भोपाल। पद्म श्री मिल जाने की खबर 85 वर्ष के ओम प्रकाश शर्मा ने सुनी. घंटा भर जानेने वालों की बधाईयां भी स्वीकार की और फिर इत्मीनान से सो गए. एक कलाकार के लिए सबसे बड़ा पुरस्कार उसका कला कर्म ही है शायद. ना वो किसी पुरस्कार से जरुरत से ज्यादा उत्साहित होता है और ना ही पुरस्कार ना मिलने पर अफसोस जताता है. मध्य प्रदेश के मालवा क्षेत्र की 200 साल पुरानी पारंपरिक लोक गायन विधा माच शैली को बचाए रखने अपने जीवन के सात दशक दे देने वाले रंगमंच की पहचान बन चुके ओम प्रकाश शर्मा को इस वर्ष सरकार ने पद्म श्री सम्नान के लिए चुना है. इसके पहले उन्हें संगीत नाटक अकादमी अवार्ड, शिखर सम्मान और राष्ट्रीय तुलसी सम्मान से नवाजा जा चुका है.
लोक नाटक माच में ओम दादा का योगदान
रंगकर्म में ओम प्रकाश शर्मा को ओम दादा के नाम से जाना जाता है. उन्होंने उस्ताद कालूराम माच अखाड़ा के माच खेल जो कि उज्जैन का प्रसिद्ध लोक नाट्य रुप है. इसका लेखन और निर्देशन किया. जिसका मंचन एमपी समेत भारत के अलग अलग हिस्सो में हुआ.
पांच वर्ष से शुरु हो गई थी तपस्या
उस्ताद पंडित ओम प्रकाश शर्मा ने पांच वर्ष की छोटी उम्र से माच का अध्ययन और अपने पिता पंडित शालीग्राम से शास्त्रीय गायन की शिक्षा लेना शुरु कर दिया था. वर्तमान में वे कालूराम लोक कला केन्द्र के डायरेक्टर हैं. जहां माच कला का संगीत थियेटर सिखाया जाता है.
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क्या है माच
माच कला की प्रस्तुति पहले मालवांचल में होली के आस पास होती थी. बाकायदा मालवा के अखाड़ों में इनकी प्रस्तुति होती और लोग इनका आनंद लिया करते थे. ओम प्रकाश शर्मा की खासियत ये है कि अपने दादा से इस शैली को सीख कर उन्होंने इसे नाटकों में उतारा और 200 साल बाद भी जिंदा रखा है.