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पहाड़ी कोरवाओं के जीवन में आया कुछ बदलाव तो बहुत कुछ है बाकी, बच्चे तो पढ़ रहे, लेकिन रोजगार का संकट बरकरार - Pahari Korwa Tribe

कोरबा जिले के ग्राम पंचायत पतरापाली का आश्रित ग्राम धनकछार पहाड़ पर स्थित है. यहां रहने वाले पहाड़ी कोरवा जनजाति के आदिवासी अब तक समाज की मुख्य धारा से दूर हैं. हालांकि सरकार ने करीब 15 साल साल पहले उन्हें पहाड़ी से नीचे लाकर बसाया गया, जिससे उनके जीवन में काफी बदलाव आया है. लेकिन आज भी इनके सामने रोजगार एक बड़ी समस्या है. आइए जानें ग्राम धनकछार के पहाड़ी कोरवाओं की आज कैसी स्थिति है.

TRIBALS IN DHANKACHHAR VILLAGE
कोरबा के पहाड़ी कोरवा जनजाति के आदिवासी (ETV Bharat)
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By ETV Bharat Chhattisgarh Team

Published : Jun 17, 2024, 8:01 PM IST

पहाड़ी कोरवा जनजाति के आदिवासियों की स्थिति (ETV Bharat)

कोरबा : पहाड़ी कोरवा जनजाति को छत्तीसगढ़ की पांच विशेष पिछड़ी जनजातियों में शामिल किया गया है. इन्हें इसलिए ही पहाड़ी कोरवा कहा जाता है, क्योंकि वह पहाड़ों पर वनांचल में खानाबदोश जीवन शैली जीते हैं. यही वह वजह है कि कोरवा आदिवासी अब तक समाज की मुख्य धारा से दूर हैं.

रोजगार का संकट अब भी बरकरार : कोरबा जिले के ग्राम पंचायत पतरापाली का आश्रित ग्राम धनकछार पहाड़ पर है. यहां तक पहुंचाने के लिए 6 किलोमीटर का ऊंची नीची चढ़ाई पार कर पैदल सफर करना पड़ता था. यहां के कोरवा आदिवासियों को प्रशासन ने पहाड़ से नीचे उतारकर जमीन पर बसाया है. पहाड़ से नीचे आकर बसे उन्हें लगभग 10 से 15 साल बीत चुका हैं. यहां निवासरत कोरवाओं के जीवन में काफी हद तक बदलाव भी आया है. इनमें से कुछ परिवारों को पक्का मकान भी मिला है, लेकिन रोजगार का संकट अब भी बरकरार है.

"पहाड़ से नीचे आने पर हमें पक्का मकान मिला है. लेकिन पीएम आवास लगभग 8 से 10 लोगों को ही मिला है. रोजगार का संकट अब भी बना हुआ है. रोजी मजदूरी के लिए कोई स्थाई काम मिल जाता तो और भी बेहतर होगा." - बोडो राम, स्थानीय निवासी, ग्राम धनकछार

"नीचे तो उतरे, लेकिन खेत पहाड़ के ऊपर हैं" : पहाड़ से नीचे उतरकर पक्के मकान में रहना शुरू कर चुके बोडो राम ने बताया, "अब से लगभग 15 से 20 साल पहले हमें पहाड़ से नीचे उतरा गया था. हमारे पूर्वज तो जंगल में भटकते हुए ही अपना जीवन बता दिए. हमारे जनजाति के लोग अब भी जंगल में ही निवास कर रहे हैं. हम पक्के मकान में भी रहने लगे हैं, जिससे परिजन के निधन के बाद घर छोड़ने वाली परंपरा भी कम हुई है."

"हमारे बच्चे भी अब स्कूल जाने लगे हैं. हालांकि हम तो अनपढ़ ही रहे हैं. बच्चे स्कूल जा रहे हैं, इस बात की तसल्ली है. हमारे खेत अभी भी पहाड़ के ऊपर ही है, इसलिए खेती किसानी करने हमें पहाड़ पर ही जाना पड़ता है." - बोडो राम, स्थानीय निवासी, ग्राम धनकछार

पहाड़ से नीचे उतरने के बाद आया बदलाव : पहाड़ी कोरवा समुदाय के बालक राम कहते हैं, "मैं अनपढ़ हूं, इसलिए मुझे ठीक-ठाक दिन और तारीख का ज्ञान नहीं है कि कब हम पहाड़ से नीचे उतरे थे. लेकिन पहले हमारे पूर्वज पहाड़ के ऊपर ही रहते थे. हले हम पहाड़ों में ही भटकते रहते थे, लेकिन अब वैसा नहीं है. हम नीचे आकर मकान में निवास कर रहे हैं."

"पहाड़ से नीचे उतरने के बाद कुछ बदलाव तो आया है, इससे हम इनकार नहीं कर रहे. बच्चे स्कूल जाने लगे हैं, अस्पताल की सुविधा से दवा आदि भी मिल रहा है, लेकिन अभी हमारा जीवन रोजी मजदूरी के भरोसे ही चल रहा है." - बालक राम, पहाड़ी कोरवा

जर्जर अवस्था में दिखे शौचालय : वैसे तो प्रधानमंत्री स्वच्छ भारत अभियान के तहत गांवों और कस्बों को ओडीएफ घोषित किया गया है. लेकिन पतरापाली के कोरवा बस्ती में जो शौचालय दिखे, वह पूरी तरह से जर्जर अवस्था में थे. किसी में जलाउ लकड़ी तो कहीं गोबर के कंडे रखने के लिए शौचालय का इस्तेमाल हो रहा है. कोरवा बस्ती के लोग पहाड़ से नीचे उतरकर मैदान क्षेत्र में आ गए हैं. पीएम आवास भी मिला है, लेकिन शौचालय का उपयोग यहां अब भी नहीं हो रहा है.

कोरवा बस्ती में 8 से 10 पीएम आवास : गांव धनकछार से नीचे उतारकर जब कोरवाओं को यहां बसाया गया. तब सबसे पहले इन्हें कच्चा मकान बनाकर दिया गया था. पक्का मकान अब से कुछ साल पहले ही इन्हें मिला है. यहां के आदिवासियों से पता चला कि यहां लगभग 30 परिवार निवासरत हैं, लेकिन इसमें से पीएम आवास केवल 8-10 परिवारों को ही मिला है. प्रशासन के प्रयास से पहाड़ी कोरवा अब पहाड़ से नीचे उतरकर मैदानी क्षेत्र में रहने लगे हैं. पक्का मकान भी मिला है. लेकिन अब भी काफी कुछ किया जाना शेष है, ताकि वह पूरी तरह से मुख्य धारा से जुड़ सकें.

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रोजगार का संकट अब भी बरकरार : कोरबा जिले के ग्राम पंचायत पतरापाली का आश्रित ग्राम धनकछार पहाड़ पर है. यहां तक पहुंचाने के लिए 6 किलोमीटर का ऊंची नीची चढ़ाई पार कर पैदल सफर करना पड़ता था. यहां के कोरवा आदिवासियों को प्रशासन ने पहाड़ से नीचे उतारकर जमीन पर बसाया है. पहाड़ से नीचे आकर बसे उन्हें लगभग 10 से 15 साल बीत चुका हैं. यहां निवासरत कोरवाओं के जीवन में काफी हद तक बदलाव भी आया है. इनमें से कुछ परिवारों को पक्का मकान भी मिला है, लेकिन रोजगार का संकट अब भी बरकरार है.

"पहाड़ से नीचे आने पर हमें पक्का मकान मिला है. लेकिन पीएम आवास लगभग 8 से 10 लोगों को ही मिला है. रोजगार का संकट अब भी बना हुआ है. रोजी मजदूरी के लिए कोई स्थाई काम मिल जाता तो और भी बेहतर होगा." - बोडो राम, स्थानीय निवासी, ग्राम धनकछार

"नीचे तो उतरे, लेकिन खेत पहाड़ के ऊपर हैं" : पहाड़ से नीचे उतरकर पक्के मकान में रहना शुरू कर चुके बोडो राम ने बताया, "अब से लगभग 15 से 20 साल पहले हमें पहाड़ से नीचे उतरा गया था. हमारे पूर्वज तो जंगल में भटकते हुए ही अपना जीवन बता दिए. हमारे जनजाति के लोग अब भी जंगल में ही निवास कर रहे हैं. हम पक्के मकान में भी रहने लगे हैं, जिससे परिजन के निधन के बाद घर छोड़ने वाली परंपरा भी कम हुई है."

"हमारे बच्चे भी अब स्कूल जाने लगे हैं. हालांकि हम तो अनपढ़ ही रहे हैं. बच्चे स्कूल जा रहे हैं, इस बात की तसल्ली है. हमारे खेत अभी भी पहाड़ के ऊपर ही है, इसलिए खेती किसानी करने हमें पहाड़ पर ही जाना पड़ता है." - बोडो राम, स्थानीय निवासी, ग्राम धनकछार

पहाड़ से नीचे उतरने के बाद आया बदलाव : पहाड़ी कोरवा समुदाय के बालक राम कहते हैं, "मैं अनपढ़ हूं, इसलिए मुझे ठीक-ठाक दिन और तारीख का ज्ञान नहीं है कि कब हम पहाड़ से नीचे उतरे थे. लेकिन पहले हमारे पूर्वज पहाड़ के ऊपर ही रहते थे. हले हम पहाड़ों में ही भटकते रहते थे, लेकिन अब वैसा नहीं है. हम नीचे आकर मकान में निवास कर रहे हैं."

"पहाड़ से नीचे उतरने के बाद कुछ बदलाव तो आया है, इससे हम इनकार नहीं कर रहे. बच्चे स्कूल जाने लगे हैं, अस्पताल की सुविधा से दवा आदि भी मिल रहा है, लेकिन अभी हमारा जीवन रोजी मजदूरी के भरोसे ही चल रहा है." - बालक राम, पहाड़ी कोरवा

जर्जर अवस्था में दिखे शौचालय : वैसे तो प्रधानमंत्री स्वच्छ भारत अभियान के तहत गांवों और कस्बों को ओडीएफ घोषित किया गया है. लेकिन पतरापाली के कोरवा बस्ती में जो शौचालय दिखे, वह पूरी तरह से जर्जर अवस्था में थे. किसी में जलाउ लकड़ी तो कहीं गोबर के कंडे रखने के लिए शौचालय का इस्तेमाल हो रहा है. कोरवा बस्ती के लोग पहाड़ से नीचे उतरकर मैदान क्षेत्र में आ गए हैं. पीएम आवास भी मिला है, लेकिन शौचालय का उपयोग यहां अब भी नहीं हो रहा है.

कोरवा बस्ती में 8 से 10 पीएम आवास : गांव धनकछार से नीचे उतारकर जब कोरवाओं को यहां बसाया गया. तब सबसे पहले इन्हें कच्चा मकान बनाकर दिया गया था. पक्का मकान अब से कुछ साल पहले ही इन्हें मिला है. यहां के आदिवासियों से पता चला कि यहां लगभग 30 परिवार निवासरत हैं, लेकिन इसमें से पीएम आवास केवल 8-10 परिवारों को ही मिला है. प्रशासन के प्रयास से पहाड़ी कोरवा अब पहाड़ से नीचे उतरकर मैदानी क्षेत्र में रहने लगे हैं. पक्का मकान भी मिला है. लेकिन अब भी काफी कुछ किया जाना शेष है, ताकि वह पूरी तरह से मुख्य धारा से जुड़ सकें.

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