रायपुर: पपीते में पाये जाने गुणों की वजह से स्वास्थ्य के लिए यह बेहद महत्वपूर्ण माना जाता है. इसके बीज भी औषधीय गुण से भरपूर होते हैं. पपीते के कच्चे फल को आप सब्जी के रूप में उपयोग कर सकते है. पपीते के औषधीय गुण की वजह से इसे लोग अपने खानपान में शामिल करते हैं. लेकिन पपीते की खेती के समय कई तरह की सावधानियां बरतनी पड़ती है. ऐसा नहीं करने पर आपका फसल खराब भी हो सकती है. इसके लिए इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय के वरिष्ठ कृषि वैज्ञानिक डॉक्टर घनश्याम दास साहू ने अहम जानकारियां साझा की है.
पपीते का पौधा निश्चित दूरी पर लगाएं: पपीता की खेती करते समय किसानों को इस बात का भी विशेष ध्यान रखना चाहिए कि एक निश्चित दूरियों में पपीता की फसल लगाई जाए. पपीता की फसल लेते समय 15 से 20 सेंटीमीटर की बेड तैयार कर लें और 1.2 मीटर की दूरियों में पपीते का रोपण करें. इसे सघन बागवानी के नाम से जाना जाता है. 15 से 20 दिनों के अंतराल में नीम जनित ऑइल का छिड़काव भी करें, ताकि पपीता की फसल को बीमारियों से बचाया जा सके.
प्रदेश के किसान पपीता की खेती करना चाहते हैं तो उभयलिंगी किस्म का ही चयन करें. पपीता की बौनी किस्म में पूसा नंदन, उभयलिंगी किस्म में सिंटा, ओ 2, ओ 4, ओ 5, ओ 6 जैसी किस्मों का चयन कर ही प्रदेश के किसान पपीता की खेती प्रारंभ करें. जिस जगह पर पानी भरपूर हो, ऐसी जगह पर पपीता की फसल लेनी चाहिए. - डॉ घनश्याम दास साहू, कृषि वैज्ञानिक, आईजेकेवी रायपुर
पपीता की खेती करते समय बरतें सावधानी: पपीते की खेती करना कहीं न कहीं फायदेमंद साबित होती है, लेकिन पपीता की फसल में कीट का प्रकोप भी देखने को मिलता है. ऐसे में कीट के प्रकोप से फसल को कैसे बचा जाए, कौन से कीटनाशक का प्रयोग करना चाहिए और कब करना चाहिए. पपीता लगाते समय शुरू में किसानों को गोबर के खाद और नीम खली 100 ग्राम प्रति पौधे में डालना चाहिए. ऐसा करने पर पपीते के पौधे को आसानी से बीमारियों से भी बचाया जा सकता है. वर्तमान समय में टपक सिंचाई पद्धति से पपीते के पौधे को पानी देना चाहिए. टपक सिंचाई के माध्यम से पानी देने पर पपीते में खरपतवार की मात्रा में कमी आती है.
आपको बता दें कि पपीता एक अंतरवर्तीय फसल है. बारिश के समय पपीता के साथ ही हल्दी और अदरक की खेती भी की जा सकती है. इसके साथ ही ठंड के समय में मटर और बीज-मसाला की खेती भी की जा सकती है.