लखनऊ : कमल का फूल आपने अब तक पूजा और सजावट में ही इस्तेमाल होते देखा होगा, लेकिन आप हैरान हो जाएंगे जब पता चलेगा कि इससे हेल्थ ड्रिंक, चाय पत्ती और कपड़े भी बनाए जा रहे हैं. ऐसा संभव हुआ है कमल की नई प्रजाति के विकिसत होने के बाद. लखनऊ में राष्ट्रीय वनस्पति अनुसंधान संस्थान (एनबीआरआई) के वैज्ञानिकों ने रिसर्च के बाद कमल की पंखुड़ियों से लोगों के बेहद काम आने वाली लाजवाब चीजें बनाई हैं.
एक साल पहले शुरू हुई रिसर्च
दरअसल, इस पर रिसर्च एक साल पहले शुरू हुई थी. NBRI निदेशक डॉ. अजीत कुमार शासनी बताते हैं, 1 साल पहले 'वन वीक वन लैब' कार्यक्रम आयोजित हुआ था. उसी के बाद से हमारी रिसर्च शुरू हुई कि कैसे इस प्लांट को यूटिलाइज कर सकते हैं. कमल की कंप्लीट जिनोमसीक्वेंसिंग कर दी गई थी. नई प्रजाति में कमल की कुल 108 पंखुड़ियां हैं, जिसे पूजा में इस्तेमाल किया जाता है. कमल की पंखुड़ी में हेल्थ के लिए लाभदायक बहुत सारे तत्व हैं, जो एंटीऑक्सीडेंट हैं. इसे ध्यान में रखकर ही पंखुड़ियों से चाय पत्ती बनाई है.
कमल की पंखुड़ियों से बनाया परफ्यूम और जैकेट
डॉ. अजीत कुमार ने बताया कि कमल की पंखुड़ियां से एब्सलूड (तरल सुगन्धित पदार्थ) निकलता है, इसे परफ्यूम के रूप में विकसित किया गया है. इसके अलावा कमल के फूल की जो डंडी है, उसमें से एक सिल्क निकलता है. यह मणिपुर से इंस्पायर्ड है. वहां डंडी से वस्त्र बनाए जाते हैं. इसी तरह यहां भी डंडी से सिल्क निकालकर जैकेट बनाई गई है. इस जैकेट की खास बात है कि यह ठंडी में गर्म करेगी और गर्मी में ठंडा. इन सभी को एनबीआरआई की लैब में विकसित किया गया है. अब यह टेक्नोलॉजी स्टार्टअप कंपनियों को हैंड ऑवर की जाएगी. इसके लिए बेहतर कंपनी की तलाश है.
कमल से बने इन उत्पादों से बढ़ेगा रोजगार
निदेशक ने बताया कि इसी तरह कमल की पंखुड़ियां से हेल्थ ड्रिंक, चाय की पत्ती और इत्र बनाया गया है. यह रोजगार का बेहतर विकल्प है. इससे कमल की खेती को बढ़ावा मिलेगा और लोग नए-नए उत्पादक बना सकेंगे. इससे अच्छी कमाई भी होगी. स्टार्टअप के लिए आवेदन मांगे गए थे. जिसके तहत अब तक 25 से ज्यादा आवेदन आ चुके हैं. लोग कमल की खेती और इसमें स्टार्टअप के लिए दिलचस्पी दिखा रहे हैं. अगर कोई इसका स्टार्टअप चाहता है तो एनबीआरआई आकर संपर्क कर सकता है.
बाजार में लाने की यह है प्रक्रिया
डॉ. अजीत कुमार ने बताया कि यहां सिर्फ सैंपल तैयार किए गए हैं. स्टार्टअप कंपनियां या फिर जो भी इस मेथड को लेना चाहते हैं, वह आवेदन करें. सारे मानक पूरे होने पर एनबीआरआई से उनका टाइअप होता है. इसके बाद उन्हें पूरी प्रक्रिया हैंडऑवर की जाती है. उसके बाद वह कंपनी उस प्रोडक्ट को विकसित करती है और बाजार में लाती है.
रिजनेबल दाम पर मुहैया होंगे
बताया कि जब भी एनबीआरआई के वैज्ञानिक किसी नए सामान को बनाते हैं तो बनाने में जो लागत लगी है, उसके हिसाब से ही उसका शुल्क निर्धारित किया जाता है. प्रोडक्ट विकसित होने के बाद जब इस मेथड को कंपनी को हैंडऑवर किया जाता है और कंपनी मैन्युफैक्चरिंग कर उस प्रोडक्ट को बाजार में लाती है. एनबीआरआई के द्वारा निर्धारित मानक पर ही शुल्क रखा जा सकता है. इसके लिए बाकायदा एक कमेटी बनती है और वह लागत के हिसाब से एक रीजनेबल दाम निर्धारित करती है.