिस्टः उनके ताऊ ने बताया कि हादसे के बाद नितेश ने रिकवर होने के लिए बेड रेस्ट लिया और बाद में पैर गंवाने के साथ ही फुटबॉल का खेल भी छुट गया. नितेश ने टाइम पास करने के लिए बैडमिंटन खेलना शुरू किया तो उसकी प्रतिभा को कॉलेज में कोच ने पहचानते हुए उसे निखारने का काम किया. इसके बाद से नितेश आगे बढ़ता चला गया और आज देश के लिए गोल्ड जीतकर साबित कर दिया है कि बिना पैर के भी ये दुनिया नापी जा सकती है.
मिठाइयां बांटकर ग्रामीणों ने मनाई खुशियांः पिछले दिनों नितेश के गांव लौटने पर ग्रामीणों और प्रशासनिक अधिकारियों ने उसे सम्मानित भी किया था. नितेश की उपलब्धि पर राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने नितेश को अर्जुन अवार्ड से सम्मानित किया है. बेटे की उपलब्धि पर नांधा गांव में परिजनों ने मिठाइयां बांटकर खुशियां मनाई और उसके उज्ज्वल भविष्य की कामना की है.
बीजिंग पैरालंपिक में जीता था सिल्वर: नितेश ने बीजिंग पैरालंपिक में भी कमाल का प्रदर्शन किया था और उन्होंने सिल्वर मेडल हासिल किया था. लेकिन उनकी तमन्ना देश के लिए गोल्ड जितने की थी. इसके चलते उसने और अधिक कड़ी मेहनत की और जो सपना बीजिंग में अधूरा रह गया था, उसे पेरिस में पूरा करके दिखाया है.