पटना: बिहार में गंगा में दिखने वाली डॉल्फिन अपने अस्तित्व के लिए संघर्ष कर रही हैं. पिछली सदी में, अवैध शिकार सहित कई कारणों से उनकी संख्या में कमी आई है, लेकिन बैराज, बांध और निर्माण अभी भी मीठे पानी में रहने वाली इन मछलियों के लिए खतरा बने हुए हैं.
नदी में कंस्ट्रक्शन डॉल्फिन के लिए खतरा: डॉल्फिन मैन, पद्मश्री डॉ रविंद्र कुमार सिन्हा बताते हैं कि नदियों में चल रहा कंस्ट्रक्शन वर्क नदियों के अस्तित्व पर ही खतरा पैदा कर रही है. नदियों के अस्तित्व पर जब संकट पैदा होगा तो स्वाभाविक है उसके जीव जंतुओं के अस्तित्व पर भी संकट उत्पन्न होगा. नदी में कंस्ट्रक्शन वर्क के कारण अगर डॉल्फिन मार नहीं रही है तो वह पलायन जरूर कर रही है.
पटना से डॉल्फिन का पलायन: उन्होंने कहा कि पहले पटना के दीघा क्षेत्र में काफी डॉल्फिन पाई जाती थी. लेकिन गंगा नदी में पुल पुलिया के निर्माण के कारण यह फतुहा और हाथीदह के बीच शिफ्ट हो गई है. इसे डॉल्फिन का पलायन मना जा रहा है उन्होंने कहा कि सर्वेक्षणों से पता चला है कि 2016 से गंगा डॉल्फिन की संख्या बढ़ी है, लेकिन उनकी सुरक्षा के लिए पर्याप्त कदम नहीं उठाए जा रहे हैं.
बांध बैराज भी डॉल्फिन के ब्रीडिंग के लिए खतरनाक: डॉ आरके सिन्हा ने बताया कि इसके अलावा गंगा नदी में बांध और बैराज की निर्माण के कारण भी डॉल्फिन के अस्तित्व पर संकट उत्पन्न हो गया है. बांध और बैराज डॉल्फिन के लिए इसलिए बड़ी चुनौती है क्योंकि यह डॉल्फिन को जेनेटिकली आइसोलेट करता है. बांध और बैराज से डॉल्फिन आरपार नहीं जा सकता है. आरपार नहीं जाएगा तो छोटे-छोटे आबादी में डॉल्फिन सिमट जाएगा.
देश में 4000 से अधिक गंगा डॉल्फिन: भारत के डॉल्फिन मैन ने कहा कि बांध और बैराज को पार नहीं करने से इंटरनल ब्रीडिंग शुरू हो जाएगा और यह बहुत ही खतरनाक होता है. डॉल्फिन का जितना दूर तक जेनेटिक एक्सचेंज होता रहेगा, उतना अच्छा होगा इसके पापुलेशन के लिए. देश में अभी के समय डॉल्फिन की संख्या 4000 से अधिक है.
रिवर क्रूज से टकराकर मर रही डॉल्फिन: दरअसल, रिवर क्रूज गंगा नदी में चलती है लेकिन इससे डॉल्फिन को खतरा तब होगा जब बीना प्रोपेलर गार्ड के रिवर क्रूज चलती है. प्रोपेलर से टकराकर डॉल्फिन कट कर मर जाती है. यदि प्रॉपर गार्ड लगाकर रिवर क्रूज चले तो डॉल्फिन को खतरा नहीं है.
यहां मिलती है डॉल्फिन: डॉल्फिन गंगा और उसके सहायक नदियों में ही पाई जाती हैं और खासकर हिमालय से निकलने वाली नदियों में डॉल्फिन पाई जाती है. नेपाल के करनाली नदी, कोसी नदी और उत्तर प्रदेश की कई नदियों में भी डॉल्फिन पाई जाती है. चंबल नदी जो हिमालय से नहीं निकलती है लेकिन गंगा में मिलती है इसके कारण इसमें भी डॉल्फिन पाई जाती है.
"मछुआरों से गंगा डॉल्फिन को होने वाला खतरा काफी कम हो गया है. लेकिन, अब यह खतरा बांधों और बैराजों से है. बांधों और बैराजों के निर्माण से डॉल्फिन पर बुरा असर पड़ रहा है. गंगा में कंस्ट्रक्शन से उनके प्रजनन पर बुरा असर पड़ता है."- डॉ रविंद्र कुमार सिन्हा, पद्मश्री, डॉल्फिन मैन
सुल्तानगंज से कहलगांव तक ज्यादा दिखती है डॉल्फिन: गंगा में सबसे अधिक डॉल्फिन की संख्या बिहार के सुल्तानगंज से कहलगांव के बीच में है. यहां लगभग 1200 की संख्या में डॉल्फिन मिली है. यहां डॉल्फिन की अधिक संख्या मिलने के कारण ही विक्रमशिला डॉल्फिन सेंचुरी शुरू किया गया. पटना में जहां गंडक गंगा में मिलती है, इसके अलावा जहां सोन नदी गंगा में मिलती है वहां पहले डॉल्फिन की संख्या काफी अधिक हुआ करती थी.
दूषित जल भी डॉल्फिन के लिए खतरा: डॉ आरके सिन्हा ने बताया कि साल 1985 से गंगा एक्शन प्लान चल रहा है. लगभग 40 वर्ष हो गए हैं लेकिन आज तक बिना ट्रीटमेंट के गंगा नदी में नाले के पानी का गिरना जारी है. गंगा जल प्रदूषित हो रहा है और इसके कारण इसके जीव जंतुओं की संख्या भी कम हो रही है. यह दुर्भाग्य है कि 40 साल के गंगा एक्शन प्लान चलते रहने के बावजूद पटना का एक भी नाला गंगा नदी में गिरना बंद नहीं हुआ है.
डॉल्फिन को मारना बाघ की हत्या के बराबर: हालांकि डॉल्फिन की सुरक्षा के लिए सरकार ने उसकी हत्या पर रोक लगाने के लिए पर्याप्त कदम उठाए हैं. डॉल्फिन वाइल्डलाइफ प्रोटक्शन एक्ट में शेड्यूल 1 का एनिमल है. जो दर्ज बाघ को प्राप्त है वही दर्जा डॉल्फिन को प्राप्त है. यानी बाघ की हत्या की जो सजा है, वही सजा डॉल्फिन की हत्या के लिए भी है.
गंगा डॉल्फिन की खासियत: गंगा डॉल्फिन एक नेत्रहीन जलीय जीव है, जिसके सूंघने की शक्ति अत्यंत तीव्र होती है. इसकी प्रजाति पर खतरे का एक बड़ा कारण इसका शिकार किया जाना है. इसका शिकार मुख्यत: तेल के लिए किया जाता है, जिसे अन्य मछलियों को पकड़ने के लिए चारे के रूप में प्रयोग किया जाता है. बिहार व उत्तर प्रदेश में इसे ‘सोंस के नाम से जाना जाता है.इस जीव को 2009 में केंद्र सरकार ने भारत का राष्ट्रीय जलीय जीव घोषित किया था.
यहां डॉल्फिन करतीं हैं अठखेलियां: अगर आपको भी डॉल्फिन की अठखेलियां देखनी है तो आप भागलपुर से लेकर कहलगांव तक के कई घाटों पसे अठखेलियां देख सकते हैं. वहीं भागलपुर के माणिक सरकार घाट से लेकर बूढ़ानाथ घाट तक डॉल्फिन अठखेलियां करती नजर आ जाएगी. इसके अलावा बरारी विक्रमशिला पुल के नजदीक भी डॉल्फिन अठखेलियां करती नजर आ जाएगी. इसके अलावा इंजीनियरिंग कॉलेज घाट, बाबूपुर घाट और कहलगांव के बटेश्वर स्थान के समीप डॉल्फिन आराम से दिख जाती है.
पीएम मोदी का डॉल्फिन प्रोजेक्ट: बता दें कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी देश की नदियों खासकर गंगा और उसके जलीय जीवों को लेकर बहुत संवेदनशील हैं. नमामि गंगे अभियान के तहत ही पीएम मोदी ने 2019 में प्रोजेक्ट डॉल्फिन शुरू करने की घोषणा की थी. इसका मकसद गंगा में डॉल्फिन की संख्या बढ़ाना था. दरअसल डॉल्फिन जहां पाई जाती है, वहां पानी की शुद्धता की गारंटी होती है. ऐसे में भारत सरकार को भेजी गई वैज्ञानिकों की रिपोर्ट को देखते हुए राष्ट्रीय डॉल्फिन दिवस पर पीएम मोदी गंगा में डॉल्फिन की संख्या की घोषणा कर सकते हैं.
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