मंडी: भारत में डायबिटीज यानी मधुमेह के मामले लगातार बढ़ते जा रहे हैं. डायबिटीज को जांचने के लिए इस्तेमाल की जाने वाली सबसे अच्छी डिवाइस ग्लूकोमीटर मानी जाती है. जिसमें ब्लड के सैंपल से चंद सेकेंड में डायबिटीज की जांच हो जाती है. आने वाले समय में डायबिटीज की जांच के लिए अब ब्लड के सैंपल की भी जरूरत नहीं होगी. आईआईटी मंडी के शोधकर्ताओं ने एक ऐसी नई डिवाइस तैयार की है, जिसमें गुब्बारे में सांस भरकर डायबिटीज की जांच संभव हो सकेगी.
बिना ब्लड सैंपल के डायबिटीज का लगेगा पता
आईआईटी मंडी के शोधकर्ताओं द्वारा अभी तक इस डिवाइस से लिए गए सैंपल के बेहतर परिणाम सामने आए हैं. इस डिवाइस का नाम नॉन इनवेसिव ग्लूकोमीटर है. आईआईटी मंडी की सीनियर प्रोजेक्ट साइंटिस्ट डॉ. ऋतु खोसला ने बताया कि व्यक्ति के शरीर में डायबिटीज होने का पता उस समय चलता है, जब वह अपने खून की जांच करवाता है, लेकिन इस नए डिवाइस के जरिए व्यक्ति बिना ब्लड सैंपल की जांच करवाए अपनी डायबिटीज की जानकारी प्राप्त कर सकता है. शोधकर्ताओं की इस टीम में सीनियर प्रोजेक्ट साइंटिस्ट डॉ. ऋतु खोसला, शोध प्रमुख डॉ. वरुण के साथ रितिक शर्मा, यशवंत राणा, स्वाति शर्मा, वेदांत रस्तोगी, शिवानी शर्मा छात्र-छात्राएं भी शामिल हैं.
डिवाइस से ब्लड में शुगर लेवल का लगेगा पता
सीनियर प्रोजेक्ट साइंटिस्ट डॉ. ऋतु खोसला ने बताया कि इस डिवाइस में मल्टी सेंसर लगाए गए हैं. जो ब्लड में शुगर लेवल का पता लगाने में सक्षम है. डिवाइस में ब्लड प्रेशर, ब्लड ऑक्सीजन लेवल, लिंग और नाम इत्यादि डाला जाता है, जिसे मोबाइल ऐप से जोड़ा गया है. जिसके बाद सेंसर की मदद से यह डिवाइस व्यक्ति में डायबिटीज की पहचान करता है. साथ ही ब्लड में शुगर की मात्रा कितनी है? इसके बारे में भी बताता है.
'दुर्गम क्षेत्रों में कारगर साबित होगी डिवाइस'
डॉ. ऋतु खोसला ने बताया कि हिमाचल जैसे पहाड़ी प्रदेश में जहां मेडिकल सुविधाओं का अभाव है. वहां पर यह डिवाइस कारगर साबित हो सकती है, लेकिन इसे किसी स्पेशलिस्ट डॉक्टर के परामर्श पर नहीं बनाया गया है. फिलहाल यह डिवाइस बेहतर रिजल्ट दे रही है. इस डिवाइस की सफलता को जांचने के लिए एम्स बिलासपुर के सहयोग से 492 रोगियों के सांस के सैंपल लिए गए थे. जिसमें इस डिवाइस के बेहतर परिणाम सामने आए हैं.
'नॉन इनवेसिव ग्लूकोमीटर में गलती की संभावना 1%'
वहीं, सीनियर प्रोजेक्ट साइंटिस्ट डॉ. ऋतु खोसला का दावा है कि इस डिवाइस के परिणाम में मात्र एक प्रतिशत गलती होने की संभावना है. जबकि ग्लूकोमीटर में सैंपल में परिणाम गलत होने की संभावना 5 प्रतिशत है. इस डिवाइस के जरिए अभी तक 560 लोगों के सैंपल लिए जा चुके हैं. उन्होंने बताया कि मल्टी सेंसर होने के नाते यह डिवाइस 16 हजार तक उपलब्ध हो सकेगी. जिससे आने वाले समय में सभी लोगों को इसका फायदा मिलेगा.
'इस डिवाइस में 8 से 10 सेंसर इस्तेमाल किए गए हैं, जो बेहतर रिजल्ट देने में सक्षम हैं. इस डिवाइस के भविष्य में और बेहतर परिणामों के लिए वे और डाटा एकत्रित कर रहें हैं. इसके साथ ही इस डिवाइस को और छोटा बनाने का प्रयास किया जा रहा है. एम्स बिलासपुर के सहयोग से अभी और सैंपल एकत्रित किए जा रहे हैं. जिसमें अन्य घातक बीमारियों जैसे हार्ट अटैक का पूर्वानुमान लगाने के लिए इस डिवाइस में और सेंसर भी जोड़े जा रहे हैं. जिनपर इन दिनों शोध जारी है और यदि वह सेंसर इस डिवाइस में बेहतर रिजल्ट देने में सक्षम होते हैं तो पहले ही हार्ट अटैक का भी पता चल जाएगा.' - डॉ. ऋतु खोसला, सीनियर प्रोजेक्ट साइंटिस्ट आईआईटी मंडी
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