कवर्धा : भगवान भोलेनाथ का अस्तित्व सृष्टि से जुड़ा हुआ है.महादेव के कृपा से ही सृष्टि का जन्म हुआ. भारत देश में भोलेनाथ के अनेक मंदिर हैं. इन मंदिरों में से कुछ अनोखे हैं.ऐसा ही एक अनोखा मंदिर छत्तीसगढ़ में भी है.कवर्धा के संकरी नदी के तट पर इस मंदिर का निर्माण कराया गया है.जहां विराजमान हैं,विश्व के इकलौते पंचमुखी शिव.इस शिवलिंग की खास बात ये है कि 5 अलग-अलग शिवलिंग में पांच-पांच मुख हैं.यानी एक शिवलिंग के पांच मुख.इसलिए पांच शिवलिगों के मुखों को जोड़ा जाए तो 25 मुख के साथ भोलेनाथ अपने भक्तों को दर्शन देते हैं.
शिवलिंग और मंदिर का रहस्य : पंचमुखी बूढ़ा महादेव मंदिर में सेवा करने वालों की माने तो ये स्वयंभू शिवलिंग है.10वीं शताब्दी के आसपास शिवलिंग की स्थापना की गई थी.जब राजा महाराजा का दौर आया तो शिवलिंग की जगह बड़ा मंदिर बनवाया गया.मंदिर बनने के बाद ये शिवलिंग बूढ़ा महादेवा नाम से विख्यात हुए.आज इस मंदिर को लोग पंचमुखी बूढ़ा महादेव मंदिर के नाम से जानते हैं.
क्या हैं पंचमुख का उद्देश्य : पुरातत्व समिति के सदस्य आदित्य श्रीवास्तव के मुताबिक पंचमुखी बूढ़ा महादेव स्वयंभू शिवलिंग है जो मंदिर निर्माण के काफी पहले से स्थापित है. मंदिर में जो शिवलिंग है उसके 05 मुख हैं. पांचों मुख में फिर 5-5 मुख हैं यानी कुल 25 लिंगों का अद्भुत शिवलिंग हैं. शिव के पंचमुखों का शिवमहापुराण में भी जिक्र मिलता है. शिवपुराण में कहा गया है,जब सृष्टि के आरंभ में कुछ नहीं था,तब शिव ने पंचमुख धारण किए थे.
1.पश्चिम मुख, सद्योजात - पृथ्वी तत्व
2.उत्तर मुख, वामदेव - जल तत्व
3.दक्षिण मुख, अघोर-तेजस तत्व
4. पूर्व मुख, तत्पुरुष -वायुतत्तव
5. ऊर्ध्व मुख, ईशान- आकाश तत्व
''त्रिनेत्रधारी शिव के पंचमुखों से ही पृथ्वी,जल,अग्नि,आकाश और वायु की उत्पत्ति हुई.इसलिए शिव पंचानन और पंच्यवक्त्र कहलाएं. विश्व के अलग-अलग कल्पों में शिव के अनेक अवतार हुए. सद्योजात,वामदेव, तत्पुरुष, अघोर और ईशान शिव के अवतार माने गए हैं. ये शिवलिंग भोलेनाथ के पंच अवतारों को प्रदर्शित करता है.शिवलिंग के चार मुख चारों दिशाओं में और पांचवां मुख मध्य ऊर्ध्व में है.'' आदित्य श्रीवास्तव,पुरातत्व समिति के सदस्य
200 साल पहले बना मंदिर,लेकिन शिवलिंग सैंकड़ों वर्ष पुराना : इतिहासकारों की माने तो 25 मुख वाले स्वयंभू शिवलिंग सैंकड़ों वर्ष पुराना है.200 साल पहले कवर्धा रियासत के पहले राजा महाबली दीवान और दूसरे राजा उजियार सिंह पंचमुखी बूढ़ा महादेव को पूजते थे.उन्हीं के समय मंदिर का निर्माण हुआ. मंदिर से थोड़ी ही दूरी पर संकरी नदी बहती है, पहले मंदिर को बुढ़ा देव मंदिर के नाम से जाना जाता था अब मंदिर को उमापति पंचमुखी बूढ़ा महादेव मंदिर के नाम से जाना जाता है.
हर मनोकामना होती है पूरी : पंचमुखी बूढ़ा महादेव के पुजारी की माने तो बचपन से शिव की सेवा कर रहे हैं.यहां ऐसी कोई भी मनोकामना नहीं है जो पूरी ना हुई हो.इसलिए दूर-दूर से भक्त मन में मनोकामना लिए आते हैं.इसके बाद इच्छा पूरी होने पर भोलेनाथ के दोबारा दर्शन करते हैं. सावन और महाशिवरात्रि में मंदिर की रौनक देखते ही बनती है.कावड़ियों का समूह अमरकंटक की नर्मदा से जल लेकर कवर्धा आता है.इसके बाद पंचमुखी शिवलिंग का अभिषेक करता है.
30 वर्षों से मंदिर में सीताराम का जाप : पंचमुखी बूढ़ा महादेव मंदिर में लगभग 30 वर्षों से राम-सीता का जाप बिना रुके निरंतर जारी है. कोरोना काल के दौरान भी जाप नहीं रुका. महाशिवरात्रि के अवसर पर भगवान गौरी शंकर की मूर्ति के साथ भव्य बारात निकाली जाती है.इस बार भी महाशिवरात्रि के अवसर पर बारात निकाली जाएगी.