नीमच: आज हम आपको लेकर चलते हैं ऐसी माता के दरबार में जो अपने बच्चों की हर पीड़ा को हर लेती हैं. मालवा की वैष्णो देवी के नाम से विख्यात महामाया भादवा माता आरोग्य की देवी हैं. जो भी माता के दरबार में आता है अपने कष्टों से मुक्ति पाता है. माता सब की मुरादें पूरी करती हैं, सूनी गोद भरती हैं. यहां लकवा रोग से ग्रसित सबसे अधिक मरीज आते हैं. भादवा गांव में देवी होने से माता का नाम इस गांव के नाम से भादवा माता पड़ा.
देश का एक मात्र सबसे बड़ा आरोग्य तीर्थ
माना जाता है कि भादवा माता देश का एक मात्र सबसे बड़ा आरोग्य तीर्थ है. जहां बड़ी संख्या में लकवा, चर्मरोग सहित अनेक असाध्य रोगों से ग्रसित लोग आते हैं. महामाया भादवा माता अपने भक्तों की पीड़ा को दूर करने के साथ उनकी मुरादें भी पूरी करती हैं. सैकड़ों वर्ष पुराने इस मंदिर के प्राकटय को लेकर अलग अलग मान्याताएं प्रचलित हैं.
स्वपन में आईं माता भावदा
मंदिर के पुजारी शांतिलाल शर्मा बताते हैं कि, ''वर्तमान में भील समाज के लोग सैकड़ों वर्षों से माता की सेवा करते आ रहे हैं. इनके पूर्वज राजस्थान के बेगु से आकर पहले जिले के महेंन्द्री गाँव में बसे. यहा से दो भाई धन्नाजी और रूपाजी भादवा आये. रूपाजी पास के गांव सावन में चले गये. वहीं, धन्नाजी यही भादवा में बस गये. एक दिन किसी बात से नाराज होकर रूपाजी रूठकर अरणी के पेड़ के नीचे बैठ गये. उसी रात रूपाजी को स्वपन में आकर माता ने कहा की ''मेरी प्रतिमा अरणी पेड़ के नीचे दबी है, उसे निकाल कर स्थापित करो पूजा करो.''
चांदी के सिंहासन पर विराजित माता
कहते हैं जब मेवाड़ के महाराणा मोकल को माता के चमत्कार के बारे पता चला तो वे भादवा आये. उन्होंने संवत् 1482 में भीलों को पूजा का अधिकार दिया था. आज भी मंदिर के पुजारी उसी भील परिवार के हैं. माता की प्रतिमा बड़ी ही मनोहारी है. माता चांदी के सिंहासन पर विराजित हैं. प्रतिमा के पास नीचे की ओर नवदुर्गा के नौ रूप ब्राम्हाणी, माहेष्वरी, कौमारी, वैष्णवी, वाराही, नरसिंह, ऐन्द्री, ष्विदती, चामुण्डा विराजमान हैं. नौ देवियों के समक्ष अखण्ड ज्योति वर्षों से जल रही है. मंदिर के अन्दर भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की प्रतिमा है. जिसमें भगवान शेषषैया पर विराजे हैं. इसी तरह माता पार्वती और भगवान शंकर की आलिंगनबध प्रतिमा है.
रोज रात्रि मंदिर में आती हैं माता
वहीं पुजारी अर्जुन भील बताते हैं कि, ''मंदिर के गर्भ गृह के बाहर मुख्य द्वार के पूर्व भगवान गणेश और हनुमानजी विराजे हैं. वहीं पश्चिम में भैराव व गोराजी की प्रतिमा विराजित है. मान्यता है माता के धूनि में से निकलने वाले धागा या कलावा को रोगी या रोगग्रस्त अंग पर बांधने से जल्द ही रोग से मुक्ति मिलती है.'' मान्यता है कि माता हर रोज रात्रि में मंदिर परिसर में आती हैं और रोग ग्रस्त लोगों देख कर उनके रोग दूर करती हैं. इसी वजह से बड़ी संख्या में लोग 12 महीने 24 घंटे मंदिर मे ही निरोगी होने तक डटे रहते हैं.
मंदिर में नहीं चढ़ाई जाती जीव की बली
मान्यता है कि बावड़ी के जल से स्नान करने, रोग ग्रस्त अंग पर भस्म लेपन करने, कलावा बांधने और मंदिर की परिक्रमा करने से व्यक्ति जल्दी ठीक होता है.
भादवा माता में किसी भी जीव की बली नहीं चढाई जाती है. माता हार, फूल, नारियाल चिरोंजी दाना चढ़ाने से अति प्रसन्न होती है. मंदिर से लगी एक अति प्राचीन बावडी है. कहा जाता है कि इस बावडी के जल में स्नान व आचमन करने से रोगी रोग मुक्त हो जाता है. जो लोग यहां आने में असमर्थ होते हैं या किसी कारण से नहीं आ पाये, उनके लिए परिजन जल भरकर ले जाते हैं.
भादवा माता पर बन चुकी है फिल्म
क्षेत्र के लोगों का मानना है कि माता की महीमा को महीमा मंडित करने का सबसे पहला प्रयास कवि और अविभाजित मध्यप्रदेश में मंत्री रहे बालकवि बैरागी को जाता है. उन्होंने माता की महिमा पर एक मात्र मालवी भाषा की फिल्म जय भादवा माता बनाई, जो उस समय खूब चली. इस फिल्म के गीत आज भी भजन के रूप में गाये जाते हैं. भादवा माता की बावडी के पानी को लेकर बालकवि का यह गीत तो विशेष है. ''मालवा की राणी थारो अमृत पानी थारी महीमा कोणी जाए बखाणी मारी माय.'' उन्होंने जल के प्रभाव से लोगों के रोग मुक्त होने के कारण पानी की बजाय उसे अमृत कहा है.