रांचीः लोकसभा चुनाव 2024 में झारखंड पुलिस ने अपनी विशेष रणनीति के बल पर नक्सलियों की तमाम हिंसा की साजिश को नाकाम करते हुए राज्य में शांतिपूर्ण तरीके से चुनाव संपन्न कराया था. अब झारखंड पुलिस के सामने विधानसभा चुनाव शांतिपूर्ण तरीके से संपन्न करवाने की चुनौती है. झारखंड पुलिस का मानना है कि चुनाव में नक्सली हिंसा पुरानी बात हो गई है. विधानसभा चुनाव में भी झारखंड पुलिस बेहतर परफॉर्म करेगी.
चुनाव के दौरान नक्सली हिंसा में आई कमी
झारखंड में नक्सलवाद के घटते प्रभाव, नक्सलियों के एनकाउंटर, गिरफ्तारी और आत्मसमर्पण की वजह से चुनाव के दौरान होने वाली नक्सली हिंसा में काफी कमी आई है. झारखंड के डीजीपी अनुराग गुप्ता के अनुसार एक दौर वह भी था, जब झारखंड में नक्सल प्रभावित इलाकों में शांतिपूर्ण मतदान करवाना पुलिस के लिए चुनौतीपूर्ण हुआ करती थी, लेकिन अब हालात बिल्कुल अलग हैं.डीजीपी के अनुसार अब झारखंड में वो समय नहीं रहा जिसमें नक्सली चुनाव को प्रभावित कर सकें. आज से 15 साल पहले और अब की स्थिति में जमीन-आसमान का अंतर है.
15 वर्षों में 500 से ज्यादा जवानों ने दी है आहुति
डीजीपी अनुराग गुप्ता ने बताया कि एक ऐसा राज्य जहां 15 साल पहले नक्सलवाद का डंका बजता था, लेकिन अपने प्राणों की आहुति दे कर जवानों ने नक्सलियों का लगभग सफाया कर दिया है. नक्सलवाद के कारण पिछले 15 सालों में 500 से ज्यादा जवानों और अफसरों को अपनी जान गंवानी पड़ी है, तब जाकर आज बिना नक्सल हिंसा के कोई भी चुनाव संपन्न कराने की स्थिति में झारखंड पुलिस पहुंची है.
चुनाव आयोग के निर्देश पर कार्य कर रही पुलिस
डीजीपी अनुराग गुप्ता ने बताया कि हाल के दिनों में जो चुनाव आयोग के साथ मीटिंग हुई थी, उसमें सभी बिंदुओं को आयोग के सामने रखा गया है. आयोग के द्वारा भी कई तरह के टास्क दिए गए हैं. जिस पर झारखंड पुलिस कम कर रही है. नक्सलियों के खिलाफ एक तरफ जहां लगातार ऑपरेशन चलाए जा रहे हैं, वहीं दूसरी तरफ नक्सल प्रभावित इलाकों में पड़ने वाले बूथों को पहले से ही चिन्हित किया जा चुका है. डीजीपी ने बताया कि लोकसभा चुनाव के दौरान नक्सली बाधा पहुंचाने में नाकाम रहे थे. अब झारखंड विधानसभा चुनाव में भी पुलिस की तैयारी ऐसी है कि नक्सली किसी भी तरह की कोई बाधा नहीं पहुंचा पाएंगे.
पुलिस का टारगेट बेस्ड अभियान जारी
झारखंड के डीजीपी अनुराग गुप्ता के अनुसार झारखंड में मात्र कुछ जिलों में ही नक्सली बचे हुए हैं. जिनमें कोल्हान सबसे प्रमुख है. चुनाव पूर्व टारगेट बेस्ड अभियान चलाया जा रहा है. जिसके तहत बड़े नक्सली नेताओं को टारगेट किया जा रहा है. चुनाव आयोग के द्वारा भी मीटिंग में निर्देश दिया गया है कि सभी विभागों के सामंजस्य के हिसाब से अंतर जिला चेकपोस्ट बनाया जाए, ताकि हर तरह की तस्करी पर रोक लगे.
चुनाव के दौरान कब-कब हुई नक्सली हिंसा
साल 2014 के लोकसभा चुनाव के दौरान झारखंड में चुनावी हिंसा की सबसे बड़ी वारदात हुई थी. लोकसभा चुनाव के दिन 24 अप्रैल 2014 को दुमका के शिकारीपाड़ा के पलासी-सरजाजोल के समीप मतदान कराकर लौट रही पोलिंग पार्टी पर नक्सलियों ने लैंड माइंस ब्लास्ट कर हमला किया था. इस दौरान नक्सलियों ने ताबड़तोड़ फायरिंग भी की थी. नक्सली हमले में पांच पुलिसकर्मी, तीन चुनाव कर्मी समेत आठ लोग मारे गए थे. वहीं घटना में 11 लोग गंभीर रूप से घायल हो गए थे. माओवादियों ने मारे गए पुलिसकर्मियों के पांच इंसास और 550 कारतूस लूट कर पुलिस को खुली चुनौती दी थी.
वहीं इससे पहले बोकारो में 18 अप्रैल 2014 को चुनाव ड्यूटी से लौट रहे पुलिसकर्मियों पर भी फायरिंग की घटना हुई थी. लोकसभा चुनाव 2014 में चुनाव को प्रभावित करने के लिए चार जगह पर लैंड माइंस विस्फोट की घटनाएं हुई थीं, वहीं पांच पुलिस मुठभेड़ और एक पुलिस पर हमले की वारदात हुई थी. इस दौरान कुल 13 नक्सल घटनाओं को माओवादियों ने अंजाम दिया था.
2019 में नक्सलियों का प्रभाव कम हुआ
लेकिन 2019 के चुनाव आते-आते राज्य में नक्सलियों का प्रभाव कम हो चुका था.2019 लोकसभा चुनाव में विस्फोट की दो घटनाएं हुई थी, जबकि कुल तीन माओवादी वारदात चुनाव के दौरान हुए थे. 25 अप्रैल 2019 की रात पलामू के हरिहरगंज में माओवादियों ने चुनाव बहिष्कार का पर्चा छोड़ा और भाजपा के चुनावी कार्यालय को विस्फोट कर उड़ा दिया था. वहीं 2 मई 2019 की रात खरसावां में भाजपा के चुनावी कार्यालय को माओवादियों ने केन बम से विस्फोट कर उड़ा दिया था.वहीं चुनाव के पूर्व रांची में भी 6 मई को तमाड़ के बान्दुडीह में माओवादियों ने वोटरों को बूथ तक ले जाने के लिए रखे गए वाहन को जला दिया था. इसके बाद चुनाव बहिष्कार संबंधी पर्चा छोड़ा था.
सटीक अभियान ने खत्म किया है नक्सल दहशत
2014 के लोकसभा चुनाव में हुई हिंसा के बाद झारखंड में नक्सलवाद के खिलाफ पुलिस का अभियान बहुत तेज हो गया. नतीजा 2019 के लोकसभा चुनाव में नक्सली बहुत अधिक प्रभाव नहीं डाल पाए. साल 2020 से ही झारखंड पुलिस ने अपनी रणनीति में बदलाव करते हुए शीर्ष नक्सलियों को टारगेट करना शुरू किया था. इस साल पुलिस ने एनकाउंटर में 14 नक्सलियों को मार गिराया था. जिनमें 15 लाख का इनामी कुख्यात जिदन गुड़िया भी शामिल था. इसके अलावा पुनई उरांव ,दीनू उरांव, सोना माही, सनिका चंपिया, शांति पूर्ति, सरवन मांझी, दीपक यादव, पंडित सिंह, दादू, पंगला, बोदरा, सिमोन कोलकाता और सोनू जैसे दुर्दांत नक्सली मारे गए थे.
2021 से 2024 के बीच 18 नक्सली मारे गए
2021 में भले ही मात्र छह नक्सली मारे गए थे. जिनमें से दो 15 और 10 लाख के इनामी नक्सली थे.इस वर्ष कोयल संख जोन में सक्रिय कुख्यात 15 लाख के इनामी बुद्धेश्वर और 10 लाख का इनामी शनिचर मारे गए थे. इसके अलावा कुख्यात महेश जी अंकित मुंडा, विनोद भूरिया और मंगल लूंगा भी एनकाउंटर में मारे गए थे. साल 2023 में पुलिस ने मुठभेड़ में सात नक्सलियों को मार गिराया था. जिनमें कुख्यात लाका पाहन, दिनेश नगेशिया, जितेंद्र यादव जैसे नक्सली शामिल थे. 2024 में भी अब तक चार नक्सली मुठभेड़ में मारे गए हैं.
बड़े नक्सल नेताओं की हुई गिरफ्तारी
पुलिस मुख्यालय से मिले आंकड़ों के अनुसार झारखंड पुलिस ने अपने बेहतर अभियान के बल पर 2019 से लेकर 2024 के जुलाई महीने तक एक करोड़ के इनामी नक्सलियों सहित लगभग 2084 नक्सलियों को सलाखों के पीछे पहुंचा दिया है.नक्सलियों का बड़ा थिंक टैंक ही जेल में है. जिनमें एक करोड़ का इनामी प्रशांत बोस और रूपेश कुमार सिंह और प्रभा दे, 10 लाख का इनामी सुधीर किस्कू, 10 लाख का इनामी प्रशांत मांझी, 25 लाख का इनामी नंद लाल मांझी और बलराम उरांव. इन नक्सल नेताओं के पकड़े जाने की वजह से लोकसभा हो या विधानसभा चुनाव नक्सलियों का प्रभाव कम होता चला गया.
कई बड़े नक्सलियों ने किया सरेंडर
झारखंड में भाकपा माओवादियों को ताकतवर बनाने वाले कई बड़े नाम संगठन छोड़ कर पुलिस के शरण में आ चुके हैं. महाराज प्रमाणिक, विमल यादव, सुरेश सिंह मुंडा, भवानी सिंह, विमल लोहरा, संजय प्रजापति, अभय जी, रिमी दी, राजेंद्र राय जैसे बड़े नक्सली पुलिस के सामने हथियार डाल चुके हैं. पिछले 5 सालों में 65 से अधिक नक्सली आत्मसमर्पण कर चुके हैं. इनमें से अधिकांश वैसे हैं जो संगठन में बड़ा ओहदा रखते थे.
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