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उत्तराखंड में कैसे गुजरेगा मानसून सीजन? आपदा प्रबंधन विभाग में धड़ाधड़ हो रहे हैं इस्तीफे - Disaster Management Department - DISASTER MANAGEMENT DEPARTMENT

Uttarakhand Disaster Management Department मानसून सीजन से पहले उत्तराखंड आपदा प्रबंधन विभाग में इस्तीफो का दौर जारी है. जिससे आने वाले मानसून सीजन में परेशानियां बढ़ सकती हैं. क्यों कि मानसून सीजन में आपदा प्रदेश में कहर बनकर टूटती हैं. विस्तार से पढ़ें खासा रिपोर्ट...

Uttarakhand Disaster Management Department
उत्तराखंड आपदा प्रबंधन विभाग (फोटो-ईटीवी भारत)
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By ETV Bharat Uttarakhand Team

Published : Jun 17, 2024, 1:42 PM IST

Updated : Jun 17, 2024, 2:12 PM IST

देहरादून: उत्तराखंड में जंगल जल रहे हैं और मानसून सत्र भी दस्तक देने जा रहा है. यानी अभी जंगलों की आग आपदा के रूप में मुसीबत बनी हुई है और आने वाले दिन बरसात संबंधी आपदाओं के लिए संभावित चिंता को बढ़ा रहे हैं. इन हालातों के बीच उत्तराखंड का आपदा प्रबंधन सिस्टम सिर्फ कहने मात्र के लिए रह गया है. यहां एक के बाद एक अधिकारी इस्तीफे दे रहे हैं, जिसने आपदा की तैयारी को लेकर आपदा प्रबंधन विभाग की पोल खोल दी है.

आपदा प्रबंधन विभाग में इस्तीफों से हड़कंप: उत्तराखंड में आपदा प्रबंधन विभाग को एक्टिव करने की कोशिश हो रही है. वैसे तो हिमालय राज्य उत्तराखंड में साल भर आपदाएं मुसीबत बनी रहती है. लेकिन मानसून सत्र खासतौर पर राज्य के लिए मुसीबत बनकर आता है. हाल ही में मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने भी मानसून सत्र की तैयारी संबंधी बैठक ली है. लेकिन आपको जानकर हैरानी होगी कि ये विभाग अब कहने मात्र को ही बचा हुआ है और विभाग में एक के बाद एक कई इस्तीफो ने हड़कंप मचाया हुआ है. पिछले 20 साल से एग्जीक्यूटिव डायरेक्टर के रूप में काम कर रहे अधिकारी से लेकर दूसरे महत्वपूर्ण पदों वाले अधिकारी भी यहां से इस्तीफा दे चुके हैं. खबर है कि इन हालातों की जानकारी मुख्यमंत्री कार्यालय तक भी पहुंच गई है. लेकिन फिलहाल आपदा प्रबंधन को लेकर इन स्थितियों से निपटने के लिए कोई खास एक्शन प्लान नहीं बनाया जा सका है.

आपदा प्रबंधन जैसे संवेदनशील विभाग को भी बनाया कामचलाऊ: उत्तराखंड देश में सबसे पहले आपदा प्रबंधन मंत्रालय बनाने वाला राज्य होने का दम तो भरता है, लेकिन यहां की ब्यूरोक्रेसी और सत्ताधारी राजनीतिज्ञ इस विभाग को कभी कांट्रेक्ट व्यवस्था से बाहर ही नहीं ला पाए. विशेषज्ञों से लेकर जिला स्तर तक के कर्मचारियों से सिर्फ कॉन्ट्रैक्ट पर ही काम लिया जा रहा है. यहां आपदा प्रबंधन विभाग में स्थायी के नाम पर या तो सचिव आपदा प्रबंधन है या शासन में बैठे सचिवालय सेवा के अधिकारी, कर्मचारी. बाकी एग्जीक्यूटिव डायरेक्टर से लेकर नीचे के कर्मचारियों को कामचलाऊ व्यवस्था में ही रखा गया है.

एग्जीक्यूटिव डायरेक्टर से लेकर विशेषज्ञों तक में दिया इस्तीफा: हाल ही में मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने मानसून सीजन की तैयारी को लेकर बैठक ली है और मुख्य सचिव भी संदर्भ में दिशा निर्देश जारी कर चुकी है. लेकिन इस बैठक में आपदा प्रबंधन सचिव ने तैयारी पर मुख्यमंत्री को कौन सा एक्शन प्लान बताया होगा यह समझना थोड़ा मुश्किल है. ऐसा इसलिए क्योंकि आपदा प्रबंधन विभाग का राज्य में मुख्य स्वरूप उत्तराखंड स्टेट डिजास्टर मैनेजमेंट अथॉरिटी के रूप में है और इस अथॉरिटी में काम करने वाले एग्जीक्यूटिव डायरेक्टर पीयूष रौतेला पहले ही इस्तीफा दे चुके हैं.

इसके अलावा जूनियर एग्जीक्यूटिव और SEOC इंचार्ज राहुल जुगरान भी इस्तीफा दे चुके हैं. फिलहाल यह दोनों अधिकारी नोटिस पीरियड पर है. इसके अलावा मैनेजर टेक्निकल भूपेंद्र भैसोड़ा, डीआरएम स्पेशलिस्ट गिरीश जोशी, सिविल इंजीनियर शैलेंद्र घिल्डियाल भी पहले ही रिजाइन कर चुके हैं. यह सब वह अधिकारी है जो आपदा प्रबंधन के साथ 5 साल से लेकर 20 साल से जुड़े हुए थे. इतना ही नहीं देहरादून में जिला स्तर पर आपदा अधिकारी के रूप में काम कर रही दीपशिखा और मनोज पांडे ने भी इस्तीफा दे दिया है. सूत्र बताते हैं कि बाकी कई जिलों में भी इस्तीफे दिए गए हैं.

ना कोई इंक्रीमेंट ना प्रमोशन, उल्टा जबरन दबाव बनाए जाने का आरोप: आपदा प्रबंधन विभाग में 20 साल से काम कर रहे एग्जीक्यूटिव डायरेक्टर पीयूष रौतेला को 2019 से कोई इंक्रीमेंट ही नहीं मिला है, न ही प्रमोशन का ही कोई स्केल दिया गया. लिहाजा पीयूष रौतेला ने इस्तीफा देने का फैसला किया. जूनियर एग्जीक्यूटिव राहुल जुगरान भी इस्तीफा देकर नोटिस पीरियड में है और उन्होंने तो हाई कोर्ट तक का भी दरवाजा खटखटाया है. इस मामले में पिछले महीने ही हाईकोर्ट ने सरकार को निर्देश देते हुए काउंटर फाइल करने के लिए कहा है. राहुल जुगरान हाईकोर्ट रेगुलाइजेशन को लेकर गए हैं, जिसकी अगली तारीख जुलाई में लगी है. आरोप यह भी है कि एक तरफ ना तो सरकार की तरफ से कितने साल काम करने के बाद भी कोई लाभ दिया गया है ऊपर से बेवजह का दबाव भी बनाया जा रहा है. सचिव आपदा रंजीत सिन्हा के स्तर पर भी कुछ शिकायतें इस्तीफा देने वाले अफसरों को हैं.

विभाग में पहली बार अकाउंटेंट के रूप में मिले स्थायी कर्मी: आपदा प्रबंधन विभाग राज्य में अथॉरिटी के रूप में काम कर रहा है और यहां रेगुलाइजेशन नहीं होने की अधिकारी और कर्मचारियों को बड़ी शिकायत है. हालांकि पहली बार इस विभाग में स्थायी कर्मचारियों के रूप में अकाउंटेंट रखे गए हैं. आयोग के स्तर पर हुई परीक्षा के बाद पहली बार इस विभाग को स्थायी कर्मचारी मिल रहे हैं. खबर है कि इस पूरे मामले की जानकारी मुख्यमंत्री कार्यालय तक पहुंच गई है.

ऐसे में अब इंतजार है कि सरकार इस स्थिति में क्या निर्णय लेती है. राज्य में फिलहाल वनाग्नि के रूप में एक बड़ी आपदा से प्रदेश गुजर रहा है और अब मानसून भी नजदीक है. ऐसे में सरकार को जल्द ही इस संबंध में कोई बड़ा कदम उठाना होगा, ताकि प्रदेश में आपदा के दौरान मैनपावर की समस्या खड़ी ना हो. हालांकि, पिछले कई सालों से आपदा प्रबंधन में एक कुशल खिलाड़ी की तरह आपदा की घटनाओं में नियंत्रण को लेकर काम कर रहे अधिकारी कर्मचारियों का विकेट गिरना आने वाली चुनौतियों के लिए एक बड़ा संकट बन गया है.

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देहरादून: उत्तराखंड में जंगल जल रहे हैं और मानसून सत्र भी दस्तक देने जा रहा है. यानी अभी जंगलों की आग आपदा के रूप में मुसीबत बनी हुई है और आने वाले दिन बरसात संबंधी आपदाओं के लिए संभावित चिंता को बढ़ा रहे हैं. इन हालातों के बीच उत्तराखंड का आपदा प्रबंधन सिस्टम सिर्फ कहने मात्र के लिए रह गया है. यहां एक के बाद एक अधिकारी इस्तीफे दे रहे हैं, जिसने आपदा की तैयारी को लेकर आपदा प्रबंधन विभाग की पोल खोल दी है.

आपदा प्रबंधन विभाग में इस्तीफों से हड़कंप: उत्तराखंड में आपदा प्रबंधन विभाग को एक्टिव करने की कोशिश हो रही है. वैसे तो हिमालय राज्य उत्तराखंड में साल भर आपदाएं मुसीबत बनी रहती है. लेकिन मानसून सत्र खासतौर पर राज्य के लिए मुसीबत बनकर आता है. हाल ही में मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने भी मानसून सत्र की तैयारी संबंधी बैठक ली है. लेकिन आपको जानकर हैरानी होगी कि ये विभाग अब कहने मात्र को ही बचा हुआ है और विभाग में एक के बाद एक कई इस्तीफो ने हड़कंप मचाया हुआ है. पिछले 20 साल से एग्जीक्यूटिव डायरेक्टर के रूप में काम कर रहे अधिकारी से लेकर दूसरे महत्वपूर्ण पदों वाले अधिकारी भी यहां से इस्तीफा दे चुके हैं. खबर है कि इन हालातों की जानकारी मुख्यमंत्री कार्यालय तक भी पहुंच गई है. लेकिन फिलहाल आपदा प्रबंधन को लेकर इन स्थितियों से निपटने के लिए कोई खास एक्शन प्लान नहीं बनाया जा सका है.

आपदा प्रबंधन जैसे संवेदनशील विभाग को भी बनाया कामचलाऊ: उत्तराखंड देश में सबसे पहले आपदा प्रबंधन मंत्रालय बनाने वाला राज्य होने का दम तो भरता है, लेकिन यहां की ब्यूरोक्रेसी और सत्ताधारी राजनीतिज्ञ इस विभाग को कभी कांट्रेक्ट व्यवस्था से बाहर ही नहीं ला पाए. विशेषज्ञों से लेकर जिला स्तर तक के कर्मचारियों से सिर्फ कॉन्ट्रैक्ट पर ही काम लिया जा रहा है. यहां आपदा प्रबंधन विभाग में स्थायी के नाम पर या तो सचिव आपदा प्रबंधन है या शासन में बैठे सचिवालय सेवा के अधिकारी, कर्मचारी. बाकी एग्जीक्यूटिव डायरेक्टर से लेकर नीचे के कर्मचारियों को कामचलाऊ व्यवस्था में ही रखा गया है.

एग्जीक्यूटिव डायरेक्टर से लेकर विशेषज्ञों तक में दिया इस्तीफा: हाल ही में मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने मानसून सीजन की तैयारी को लेकर बैठक ली है और मुख्य सचिव भी संदर्भ में दिशा निर्देश जारी कर चुकी है. लेकिन इस बैठक में आपदा प्रबंधन सचिव ने तैयारी पर मुख्यमंत्री को कौन सा एक्शन प्लान बताया होगा यह समझना थोड़ा मुश्किल है. ऐसा इसलिए क्योंकि आपदा प्रबंधन विभाग का राज्य में मुख्य स्वरूप उत्तराखंड स्टेट डिजास्टर मैनेजमेंट अथॉरिटी के रूप में है और इस अथॉरिटी में काम करने वाले एग्जीक्यूटिव डायरेक्टर पीयूष रौतेला पहले ही इस्तीफा दे चुके हैं.

इसके अलावा जूनियर एग्जीक्यूटिव और SEOC इंचार्ज राहुल जुगरान भी इस्तीफा दे चुके हैं. फिलहाल यह दोनों अधिकारी नोटिस पीरियड पर है. इसके अलावा मैनेजर टेक्निकल भूपेंद्र भैसोड़ा, डीआरएम स्पेशलिस्ट गिरीश जोशी, सिविल इंजीनियर शैलेंद्र घिल्डियाल भी पहले ही रिजाइन कर चुके हैं. यह सब वह अधिकारी है जो आपदा प्रबंधन के साथ 5 साल से लेकर 20 साल से जुड़े हुए थे. इतना ही नहीं देहरादून में जिला स्तर पर आपदा अधिकारी के रूप में काम कर रही दीपशिखा और मनोज पांडे ने भी इस्तीफा दे दिया है. सूत्र बताते हैं कि बाकी कई जिलों में भी इस्तीफे दिए गए हैं.

ना कोई इंक्रीमेंट ना प्रमोशन, उल्टा जबरन दबाव बनाए जाने का आरोप: आपदा प्रबंधन विभाग में 20 साल से काम कर रहे एग्जीक्यूटिव डायरेक्टर पीयूष रौतेला को 2019 से कोई इंक्रीमेंट ही नहीं मिला है, न ही प्रमोशन का ही कोई स्केल दिया गया. लिहाजा पीयूष रौतेला ने इस्तीफा देने का फैसला किया. जूनियर एग्जीक्यूटिव राहुल जुगरान भी इस्तीफा देकर नोटिस पीरियड में है और उन्होंने तो हाई कोर्ट तक का भी दरवाजा खटखटाया है. इस मामले में पिछले महीने ही हाईकोर्ट ने सरकार को निर्देश देते हुए काउंटर फाइल करने के लिए कहा है. राहुल जुगरान हाईकोर्ट रेगुलाइजेशन को लेकर गए हैं, जिसकी अगली तारीख जुलाई में लगी है. आरोप यह भी है कि एक तरफ ना तो सरकार की तरफ से कितने साल काम करने के बाद भी कोई लाभ दिया गया है ऊपर से बेवजह का दबाव भी बनाया जा रहा है. सचिव आपदा रंजीत सिन्हा के स्तर पर भी कुछ शिकायतें इस्तीफा देने वाले अफसरों को हैं.

विभाग में पहली बार अकाउंटेंट के रूप में मिले स्थायी कर्मी: आपदा प्रबंधन विभाग राज्य में अथॉरिटी के रूप में काम कर रहा है और यहां रेगुलाइजेशन नहीं होने की अधिकारी और कर्मचारियों को बड़ी शिकायत है. हालांकि पहली बार इस विभाग में स्थायी कर्मचारियों के रूप में अकाउंटेंट रखे गए हैं. आयोग के स्तर पर हुई परीक्षा के बाद पहली बार इस विभाग को स्थायी कर्मचारी मिल रहे हैं. खबर है कि इस पूरे मामले की जानकारी मुख्यमंत्री कार्यालय तक पहुंच गई है.

ऐसे में अब इंतजार है कि सरकार इस स्थिति में क्या निर्णय लेती है. राज्य में फिलहाल वनाग्नि के रूप में एक बड़ी आपदा से प्रदेश गुजर रहा है और अब मानसून भी नजदीक है. ऐसे में सरकार को जल्द ही इस संबंध में कोई बड़ा कदम उठाना होगा, ताकि प्रदेश में आपदा के दौरान मैनपावर की समस्या खड़ी ना हो. हालांकि, पिछले कई सालों से आपदा प्रबंधन में एक कुशल खिलाड़ी की तरह आपदा की घटनाओं में नियंत्रण को लेकर काम कर रहे अधिकारी कर्मचारियों का विकेट गिरना आने वाली चुनौतियों के लिए एक बड़ा संकट बन गया है.

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Last Updated : Jun 17, 2024, 2:12 PM IST
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