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नवरात्रों पर कीजिए हिमाचल के इन शक्तिपीठों के दर्शन, रोचक है इन मंदिरों का इतिहास - shaktipeeth in himachal

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By ETV Bharat Himachal Pradesh Team

Published : 2 hours ago

3 अक्टूबर से शारदीय नवरात्रों की शुरुआत हो रही है. इस मौके पर हम आपको हिमाचल के कुछ प्रसिद्ध मंदिरों के बारे में बताएंगे. इन मंदिरों का इतिहास काफी प्राचीन है. सारा साल भर इन मंदिरों में भारी भीड़ रहती है.

हिमाचल के शक्तिपीठ
हिमाचल के शक्तिपीठ (सोशल मीडिया)

शिमला: हिमाचल प्रदेश को देवभूमि के नाम से जाना जाता है. यहां देवी-देवताओं के कई प्राचीन मंदिर हैं. कई मंदिरों का इतिहास तो सदियों पुराना है. 3 अक्टूबर से शारदीय नवरात्र शुरू हो रहे हैं. इस मौके पर हम आपको हिमाचल के कुछ खास और चुनिंदा मंदिरों के बारे में बताएंगे जहां नवरात्र में भारी श्रद्धालु पहुंचते हैं. इन मंदिरों में इस दौरान भारी भीड़ देखने को मिलती है.

चिंतपूर्णी मंदिर

माना जाता है कि जब चिंतपूर्णी धाम पर माता सती के चरण गिर थे. ये शक्तिपीठ अपनी प्रकृति सुंदर के लिए भी जाना जाता है. चिंतपूर्ण मंदिर हिमाचल प्रदेश के ऊना जिले में स्थित है. पूरा साल यहां भक्तों की भीड़ लगी रहती है, लेकिन नवरात्रों में यहां दूर दूर से श्रद्धालु माथा टेकने आते हैं. नवरात्रों में इस मंदिर को विशेष तौर पर सजाया जाता है. गर्मी के समय में मंदिर के खुलने का समय सुबह 4 बजे से रात 11 बजे तक है। सर्दियों में मंदिर सुबह 5 बजे से रात्रि 10 बजे तक खुलता है.

सोशल मीडिया
चिंतपूर्णी मंदिर (सोशल मीडिया)

नैना देवी मंदिर

बिलासपुर का नैना देवी मंदिर 51 शक्तिपीठों में से एक है. माना जाता है कि यहां देवी की आंखें गिरी थी, इसलिए इसे नैना देवी के नाम से जाना जाता है. कहा जाता है कि मवेशियों को चराते समय एक गवाले की नजर सफेद गाय पर पड़ी, जिसके थनों से दूध एक पत्थर पर गिर रहा था. एक बाद गवाले ने ये बात राजा वीर चंद को बताई. तब राजा ने उसी स्थान पर श्री नैना देवी नाम के मंदिर का निर्माण करवाया.

नैणा देवी माता मंदिर
नैणा देवी माता मंदिर (सोशल मीडिया)

ब्रजेश्वरी देवी मंदिर

हिमाचल के कांगड़ा जिले में स्थित 51 शक्तिपीठों में से ब्रजेश्वरी देवी के मंदिर में श्रद्धालुओं की भारी भीड़ रहती है. पौराणिक मान्यताओं के अनुसार माता सती का दाहिना वक्ष यहां गिरा था. नवरात्रों में इस मंदिर में बहुत चकाचौंध होती है. माना जाता है कि महाभारत काल में पांडवों ने इस मंदिर का निर्माण किया था.

सोशल मीडिया
ब्रजेश्वरी मंदिर (सोशल मीडिया)

कांगड़ा का ज्वालाजी मंदिर

ज्वालाजी मंदिर कांगड़ा जिले में स्थित है. यहां देवी मां ज्योति स्वरूप में विराजमान हैं. मंदिर ये ज्वाला माता की ज्योति अनंतकाल से जलती आ रही है. अकबर ने पहाड़ी से नहर खदुवाकर इन्हें बुझाने की कोशिश की थी, लेकिन नाकाम रहा था. नवरात्रों में यहां भक्तों को भारी भीड़ रहती है. धर्मशाला से 56 किलोमीटर दूर इस मंदिर में माता की नौ अनंत ज्वालाएं जलती हैं. इन्हें देवी के नौ स्वरूप माना जाता है. कहा जाता है कि यहां देवी सती की जीभ गिरी थी.

ज्वालाजी मंदिर
ज्वालाजी मंदिर (सोशल मीडिया)

बगलामुखी मंदिर

जिला कांगड़ा में देहरा विधानसभा के वनखंडी में माता बगलामुखी का मंदिर स्थित हैं. माना जाता है कि द्वापर युग में पांडवों ने अज्ञातवास के दौरान एक ही रात में इस मंदिर को बनाया था. यहां सर्वप्रथम पांडव पुत्र अर्जुन और भीम ने युद्ध में शक्तियां प्राप्त करने और मां बगलामुखी की कृपा पाने के लिए विशेष पूजा की थी. त्रेता युग में बगलामुखी को रावण की ईष्ट देवी माना गया है. वहीं, श्रीराम ने भी शक्तियां प्राप्त करने के लिए बगलामुखी माता की पूजा की थी.

बगलामुखी मंदिर
बगलामुखी मंदिर (सोशल मीडिया)

बालासुंदरी मंदिर

सिरमौर जिले के नाहन से 25 किलोमीटर दूर त्रिलोकपुर में बालासुंदरी का खूबसूरत मंदिर है. ये मंदिर करीब 450 साल पुराना है. हिमाचल के अलावा पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड सहित अन्य राज्यों से यहां श्रद्धालु माथा टेकने आते हैं. लोककथाओं के अनुसार माता यहां पिंडी रूप में नमक की बोरी में यूपी के देवबंद से आई थीं. इसके बाद 1573 में राजा प्रदीप प्रकाश ने यहां मंदिर का निर्माण करवाया था.

बालासुंदरी मंदिर
बालासुंदरी मंदिर (ETV BHARAT)

हाटेश्वरी माता का मंदिर

हिमाचल प्रदेश की खूबसूरत पहाड़ियों के शिमला के हाटकोटी में हाटेश्वरी माता का मंदिर आध्यात्मिक और सांस्कृतिक विरासत का एकअनूठा स्थान है. यह मंदिर लाखों लोगों की आस्था का केंद्र है. यह शिमला से करीब 110 किमी की दूरी पर पब्बर नदी के किनारे है. मान्यता है कि इस प्राचीन मंदिर का निर्माण पांडवों ने किया था. मंदिर के नजदीक ही सुनपुर के टीले पर कभी विराट नगरी थी. जहां पांडवों ने अपने गुप्त वास के कई वर्ष व्यतीत किए थे. माता के मंदिर में तांबे का घड़ा, शिव मंदिर और पत्थरों से बनाए गए पांच पांडव आज भी विराजमान हैं.

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हाटेश्वरी मंदिर (सोशल मीडिया)

चामुंडा माता मंदिर

चामुंडा माता मंदिर कांगड़ा में धर्मशाला से 15 किलोमीटर दूर बनेर खड्ड के किनारे है. चामुंडा मंदिर का नाम चंड मुंड नाम के राक्षसों का संहार करने के बाद पड़ा है. पूरा साल यहां पर श्रद्धालुओं की भीडड़ रहती है. यहां चट्टान के नीचे भगवान शिव भी विराजमान हैं. इस मंदिर में बस या टैक्सी कर आसानी से पहुंचा जा सकता है. ये मंदिर धर्मशाला-पालमपुर हाईवे के साथ ही स्थित है.

सोशल मीडिया
चामुंडा मंदिर (हिमालयन डिजिटल)

कुल्लू का हिडिंबा मंदिर

माता हिडिंबा का विवाह पांडव पुत्र भीम से हुआ था. ये कुल्लू मनाली क्षेत्र की पूजनीय देवी है. मनाली में देवी हिडिंबा का पैगोड़ा शैली में अति प्रचीन मंदिर है. हिड़िंबा माता कुल्लू के राज परिवार की कुल देवी है. कहा जाता है हिडिंबा देवी का जन्म राक्षसी कुल में हुआ था. भीम से विवाह के बाद वो देवी स्वरूप को प्राप्त हुई थी.

हिडड़िंबा माता मंदिर
हिडड़िंबा माता मंदिर (ETV BHARAT)

ये भी पढ़ें: इस नवरात्रि अपनी राशि के अनुरूप करें मां दुर्गा की आराधना, माता पूरी करेंगी हर मनोकामना

शिमला: हिमाचल प्रदेश को देवभूमि के नाम से जाना जाता है. यहां देवी-देवताओं के कई प्राचीन मंदिर हैं. कई मंदिरों का इतिहास तो सदियों पुराना है. 3 अक्टूबर से शारदीय नवरात्र शुरू हो रहे हैं. इस मौके पर हम आपको हिमाचल के कुछ खास और चुनिंदा मंदिरों के बारे में बताएंगे जहां नवरात्र में भारी श्रद्धालु पहुंचते हैं. इन मंदिरों में इस दौरान भारी भीड़ देखने को मिलती है.

चिंतपूर्णी मंदिर

माना जाता है कि जब चिंतपूर्णी धाम पर माता सती के चरण गिर थे. ये शक्तिपीठ अपनी प्रकृति सुंदर के लिए भी जाना जाता है. चिंतपूर्ण मंदिर हिमाचल प्रदेश के ऊना जिले में स्थित है. पूरा साल यहां भक्तों की भीड़ लगी रहती है, लेकिन नवरात्रों में यहां दूर दूर से श्रद्धालु माथा टेकने आते हैं. नवरात्रों में इस मंदिर को विशेष तौर पर सजाया जाता है. गर्मी के समय में मंदिर के खुलने का समय सुबह 4 बजे से रात 11 बजे तक है। सर्दियों में मंदिर सुबह 5 बजे से रात्रि 10 बजे तक खुलता है.

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चिंतपूर्णी मंदिर (सोशल मीडिया)

नैना देवी मंदिर

बिलासपुर का नैना देवी मंदिर 51 शक्तिपीठों में से एक है. माना जाता है कि यहां देवी की आंखें गिरी थी, इसलिए इसे नैना देवी के नाम से जाना जाता है. कहा जाता है कि मवेशियों को चराते समय एक गवाले की नजर सफेद गाय पर पड़ी, जिसके थनों से दूध एक पत्थर पर गिर रहा था. एक बाद गवाले ने ये बात राजा वीर चंद को बताई. तब राजा ने उसी स्थान पर श्री नैना देवी नाम के मंदिर का निर्माण करवाया.

नैणा देवी माता मंदिर
नैणा देवी माता मंदिर (सोशल मीडिया)

ब्रजेश्वरी देवी मंदिर

हिमाचल के कांगड़ा जिले में स्थित 51 शक्तिपीठों में से ब्रजेश्वरी देवी के मंदिर में श्रद्धालुओं की भारी भीड़ रहती है. पौराणिक मान्यताओं के अनुसार माता सती का दाहिना वक्ष यहां गिरा था. नवरात्रों में इस मंदिर में बहुत चकाचौंध होती है. माना जाता है कि महाभारत काल में पांडवों ने इस मंदिर का निर्माण किया था.

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ब्रजेश्वरी मंदिर (सोशल मीडिया)

कांगड़ा का ज्वालाजी मंदिर

ज्वालाजी मंदिर कांगड़ा जिले में स्थित है. यहां देवी मां ज्योति स्वरूप में विराजमान हैं. मंदिर ये ज्वाला माता की ज्योति अनंतकाल से जलती आ रही है. अकबर ने पहाड़ी से नहर खदुवाकर इन्हें बुझाने की कोशिश की थी, लेकिन नाकाम रहा था. नवरात्रों में यहां भक्तों को भारी भीड़ रहती है. धर्मशाला से 56 किलोमीटर दूर इस मंदिर में माता की नौ अनंत ज्वालाएं जलती हैं. इन्हें देवी के नौ स्वरूप माना जाता है. कहा जाता है कि यहां देवी सती की जीभ गिरी थी.

ज्वालाजी मंदिर
ज्वालाजी मंदिर (सोशल मीडिया)

बगलामुखी मंदिर

जिला कांगड़ा में देहरा विधानसभा के वनखंडी में माता बगलामुखी का मंदिर स्थित हैं. माना जाता है कि द्वापर युग में पांडवों ने अज्ञातवास के दौरान एक ही रात में इस मंदिर को बनाया था. यहां सर्वप्रथम पांडव पुत्र अर्जुन और भीम ने युद्ध में शक्तियां प्राप्त करने और मां बगलामुखी की कृपा पाने के लिए विशेष पूजा की थी. त्रेता युग में बगलामुखी को रावण की ईष्ट देवी माना गया है. वहीं, श्रीराम ने भी शक्तियां प्राप्त करने के लिए बगलामुखी माता की पूजा की थी.

बगलामुखी मंदिर
बगलामुखी मंदिर (सोशल मीडिया)

बालासुंदरी मंदिर

सिरमौर जिले के नाहन से 25 किलोमीटर दूर त्रिलोकपुर में बालासुंदरी का खूबसूरत मंदिर है. ये मंदिर करीब 450 साल पुराना है. हिमाचल के अलावा पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड सहित अन्य राज्यों से यहां श्रद्धालु माथा टेकने आते हैं. लोककथाओं के अनुसार माता यहां पिंडी रूप में नमक की बोरी में यूपी के देवबंद से आई थीं. इसके बाद 1573 में राजा प्रदीप प्रकाश ने यहां मंदिर का निर्माण करवाया था.

बालासुंदरी मंदिर
बालासुंदरी मंदिर (ETV BHARAT)

हाटेश्वरी माता का मंदिर

हिमाचल प्रदेश की खूबसूरत पहाड़ियों के शिमला के हाटकोटी में हाटेश्वरी माता का मंदिर आध्यात्मिक और सांस्कृतिक विरासत का एकअनूठा स्थान है. यह मंदिर लाखों लोगों की आस्था का केंद्र है. यह शिमला से करीब 110 किमी की दूरी पर पब्बर नदी के किनारे है. मान्यता है कि इस प्राचीन मंदिर का निर्माण पांडवों ने किया था. मंदिर के नजदीक ही सुनपुर के टीले पर कभी विराट नगरी थी. जहां पांडवों ने अपने गुप्त वास के कई वर्ष व्यतीत किए थे. माता के मंदिर में तांबे का घड़ा, शिव मंदिर और पत्थरों से बनाए गए पांच पांडव आज भी विराजमान हैं.

सोशल मीडिया
हाटेश्वरी मंदिर (सोशल मीडिया)

चामुंडा माता मंदिर

चामुंडा माता मंदिर कांगड़ा में धर्मशाला से 15 किलोमीटर दूर बनेर खड्ड के किनारे है. चामुंडा मंदिर का नाम चंड मुंड नाम के राक्षसों का संहार करने के बाद पड़ा है. पूरा साल यहां पर श्रद्धालुओं की भीडड़ रहती है. यहां चट्टान के नीचे भगवान शिव भी विराजमान हैं. इस मंदिर में बस या टैक्सी कर आसानी से पहुंचा जा सकता है. ये मंदिर धर्मशाला-पालमपुर हाईवे के साथ ही स्थित है.

सोशल मीडिया
चामुंडा मंदिर (हिमालयन डिजिटल)

कुल्लू का हिडिंबा मंदिर

माता हिडिंबा का विवाह पांडव पुत्र भीम से हुआ था. ये कुल्लू मनाली क्षेत्र की पूजनीय देवी है. मनाली में देवी हिडिंबा का पैगोड़ा शैली में अति प्रचीन मंदिर है. हिड़िंबा माता कुल्लू के राज परिवार की कुल देवी है. कहा जाता है हिडिंबा देवी का जन्म राक्षसी कुल में हुआ था. भीम से विवाह के बाद वो देवी स्वरूप को प्राप्त हुई थी.

हिडड़िंबा माता मंदिर
हिडड़िंबा माता मंदिर (ETV BHARAT)

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