फर्रुखाबाद : यूपी के फर्रुखाबाद जिले में महाभारत काल में पांडवों ने कई शिवलिंग की स्थापना की थी, जिसके साक्ष्य आज भी मिलते हैं. जिले में स्थित पांडेश्वर नाथ मंदिर के बारे में भी मान्यता है कि यहां स्थापित शिवलिंग की स्थापना पांडवों ने अज्ञातवास के दौरान की थी. उस दौरान उनके साथ भगवान श्री कृष्ण भी वहां उपस्थित थे.
मान्यता है कि भगवान पांडेश्वर नाथ के दर्शन मात्र से सभी कष्टों से मुक्ति मिल जाती है. साथ ही भक्तों को भी मनवांछित फल की प्राप्ति होती है. वैसे तो भक्तों की रोज भीड़ मंदिर में लगती है, लेकिन सावन में भक्तों की भीड़ बहुत ज्यादा हो जाती है. आसपास के जिले के लोग यहां आते हैं.
आचार्य डॉ. ओंकार नाथ मिश्र बताते हैं कि महाभारत में एक चक्र नगरी का जिक्र है. इसके मुताबिक गंगा के तट के पास राजा द्रुपद का किला था. इसके चारों ओर जंगल ही जंगल था. पांडवों ने अज्ञातवास के दौरान इस इलाके में शरण ली थी और माता कुंती के साथ एक पीपल के पेड़ के नीचे रहते थे. यहां उन्होंने एक शिव मंदिर की स्थापना की. .यह आज पांडेश्वर नाथ मंदिर पंडा बाघ के नाम से जाना जाता है. पांडवों ने अज्ञातवास के दौरान इस शिवलिंग की स्थापना धौम्य ऋषि ने करवाई थी. यहीं से कुछ दूरी पर कांपिल्य क्षेत्र है. यहां द्रौपदी स्वयंवर हुआ था, जिसमें मत्स्य भेदन के आधार पर अर्जुन विजयी हुए और द्रौपदी से उनका विवाह हुआ.
आचार्य डॉ. ओंकार नाथ मिश्र बताते हैं कि पांडेश्वर नाथ शिव की आराधना करने से व्यक्ति की सभी मनोकामना पूरी होती है. यदि कोई भक्त सच्ची श्रद्धा से शिव को एक लोटा जल भी अर्पित करे तो वह प्रसन्न हो जाते हैं. यही वजह है कि शिव के प्रिय महीने में पांडेश्वर नाथ मंदिर में जल अभिषेक, रुद्राभिषेक का भी महत्व है. पुराणों में भी शिव के अभिषेक को बहुत पवित्र महत्व दिया गया है. भगवान शिव को सावन का महीना सबसे प्रिय है, इसलिए इस माह में शिव की पूजा बहुत अहम मानी जाती है और यही वजह है कि सावन में पांडेश्वर नाथ में पूजा करने से हर मनोकामना पूरी होती है.
पुजारी गोपाल शर्मा बताते हैं कि शिव की कृपा पाने के लिए इस मंदिर में सुबह से ही हजारों की संख्या में भक्तों की भीड़ देखने को मिलती है. वह बताते हैं कि भगवान शिव ने जब विष पिया तो इसके असर को कम करने के लिए देवी-देवताओं ने उन्हें जल प्रवाहित किया था. यही वजह है की सावन में शिव को जल चढ़ाया जाता है. ऐसा माना गया है कि सावन माह में ही समुद्र मंथन किया गया था. समुद्र मंथन के बाद जो विष निकला उससे पूरा संसार नष्ट हो सकता था. लेकिन, भगवान शिव ने उसको अपने कंठ में समाहित किया और सृष्टि की रक्षा की. इसके बाद ही उन्हें नीलकंठ भी कहा गया.
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