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गजबे है बिहार का ये गांव! सभी हैं नॉन मैट्रिक, जानें इसके पीछे का कारण - BIHAR NON MATRIC VILLAGE

बिहार में एक ऐसा गांव है,जहां सभी नॉन मैट्रिक हैं. बच्चों ने आजतक स्कूल का मुंह नहीं देखा. गया से सरताज अहमद की रिपोर्ट

BIHAR NON MATRIC VILLAGE
बिहार के इस गांव में सभी नॉन मैट्रिक (ETV Bharat)
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By ETV Bharat Bihar Team

Published : Jan 20, 2025, 5:25 PM IST

गया: एक तरफ डिजिटलाइजेशन और गांवों को हाईटेक बनाने की बातें की जाती हैं. वहीं दूसरी तरफ बिहार के एक गांव की तस्वीर कुछ और ही बयां कर रही है. बिहार के गया जिले से 130 किलोमीटर दूर एक ऐसा गांव है जहां बच्चे हों या बड़े किसी ने स्कूल का मुंह तक नहीं देखा है. इस गांव में सभी नॉन मैट्रिक हैं.

बिहार के इस गांव में सभी नॉन मैट्रिक: बिहार के गया का यह गांव है पथलधंसा. गांव में 60 घर हैं और आबादी करीब 400 से 500 है. इस गांव तक पहुंचने का कोई रास्ता नहीं है. जंगल, पहाड़ और नदी से होकर यहां पहुंचना पड़ता है. पथलधांसा गांव में न स्कूल है, न पीने का पानी, न सड़क और ना दूसरी बुनियादी सुविधाएं. 60 से अधिक घरों की आबादी वाले गांव में मध्य विद्यालय की बात छोड़ दीजिए आंगनबाड़ी केंद्र तक नहीं है.

गया से सरताज अहमद की रिपोर्ट (ETV Bharat)

गांव तक पहुंचने के लिए सड़क नहीं: ईटीवी भारत की टीम गया पथलधंसा गांव के लिए शहर से शेरघाटी, इमामगंज कोठी होते हुए सोहैल थाना क्षेत्र में 3:30 घंटे में पहुंची. सोहैल थाना क्षेत्र में ही पथलधंसा गांव स्थित है. सुहैल से लगभग 1 किलोमीटर दूरी के बाद कच्ची सड़क शुरू हो जाती है.पथरीली और कच्ची सड़क पर तीन किलोमीटर चलने के बाद गाड़ी से जाने का रास्ता खत्म हो जाता है.

bihar Non Matric Village
गया जिले से 130 किलोमीटर दूर पथलधंसा गांव (ETV Bharat)

60 घरों की आबादी वाले गांव को भूली सरकार: फिर वहां से पत्थर और खेत नदी से होते हुए लगभग 3 किलोमीटर पैदल चल कर गांव पहुंचे. पथलधंसा गांव में 60 घरों की आबादी होगी. पहले जगदेव सिंह के घर टीम पहुंची. घर पर उनके अलावे उनकी पत्नी सूरजबलि देवी और बेटी ललिता कुमारी थी. बातचीत में पता चला कि जगदेव सिंह कई वर्षों तक समाज के मुख्यधारा से भटके हुए थे, लेकिन अब पिछले कई वर्षों से मुख्यधारा से जुड़ गए हैं. वह बताते हैं कि गांव में उन्ही के तीन बच्चों ने पढ़ाई की है, लेकिन वह भी मैट्रिक पास नहीं हैं.

"तीनों 8वीं तक ही पढ़ सके हैं. गांव में स्कूल नहीं है इसलिए आगे पढ़ा नहीं सकते. बिराज सुहैल मध्य विद्यालय जाते थे. बच्ची को अकेले अब पढ़ने भेज नहीं सकते हैं. शादी करके अपनी जिम्मेदारी पूरी कर लें यही अब सोच है. बेटे बाहर में रहकर मजदूरी करते हैं."- जगदेव सिंह, ग्रामीण, पथलधंसा गांव

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सोहैल थाना क्षेत्र में ही पथलधंसा गांव स्थित (ETV Bharat)

'पढ़ने का शौक था लेकिन स्कूल नहीं': ललिता कुमारी ने बड़ी हिम्मत और सुविधा के अभाव के बाद भी हर दिन 4 किलोमीटर दूर जाकर किसी तरह 8वीं क्लास तक की पढ़ाई की. अब उनकी पढ़ाई बंद हो गई है. ललिता ने कहा कि पढ़ने का शौक था, लेकिन करें क्या, गांव में स्कूल नहीं है.

"जंगल होकर जाना पड़ता है. पहले भाई साथ होते थे तो स्कूल चली जाती थी. अब भाई नहीं है. अकेले जाना संभव नहीं है. पिता जी ने मना कर दिया. मैं चाहती थी कि पुलिस जवान बनकर सेवा करूं. सपना पूरा नहीं हुआ, हमारी पढ़ाई नहीं होने की वजह गांव में स्कूल का नहीं होना है."- ललिता कुमारी,ग्रामीण, पथलधंसा गांव

'अंगूठे का निशान लगाने में आती है शर्म': गांव की ही की एक और युवती सुमति कुमारी बताती हैं कि वह ' क ख ग भी नहीं पढ़ी है. पिता जी गांव में ही जानवर चराते हैं.जीविका का सहारा लकड़ी चुन कर बेचना है. मुझे भी पढ़ने का शौक था लेकिन गांव में स्कूल ही नहीं है. पढ़ें तो क्या पढ़ें. पिता के पास पैसे उतने नहीं है कि वह मुझे बाहर रख कर पढ़ाएंगे.

bihar Non Matric Village
60 घरों की आबादी वाले गांव को भूली सरकार (ETV Bharat)

"पढ़ लेते तो कुछ जरूर बन जाते लेकिन पढ़े नहीं तो बनेंगे क्या. किसी काम में अंगूठा लगाने में शर्म आती है."-सुमति कुमारी

"समस्या बहुत है, आय का जरिया लकड़ी और पत्ते हैं. पैसे देकर पढ़ा नहीं सकते हैं. स्कूल होता तो जरूर पढ़ाते. मन तो करता है पढ़ाएं लेकिन क्या करें गांव में कोई ट्यूशन पढ़ाने वाला भी नहीं है."- श्रोता देवी, सुमति कुमारी की मां

गंजू और भोक्ता जाति के लोग: यह गांव गया जिला के इमामगंज प्रखंड अंतर्गत विराज पंचायत में आता है, जहां गंजू और भोक्ता जाति के लोग निवास करते हैं. सरकार द्वारा उन्हें आदिवासी कैटेगिरी का बताया जाता है, लेकिन गांव के बूढ़े जवान एवं बच्चों ने आज तक स्कूल का चेहरा नहीं देखा है.

बाजार जाने में भी परेशानी: गांव में सरकारी सुविधा के नाम पर सिर्फ बिजली है. उसमें भी पूरे गांव में बिजली के खंभे नहीं बल्कि लकड़ी बांस के सहारे तार खींचा हुआ है. गांव में प्रधानमंत्री इंदिरा आवास योजना के अंतर्गत चार-पांच लोगों को लाभ मिला है,जिनको लाभ मिला है उन में जगदेव सिंह भी हैं. गांव के लोग बताते हैं की खरीदारी के लिए उन्हें सलैया बाजार जाना होता है. गांव से बाजार जाने के लिए पांच किलोमीटर सड़क नहीं है.

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गंजू और भोक्ता जाति के लोग (ETV Bharat)

गांव में एक चापाकल: गांव के ग्रामीण बताते हैं कि गांव में एक मात्र निजी चापाकल है, जो केवल बरसात और ठंड के मौसम में चलता है. गर्मी में यह सुख जाता है. उन दिनों ग्रामीण पहाड़ी नदी में गड्ढे खोद कर पानी पीते हैं. गांव में कोई सरकारी बोरिंग नहीं है इसलिए समस्या होती है, नदी का गंदा पानी का सेवन करते हैं.

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गांव में एक चापाकल (ETV Bharat)

"गांव पिछड़ा हुआ है, यहां रास्ते के अभाव में मरीज को अधिक समस्या होती है. गांव में अगर किसी के घर में तबीयत खराब हो जाए तो घरेलू नुस्खे एवं ग्रामीण चिकित्सक ही काम आते हैं. ज्यादा हालत तब खराब हो जाती है जब डिलीवरी या अन्य किसी गंभीर बीमारी में मरीज को तुरंत अस्पताल पहुंचाने की जरूरत पड़ती है."- शंकर भोक्ता

"गांव से लगभग 7 किलोमीटर दूर जाने पर ऑटो टोटो रिक्शा मिलता है. मरीज को खटिया पर टांग कर वहां तक ले जाते हैं. तब जाकर सलैया बाजार पहुंचते हैं. फिर वहां से अस्पताल ले जाते हैं."- लक्ष्मण गंझू

शिक्षा की रोशनी नहीं: सुहैल गांव के सामाजिक कार्यकर्ता विजय कुमार अग्रवाल और स्थानीय लोग बताते हैं कि पथलधंसा गांव में आज तक ना तो स्कूल बना है और ना आंगनबाड़ी केंद्र है. गांव की ही नगीना देवी और लक्ष्मण भोक्ता बताते हैं कि गांव के बच्चे स्कूल नहीं जाते हैं क्योंकि स्कूल है ही नहीं. पास का जो गांव है वहां स्कूल है लेकिन हमारे गांव से पांच किलोमीटर की दूरी होगी, जिसकी वजह से वहां बच्चे नहीं जा पाते हैं.

"खासकर बरसात के दिनों में वहां पहुंचना आसान नहीं होता है. दूसरा स्कूल डुमरिया प्रखंड के नवीगढ़ में पड़ता है, जो काफी दूर है. इसके कारण गांव के बच्चे स्कूल नहीं जाते. सरकारी नौकरी तो दूर गांव में आज तक एक भी व्यक्ति स्कूल का चेहरा नहीं देखा और ना कोई पढ़ा लिखा है."- विजय कुमार अग्रवाल,सामाजिक कार्यकर्ता

'जंगल पर निर्भर है आमदनी': गांव के लोगों का जीवन जंगल पर ही आधारित है. लोगों के पास थोड़ी बहुत खेती भी है, लेकिन वह खेती सही ढंग से नहीं कर सकते, क्योंकि गांव जंगल और पहाड़ों के बीच में है. वहां जंगली जानवर फसल को नुकसान पहुंचाते हैं. विजय कुमार कहते हैं कि यहां के लोग जंगल में जड़ी बूटियों की अच्छी पहचान रखते हैं. आयुष विभाग अगर इनका सहारा ले तो यहां काफी जड़ी बूटी निकल सकती है. यहां एक सेंटर बनाने की भी जरूरत है.

नक्सल प्रभावित है गांव: गांव नक्सल प्रभावित है, यहां कुछ वर्ष पहले तक नक्सली दिन के उजाले में रहते थे. गांव के भी लोगों की सहभागिता होने की बातें दूसरे गांव में होती है. गांव तक पहुंचने के लिए जंगल और पहाड़ों से होकर पहुंचना होगा. पहले गांव से बाहर कोई कमाने नहीं जाता था लेकिन अब इस नक्सली छेत्र के गांव के युवा कमाने बाहर निकल रहे हैं.

क्या कहते हैं अधिकारी: इमामगंज प्रखंड के बीडीओ संजय कुमार ने कहा कि गांव इंटीरियर में है, इसलिए ब्लाक के लोग कम ही जाते हैं. व्यक्तिगत तौर पर शिक्षा से मेरा लगाव रहा है. मुझे इसके बारे में मालूम नहीं था.

"स्थानीय जनप्रतिनिधियों से बातचीत समस्या को लेकर करते रहते हैं, लेकिन कभी किसी ने नहीं बताया. इसलिए जानने में दिक्कत हुई है, लेकिन अब हम खुद जाकर देखेंगे."- संजय कुमार, बीडीओ, इमामगंज प्रखंड

गांव में 200 मतदाता: पथलधंसा गांव में लगभग 200 मतदाता हैं, इसमें एक सौ से अधिक पुरुष की संख्या होगी. गांव के लोगों के अनुसार विधानसभा या लोकसभा स्तरीय नेता प्रत्याशी आज तक गांव में चुनाव के दौरान नहीं आए हैं. गांव के शंकर भोक्ता ने कहा कि उनकी उम्र 40 वर्ष से अधिक होगी, कई बार वोट दे चुके हैं लेकिन उनकी याद में ऐसा नहीं कि जब यहां गांव में कोई नेता आया हो.

गांव में बूथ भी नहीं: गांव में बूथ नहीं है. यहां के मतदाता को अपने मताधिकार का उपयोग करने के लिए सुहैल जाना पड़ता है. गांव से 6 किमी दूर जाकर लोग वोट करते हैं, चूंकि नेता नहीं पहुंचते हैं इसलिए उनकी समस्या भी नहीं जानते हैं. चुनाव के दौरान प्रचार प्रसार करने वाले कार्यकर्ता सिर्फ भरोसा दिलाते हैं कार्य आज तक नहीं हुआ है.

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गया: एक तरफ डिजिटलाइजेशन और गांवों को हाईटेक बनाने की बातें की जाती हैं. वहीं दूसरी तरफ बिहार के एक गांव की तस्वीर कुछ और ही बयां कर रही है. बिहार के गया जिले से 130 किलोमीटर दूर एक ऐसा गांव है जहां बच्चे हों या बड़े किसी ने स्कूल का मुंह तक नहीं देखा है. इस गांव में सभी नॉन मैट्रिक हैं.

बिहार के इस गांव में सभी नॉन मैट्रिक: बिहार के गया का यह गांव है पथलधंसा. गांव में 60 घर हैं और आबादी करीब 400 से 500 है. इस गांव तक पहुंचने का कोई रास्ता नहीं है. जंगल, पहाड़ और नदी से होकर यहां पहुंचना पड़ता है. पथलधांसा गांव में न स्कूल है, न पीने का पानी, न सड़क और ना दूसरी बुनियादी सुविधाएं. 60 से अधिक घरों की आबादी वाले गांव में मध्य विद्यालय की बात छोड़ दीजिए आंगनबाड़ी केंद्र तक नहीं है.

गया से सरताज अहमद की रिपोर्ट (ETV Bharat)

गांव तक पहुंचने के लिए सड़क नहीं: ईटीवी भारत की टीम गया पथलधंसा गांव के लिए शहर से शेरघाटी, इमामगंज कोठी होते हुए सोहैल थाना क्षेत्र में 3:30 घंटे में पहुंची. सोहैल थाना क्षेत्र में ही पथलधंसा गांव स्थित है. सुहैल से लगभग 1 किलोमीटर दूरी के बाद कच्ची सड़क शुरू हो जाती है.पथरीली और कच्ची सड़क पर तीन किलोमीटर चलने के बाद गाड़ी से जाने का रास्ता खत्म हो जाता है.

bihar Non Matric Village
गया जिले से 130 किलोमीटर दूर पथलधंसा गांव (ETV Bharat)

60 घरों की आबादी वाले गांव को भूली सरकार: फिर वहां से पत्थर और खेत नदी से होते हुए लगभग 3 किलोमीटर पैदल चल कर गांव पहुंचे. पथलधंसा गांव में 60 घरों की आबादी होगी. पहले जगदेव सिंह के घर टीम पहुंची. घर पर उनके अलावे उनकी पत्नी सूरजबलि देवी और बेटी ललिता कुमारी थी. बातचीत में पता चला कि जगदेव सिंह कई वर्षों तक समाज के मुख्यधारा से भटके हुए थे, लेकिन अब पिछले कई वर्षों से मुख्यधारा से जुड़ गए हैं. वह बताते हैं कि गांव में उन्ही के तीन बच्चों ने पढ़ाई की है, लेकिन वह भी मैट्रिक पास नहीं हैं.

"तीनों 8वीं तक ही पढ़ सके हैं. गांव में स्कूल नहीं है इसलिए आगे पढ़ा नहीं सकते. बिराज सुहैल मध्य विद्यालय जाते थे. बच्ची को अकेले अब पढ़ने भेज नहीं सकते हैं. शादी करके अपनी जिम्मेदारी पूरी कर लें यही अब सोच है. बेटे बाहर में रहकर मजदूरी करते हैं."- जगदेव सिंह, ग्रामीण, पथलधंसा गांव

bihar Non Matric Village
सोहैल थाना क्षेत्र में ही पथलधंसा गांव स्थित (ETV Bharat)

'पढ़ने का शौक था लेकिन स्कूल नहीं': ललिता कुमारी ने बड़ी हिम्मत और सुविधा के अभाव के बाद भी हर दिन 4 किलोमीटर दूर जाकर किसी तरह 8वीं क्लास तक की पढ़ाई की. अब उनकी पढ़ाई बंद हो गई है. ललिता ने कहा कि पढ़ने का शौक था, लेकिन करें क्या, गांव में स्कूल नहीं है.

"जंगल होकर जाना पड़ता है. पहले भाई साथ होते थे तो स्कूल चली जाती थी. अब भाई नहीं है. अकेले जाना संभव नहीं है. पिता जी ने मना कर दिया. मैं चाहती थी कि पुलिस जवान बनकर सेवा करूं. सपना पूरा नहीं हुआ, हमारी पढ़ाई नहीं होने की वजह गांव में स्कूल का नहीं होना है."- ललिता कुमारी,ग्रामीण, पथलधंसा गांव

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bihar Non Matric Village
60 घरों की आबादी वाले गांव को भूली सरकार (ETV Bharat)

"पढ़ लेते तो कुछ जरूर बन जाते लेकिन पढ़े नहीं तो बनेंगे क्या. किसी काम में अंगूठा लगाने में शर्म आती है."-सुमति कुमारी

"समस्या बहुत है, आय का जरिया लकड़ी और पत्ते हैं. पैसे देकर पढ़ा नहीं सकते हैं. स्कूल होता तो जरूर पढ़ाते. मन तो करता है पढ़ाएं लेकिन क्या करें गांव में कोई ट्यूशन पढ़ाने वाला भी नहीं है."- श्रोता देवी, सुमति कुमारी की मां

गंजू और भोक्ता जाति के लोग: यह गांव गया जिला के इमामगंज प्रखंड अंतर्गत विराज पंचायत में आता है, जहां गंजू और भोक्ता जाति के लोग निवास करते हैं. सरकार द्वारा उन्हें आदिवासी कैटेगिरी का बताया जाता है, लेकिन गांव के बूढ़े जवान एवं बच्चों ने आज तक स्कूल का चेहरा नहीं देखा है.

बाजार जाने में भी परेशानी: गांव में सरकारी सुविधा के नाम पर सिर्फ बिजली है. उसमें भी पूरे गांव में बिजली के खंभे नहीं बल्कि लकड़ी बांस के सहारे तार खींचा हुआ है. गांव में प्रधानमंत्री इंदिरा आवास योजना के अंतर्गत चार-पांच लोगों को लाभ मिला है,जिनको लाभ मिला है उन में जगदेव सिंह भी हैं. गांव के लोग बताते हैं की खरीदारी के लिए उन्हें सलैया बाजार जाना होता है. गांव से बाजार जाने के लिए पांच किलोमीटर सड़क नहीं है.

bihar Non Matric Village
गंजू और भोक्ता जाति के लोग (ETV Bharat)

गांव में एक चापाकल: गांव के ग्रामीण बताते हैं कि गांव में एक मात्र निजी चापाकल है, जो केवल बरसात और ठंड के मौसम में चलता है. गर्मी में यह सुख जाता है. उन दिनों ग्रामीण पहाड़ी नदी में गड्ढे खोद कर पानी पीते हैं. गांव में कोई सरकारी बोरिंग नहीं है इसलिए समस्या होती है, नदी का गंदा पानी का सेवन करते हैं.

bihar Non Matric Village
गांव में एक चापाकल (ETV Bharat)

"गांव पिछड़ा हुआ है, यहां रास्ते के अभाव में मरीज को अधिक समस्या होती है. गांव में अगर किसी के घर में तबीयत खराब हो जाए तो घरेलू नुस्खे एवं ग्रामीण चिकित्सक ही काम आते हैं. ज्यादा हालत तब खराब हो जाती है जब डिलीवरी या अन्य किसी गंभीर बीमारी में मरीज को तुरंत अस्पताल पहुंचाने की जरूरत पड़ती है."- शंकर भोक्ता

"गांव से लगभग 7 किलोमीटर दूर जाने पर ऑटो टोटो रिक्शा मिलता है. मरीज को खटिया पर टांग कर वहां तक ले जाते हैं. तब जाकर सलैया बाजार पहुंचते हैं. फिर वहां से अस्पताल ले जाते हैं."- लक्ष्मण गंझू

शिक्षा की रोशनी नहीं: सुहैल गांव के सामाजिक कार्यकर्ता विजय कुमार अग्रवाल और स्थानीय लोग बताते हैं कि पथलधंसा गांव में आज तक ना तो स्कूल बना है और ना आंगनबाड़ी केंद्र है. गांव की ही नगीना देवी और लक्ष्मण भोक्ता बताते हैं कि गांव के बच्चे स्कूल नहीं जाते हैं क्योंकि स्कूल है ही नहीं. पास का जो गांव है वहां स्कूल है लेकिन हमारे गांव से पांच किलोमीटर की दूरी होगी, जिसकी वजह से वहां बच्चे नहीं जा पाते हैं.

"खासकर बरसात के दिनों में वहां पहुंचना आसान नहीं होता है. दूसरा स्कूल डुमरिया प्रखंड के नवीगढ़ में पड़ता है, जो काफी दूर है. इसके कारण गांव के बच्चे स्कूल नहीं जाते. सरकारी नौकरी तो दूर गांव में आज तक एक भी व्यक्ति स्कूल का चेहरा नहीं देखा और ना कोई पढ़ा लिखा है."- विजय कुमार अग्रवाल,सामाजिक कार्यकर्ता

'जंगल पर निर्भर है आमदनी': गांव के लोगों का जीवन जंगल पर ही आधारित है. लोगों के पास थोड़ी बहुत खेती भी है, लेकिन वह खेती सही ढंग से नहीं कर सकते, क्योंकि गांव जंगल और पहाड़ों के बीच में है. वहां जंगली जानवर फसल को नुकसान पहुंचाते हैं. विजय कुमार कहते हैं कि यहां के लोग जंगल में जड़ी बूटियों की अच्छी पहचान रखते हैं. आयुष विभाग अगर इनका सहारा ले तो यहां काफी जड़ी बूटी निकल सकती है. यहां एक सेंटर बनाने की भी जरूरत है.

नक्सल प्रभावित है गांव: गांव नक्सल प्रभावित है, यहां कुछ वर्ष पहले तक नक्सली दिन के उजाले में रहते थे. गांव के भी लोगों की सहभागिता होने की बातें दूसरे गांव में होती है. गांव तक पहुंचने के लिए जंगल और पहाड़ों से होकर पहुंचना होगा. पहले गांव से बाहर कोई कमाने नहीं जाता था लेकिन अब इस नक्सली छेत्र के गांव के युवा कमाने बाहर निकल रहे हैं.

क्या कहते हैं अधिकारी: इमामगंज प्रखंड के बीडीओ संजय कुमार ने कहा कि गांव इंटीरियर में है, इसलिए ब्लाक के लोग कम ही जाते हैं. व्यक्तिगत तौर पर शिक्षा से मेरा लगाव रहा है. मुझे इसके बारे में मालूम नहीं था.

"स्थानीय जनप्रतिनिधियों से बातचीत समस्या को लेकर करते रहते हैं, लेकिन कभी किसी ने नहीं बताया. इसलिए जानने में दिक्कत हुई है, लेकिन अब हम खुद जाकर देखेंगे."- संजय कुमार, बीडीओ, इमामगंज प्रखंड

गांव में 200 मतदाता: पथलधंसा गांव में लगभग 200 मतदाता हैं, इसमें एक सौ से अधिक पुरुष की संख्या होगी. गांव के लोगों के अनुसार विधानसभा या लोकसभा स्तरीय नेता प्रत्याशी आज तक गांव में चुनाव के दौरान नहीं आए हैं. गांव के शंकर भोक्ता ने कहा कि उनकी उम्र 40 वर्ष से अधिक होगी, कई बार वोट दे चुके हैं लेकिन उनकी याद में ऐसा नहीं कि जब यहां गांव में कोई नेता आया हो.

गांव में बूथ भी नहीं: गांव में बूथ नहीं है. यहां के मतदाता को अपने मताधिकार का उपयोग करने के लिए सुहैल जाना पड़ता है. गांव से 6 किमी दूर जाकर लोग वोट करते हैं, चूंकि नेता नहीं पहुंचते हैं इसलिए उनकी समस्या भी नहीं जानते हैं. चुनाव के दौरान प्रचार प्रसार करने वाले कार्यकर्ता सिर्फ भरोसा दिलाते हैं कार्य आज तक नहीं हुआ है.

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