लखनऊ: लोकसभा चुनाव 2024 को लेकर पूर्वी उत्तर प्रदेश में राजभर, चौहान, निषाद और प्रजापति सहित कई जातियों को एक साथ साधने के लिए बीजेपी ने ओपी राजभर को दोबारा एनडीए में शामिल कराया. गाजीपुर जिले की घोसी लोकसभा सीट भी राजभर के बेटे को दी. पीएम मोदी और योगी आदित्यनाथ ने ओम प्रकाश के बेटे अरविंद राजभर के समर्थन में रैली भी की, बावजूद इसके एनडीए और सपा के बीच यहां कांटे की टक्कर है. ऐसे में सवाल उठता है कि क्या ओपी राजभर का पूर्वांचल में खासकर घोसी सीट पर जादू चल पाया या नहीं?
साल 2017 में विधान सभा चुनाव की अपेक्षा 2022 के चुनाव में बीजेपी को कम से कम 12 सीटों का नुकसान पूर्वी उत्तर प्रदेश के उन जिलों में हुआ था, जहां ओपी राजभर का प्रभाव माना जाता है. गाजीपुर और आजमगढ़ में तो बीजेपी का खाता तक नहीं खुला था. जबकि सुभासपा सपा के साथ गई तो 2017 में इन इलाकों की 12 सीट जीतने वाली सपा ने 2022 में 31 पर जीत दर्ज की. इसी वजह से सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी के सुप्रीमो ओम प्रकाश राजभर की जरूरत को बीजेपी ने महसूस किया. और फिर साल 2022 के विधान सभा चुनाव के बाद ओपी राजभर ने अखिलेश यादव का साथ छोड़ा तो बीजेपी ने राजभर को अपने पाले में कर लिया. बीजेपी को उम्मीद थी कि पूर्वांचल में मोदी फैक्टर के साथ ही राजभर के जातीय समीकरण का सिक्का चलेगा, और पूर्वांचल को अभेद किला बना दिया जाएगा.
ओपी राजभर को एनडीए ने हारी हुई सीट घोसी दी और यहां से उनका बेटा अरविंद राजभर मैदान में उतरे. ओपी राजभर ने अन्य जिलों की अपेक्षा घोसी सीट में अपनी पूरी ताकत झोंक दी. करीब डेढ़ सौ से अधिक नुक्कड़ सभाएं, एक दर्जन जनसभाएं और फिर पीएम मोदी व सीएम योगी के साथ रैली भी की। घोसी सीट इसलिए भी ओपी राजभर के लिए नाक का सवाल बनी थी क्योंकि गाजीपुर जिले में चौहान, राजभर बाहुल्य है और ओम प्रकाश इसे अपनी ताकत मानते है। इतना ही नहीं राजभर जानते है कि यदि अपने अस्तित्व को जिंदा रखना है तो कम से कम घोसी सीट पर जीत जरूर दर्ज करनी होगी। हालांकि पूरे चुनाव में घोसी में ओपी राजभर के बेटे अरविंद को उतना समर्थन मिलता नहीं दिखा, जिसकी वो अपेक्षा कर रहे थे
पूर्वी उत्तर प्रदेश से आने वाले वरिष्ठ पत्रकार राघवेंद्र त्रिपाठी कहते है कि, घोसी सीट राजभर, चौहान और भूमिहार बाहुल्य है. राजभर और चौहान को साधने के लिए बीजेपी ने सपा का साथ छोड़ने वाले ओपी राजभर और दारा सिंह चौहान को वापस अपने साथ मिलाया था. लेकिन लोकसभा चुनाव में जातीय समीकरण प्रत्याशियों के ऐलान होते ही बिगड़ गए थे. एनडीए ने राजभर तो इंडिया गठबंधन ने सपा के राजीव राय को प्रत्यासी बना दिया. बची कूची कसर बसपा ने पूरी कर दी और चौहान बिरादरी से आने वाले नेता बालकृष्ण चौहान को प्रत्याशी बना दिया। भूमिहार वोट बैंक भले ही बीजेपी का कोर वोट बैंक हो लेकिन वह ओपी राजभर के साथ जाने को तैयार नहीं था. हालांकि डिप्टी सीएम ने अरविंद राजभर को घुटने के बल खड़े होकर बीजेपी के इन्ही कार्यकर्ताओं से माफी मंगवा थोड़ी बहुत खाई मिटाने का काम जरूर किया लेकिन सपा प्रत्यासी राजीव राय ठीक ठाक भूमिहार वोट बैंक पर सेंध लगाने में कामयाब रहे. वहीं चौहान वोट बैंक भी बसपा के प्रत्याशी बालकृष्ण के साथ चला गया है। ऐसे में जिस जातीय समीकरण के दम पर ओपी राजभर अब तक राजनीति करते आए है , इस चुनाव में उसी चक्रव्यू में वो घिर गए है.
राजनीतिक विश्लेषक जय प्रकाश पाल कहते है कि, न सिर्फ घोसी बल्कि पूर्वांचल की अन्य कई सीटों पर भी ओपी राजभर का उतना सिक्का चलना मुश्किल है, जितना बीजेपी ने सोच रखा था. भले ही राजभर ने पूर्वांचल की करीब एक दर्जन सीटों पर एनडीए के लिए प्रचार किया लेकिन अधिकांश समय उन्होंने अपने बेटे की सीट घोसी पर समय बिताया था। जबकि वर्ष 2022 के विधान सभा चुनाव में उनका बेटा शिवपुरी सीट से चुनाव लड़ा लेकिन राजभर ने सपा के साथ मिलकर प्रचार पूरे पूर्वांचल की सीटों पर किया था. हालांकि इस चुनाव में बेटा हार गया था.
जय प्रकाश पाल बताते है कि पूर्वांचल की कहार, कश्यप, केवट, मल्लाह, निषाद, कुम्हार, प्रजापति, धीवर, बिंद, भर, राजभर, धीमर, बाथम, समेत 17 जातियों पर ओम प्रकाश राजभर का प्रभाव माना जाता है. ये जातियां पूर्वांचल के गोरखपुर, कुशीनगर, महाराजगंज, बलिया, संतकबीरनगर, जौनपुर, वाराणसी, भदोही, गोंडा, श्रावस्ती, बहराइच, मऊ, गाजीपुर, बाराबंकी और सुल्तानपुर जिलों में बाहुल्य है. राजभर यदि अपने बेटे की सीट घोसी के अलावा भी इन जिलों में अधिक प्रचार करते तो एनडीए को सबसे अधिक फायदा होता. लेकिन उनका सिर्फ घोसी में प्रचार करना और अन्य सीटों पर एक दो जनसभाओं में शामिल होने से जातीय समीकरण साधना एनडीए के लिए थोड़ा मुश्किल रहा है.