प्रयागराज : इलाहाबाद हाईकोर्ट ने विद्यालयों को फर्जी मान्यता प्रदान करने और उनमें फर्जी शिक्षकों की नियुक्ति के आरोपी सिद्धार्थनगर के बेसिक शिक्षा अधिकारी शिवसागर चौबे को राहत देने से इनकार कर दिया है. कोर्ट ने उनके विरुद्ध दर्ज प्राथमिकी रद्द करने की मांग नामंजूर कर दी है तथा पुलिस को निष्पक्ष विवेचना करने का निर्देश दिया है. शिवसागर चौबे की याचिका पर यह आदेश न्यायमूर्ति सिद्धार्थ वर्मा और न्यायमूर्ति विनोद दिवाकर की खंडपीठ ने दिया.
याचिका में कहा गया कि याची को इस मामले में फर्जी फंसाया गया है, जबकि उसकी स्कूलों को मान्यता देने और शिक्षकों की नियुक्ति में कोई भूमिका नहीं है. याची के साथ मुकुल मिश्रा और कुंवर विक्रम पांडे के खिलाफ प्राथमिक दर्ज कराई गई. याचिका में कहा गया कि वास्तव में सारा फर्जीवाड़ा उनके पहले बीएसए रहे राम सिंह के कार्यकाल में हुआ, जबकि याची ने 9 अक्टूबर 2021 को चार्ज लिया और उसके बाद से कोई नियुक्ति किसी शिक्षक को नहीं दी गई. कहा गया कि याची पर सहअभियुक्त मुकुल मिश्रा को बचाने का आरोप गलत है तथा कार्यभार संभालने के बाद उसने फर्जी मान्यता वाले स्कूलों की मान्यता रद्द कर दी है. याचिका में 9 जुलाई 2005 को जारी शासनादेश का भी हवाला दिया गया, जिसमें कहा गया है कि किसी भी सरकारी कर्मचारी के विरुद्ध बिना विभागीय जांच के मुकदमा नहीं दर्ज किया जाएगा.
याचिका का विरोध कर रहे अपर शासकीय अधिवक्ता का कहना था कि याची के खिलाफ 16 मार्च 2024 को एफआईआर दर्ज कराई गई है, जिसमें उस पर विशेष रूप से यह आरोप है कि उसने 15 विद्यालयों को फर्जी मान्यता पत्र दिए. इन विद्यालयों में उर्दू शिक्षकों व अन्य शिक्षकों की भर्ती में फर्जीवाड़ा किया गया तथा अनाधिकृत मान्यता प्रमाण पत्र जारी कर बेसिक शिक्षा विभाग से अवैध रूप से उनका वेतन जारी किया गया.
कोर्ट ने कहा कि प्राथमिकी विशेष परिस्थिति में ही रद्द हो सकती है. एफआईआर इनसाइक्लोपीडिया नहीं होती. याची पर लगाए गए आरोपों की सत्यता जानने के लिए जांच आवश्यक है. प्रथम दृष्टया आरोप गंभीर प्रकृति के हैं. कोर्ट ने प्राथमिककी रद्द करने से इनकार करते हुए याचिका खारिज कर दी है.