वाराणसी : खेती के तौर तरीकों को विकिसत करने और बीजों की गुणवत्ता बढ़ाने को लेकर किए जा रहे उनके प्रयोग अचंभित करते हैं. किसानों को फसल का सही दाम न मिलने का मलाल ही था, जिसने उन्हें किसान से उद्यमी में बदलकर रख दिया. आज वे तीन बीज प्रोसेसिंग प्लांट चला रहे हैं. एक तो अपने गांव में ही लगाया है. साथ ही हजारों किसानों को खुद से जोड़ रखा है. यही कारण है कि उनको सरकार ने पद्मश्री से भी सम्मानित किया. हम बात कर रहे हैं वाराणसी के चंद्रशेखर सिंह की. खेती को उद्यम के रूप में स्थापित करने के पीछे क्या है कहानी, आइए जानते हैं.
सीड प्रोसेसिंग के काम में किसानों को फायदा
शहंशाहपुर में लगे किसान मेले में पद्मश्री चंद्रशेखर सिंह को सम्मानित किया गया. चंद्रशेखर खेती को लेकर नजरिया बदलने और इसे उद्योग के रूप में अपनाने पर खासा जोर देते हैं. बताते हैं, मैं पहले धान, गेहूं, अरहर की खेती करता था. मैंने देखा कि मेरा जो मुनाफा हो रहा है, उसे दूसरे लोग ले रहे हैं. किसान को नहीं मिल रहा है. इसका मैंने अध्ययन किया. इसके बार सीड प्रोसेसिंग के क्षेत्र में उतरने का मन बनाया. इस काम को शुरू करने के बाद अच्छा मुनाफा होने लगा. साथ ही जो किसान मुझसे जुड़े, उनको भी फायदा हो रहा था. आज के वक्त मेरे पास तीन सीड प्रोसेसिंग प्लांट हैं. एक प्लांट गांव में लगाया हुआ है. लगभग 100 लोगों को गांव में रोजगार मिला हुआ है. मेरा गांव भी काफी पहचान बना चुका है. सीड विलेज के नाम से हमारा गांव जाना जाता है.
'किसान खुद को कृषि उद्यमी कहें'
चंद्रशेखर सिंह बताते हैं कि, कई विश्वविद्यालयों के बच्चे, संस्थान को लोग यहां आ चुके हैं. अभी अमेठी से 2000 किसान हमारे फार्म पर विजिट करने के लिए आए थे. उन्होंने देखा कि कैसे उत्पादन किया जाता है. कैसे उत्पाद को प्रोसेसिंग और ब्रांडिंग करके ज्यादा मुनाफा ले सकते हैं. मेरी यही सोच रही है कि किसान उद्यमी बनें. किसान अपने नाम को बदलकर कृषि उद्यमी कहना शुरू करें. जब तक वे कृषि उद्यमी नहीं बनेंगे तब तक उनका पूरा मूल्य और सम्मान नहीं मिलेगा. आज के समय में अगर कोई कह दे कि किसान का बेटा है, किसानी करता है तो उसकी शादी नहीं हो पाती है. उद्यमी बन गए तो 100 लोगों को रोजगार देने लायक बन गए.
कीटनाशकों से खराब हो गई है मिट्टी
चंद्रशेखर कहते हैं कि कृषि में बहुत सी विधाएं हैं. मैं बीज उत्पादन का काम करता हूं. इसमें हजारों किसानों को जोड़ा गया है. उनके यहां फाउंडेशन बीज दिया जाता है. उत्पादन कराया जाता है. उन्हें भी बाजार से एक-दो रुपये अधिक मूल्य दिया जाता है. इसके बाद किसानों के खेतों से गुणवत्तायुक्त बीज लाए जाते हैं, जिससे किसानों को भी इससे फायदा हो. हमारे बच्चे भी इसी काम में लगे हुए हैं. मैं किसानों से यही कहना चाहूंगा कि अब उद्यमी बनने का समय आ गया है. बिना उद्यमी बने आपकी आमदनी नहीं बढ़ेगी. करीब 50-60 साल में जो कीटनाशक का प्रयोग हुआ है. उससे हमारी मिट्टी खराब हो गई है.
प्राकृतिक खेती से अच्छा हो रहा उत्पादन
उन्होंने बताया, 'कीटनाशक की वजह से लोगों का स्वास्थ्य खराब हो गया है. आज मिट्टी का समय कम होता जा रहा है. इसके लिए प्राकृतिक खेती समय की मांग है. मैं लगभग 15 साल से प्राकृतिक खेती ही कर रहा हूं. बहुत ही अच्छा उत्पादन हमारा हो रहा है. सरसों की खली, गोबर के खाद आदि का प्रयोग किया जाता है. कोई भी व्यक्ति किसी भी समय हमारे फार्म पर आकर देख सकता है कि फसल में थोड़ा सा ही अंतर है.
नौकरी देने का काम करें
चंद्रशेखर कहते हैं, आज लोगों की सोच बन गई है कि हम नौकरी करेंगे तो ज्यादा सुखी रहेंगे और कम काम करना पड़ेगा. मगर थोड़े समय के संघर्ष के बाद उद्यम में सब ठीक हो जाता है. मैंने 100 लोगों को रोजगार दिया है. एलएलबी की, लेकिन आगे काम में मन नहीं लगा. अगर प्रण कर लें तो 10-20 हजार की नौकरी न कर लोगों को नौकरी देने के योग्य बना जा सकता है. बस थोड़ा सा समय जरूर लगेगा. आज सरकार भी काफी प्रयास कर रही है. स्टार्टअप भी चल रहे हैं. किसानों को उद्यम में आना चाहिए और युवाओं को भी खेती से जुड़ना चाहिए. इससे बदलाव जरूर होगा. उन्होंने कहा कि अगर आज युवा खेती में आते हैं तो एक नई खोज के साथ और नए तरीके अपनाकर खेती को आगे बढ़ाने का काम करेंगे.