Natural Farming Importance: केंद्रीय आम बजट में इस बार सबसे ज्यादा फोकस खेती किसानी पर रहा है. उसमें सबसे बड़ी बात कही गई कि देश के एक करोड़ किसानों को प्राकृतिक खेती से जोड़ा जाएगा और इसे बढ़ावा दिया जाएगा. आखिर प्राकृतिक खेती है क्या और ये इतनी खास क्यों है, जिस पर सरकार इतनी दिलचस्पी दिखा रही है.
क्या है प्राकृतिक खेती
आम बजट में जिस प्राकृतिक खेती को लेकर बात कही गई है इसे लेकर कृषि वैज्ञानिक डॉक्टर बी के प्रजापति कहते हैं कि "प्राकृतिक खेती जिसे नेचुरल फार्मिंग भी कहा जाता है. आसान भाषा में अगर हम इसे समझें तो खेती हमें करनी है प्रकृति के साथ और रसायन मुक्त. मतलब हमारे खेती में जो रासायनिक चीजें चाहिए उसे हम बाजार से न खरीद कर बल्कि हमारे जो आसपास प्राकृतिक रूप से उपलब्ध हैं, उन्हीं चीजों का उपयोग करके हमें अपनी खेती करनी है. इसका मुख्य उद्देश्य जो है इस खेती में लगने वाले जो विभिन्न रासायनिक उर्वरक हैं या कीटनाशक हैं, इससे किसान की लागत बढ़ती है इस लागत को हमें कम करना है."
प्राकृतिक खेती के 4 स्तंभ
कृषि वैज्ञानिक बताते हैं कि प्राकृतिक खेती के मुख्य रूप से 4 स्तंभ बताए गए हैं.
बीजामृत
जिसमें पहला है बीजामृत. ये वो होता है जिसमें बीज को उपचारित करना और बीजामृत का मुख्य काम होता है जैसे भूमि में जो मृदा जनित बीमारियां होती हैं और बीज में जो बीजवाहक के रूप में जो बीमारियां होती हैं उन्हें रोकने का काम होता है.
जीवामृत
दूसरा स्तंभ जो है वो जीवामृत और घनजीवामृत होता है. ये भूमि में जो सूक्ष्म जीव होते हैं जो खेती के लिए फायदेमंद सूक्ष्म जीव होते हैं उनकी संख्या को भूमि में बढ़ाने का काम होता है.
आच्छादन
तीसरा स्तंभ आच्छादन है जिसको मल्चिंग भी बोला जाता है. इसका मुख्य उद्देश्य ये होता है कि भूमि पर ऐसी फसलों को उगाएं जो मिट्टी को कवर करके रखें यानि मिट्टी के कटाव को रोक सके. बारिश के कारण और जो कटाव के कारण पोषक तत्व बह जाते हैं, उनको रोकना होता है. अच्छादन दो तरीके का हो सकता है जैसे हमारी बरबटी होती है जिसे लोबिया बोलते हैं, मूंग होता है उड़द हो गया उनके माध्यम से भी किया जा सकता है. आच्छादन के लिए जो दूसरा विकल्प हमारा होता है सूखे हुए पैरा जो पुआल होता है जो भूसा होता है, उनको भी बिछाकर अच्छादन किया जा सकता है. सब्जी बाड़ी वाले कृषक मुख्य रूप से मल्चिंग करते हैं वो पॉलिथीन वाली मल्चिंग करते हैं.
वाष्पा
चौथा स्तंभ होता है वाष्पा. इसमें हमें सिंचाई इस प्रकार से करनी है ताकि भूमि में दो तरीके के जो छिद्र होते हैं एक बड़े छिद्र होते हैं जिसे मैक्रो पोर बोला जाता है और जो दूसरा होता है माइक्रोपोर जिसे सूक्ष्म छिद्र बोला जाता है. इसमें जो हवा और पानी की मात्रा 50-50 प्रतिशत बराबर होनी चाहिए. मतलब हमें इतनी सिंचाई नहीं कर देनी चाहिए कि जो दोनों पोर हैं वो पानी से भर जाएं, पौधे को ऑक्सीजन न मिल पाए. ये मुख्य रूप से प्राकृतिक खेती के चार स्तंभ हैं और मुख्य रूप से प्राकृतिक खेत को केमिकल फ्री फार्मिंग भी बोलते हैं और और लो कॉस्ट कम लागत वाली प्राकृतिक खेती भी बोला जाता है.
प्राकृतिक खेती के फायदे
कृषि वैज्ञानिक डॉ बीके प्रजापति प्राकृतिक खेती के फायदे बताते हुए कहते हैं कि इसके कई फायदे होते हैं. जैसे जब हम अपने आसपास पाई जाने वाली चीजों से ही खेती में उपयोग होने वाले सभी चीजें बना लेते हैं तो खेती में लागत कम हो जाती है. इसे ऐसे समझ सकते हैं कि जब हम बीजामृत बनाते हैं.
बीजामृत बनाने के लिए हमें 20 लीटर पानी लगता है और 5 किलो देसी गाय का गोबर, 5 लीटर गोमूत्र, ढाई सौ ग्राम चूना और एक मुट्ठी मिट्टी पीपल या बरगद के पेड़ के नीचे की मिट्टी मिले तो और अच्छा होता है. इसे 2 से 3 दिनों तक एक ड्रम में मिलाने के बाद सभी तत्वों को तीन से चार दिनों तक घड़ी की दिशा में और विपरीत दिशा में सुबह शाम चलाने के बाद ये तैयार हो जाता है. फिर कोई भी फसल के बीज हों उसे 20 एमएल पर केजी के हिसाब से बीज को उपचारित कर सकते हैं. ऐसे ही निमास्त्र हो गया, जीवामृत हो गया कुछ भी बनाना है वो आसपास मिलने वाली चीजों से ही तैयार की जा सकती है.
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प्राकृतिक खेती यानि बाजार से कुछ नहीं खरीदना
प्राकृतिक खेती में हमें कोई भी चीज बाजार से नहीं खरीदना पड़ती. सीधे हमारे आसपास ही ये सभी चीजें उपलब्ध होती हैं. इन्हीं का उपयोग करके हमें खेती करनी होती है. आप देखेंगे कि इसमें लागत कम लग रही है. दूसरा रासायनिक चीज होती है फसल उससे मुक्त होती है. जिससे हमारे आहार में अनाज उत्पन्न होगा वह स्वस्थ होगा, हेल्दी होगा, उसे खाने के बाद इंसान भी स्वस्थ और सुरक्षित रहेग. भूमि, जल भी सब स्वस्थ रहेंगे, सुरक्षित रहेंगे, मिट्टी का कटाव नहीं होगा. इन सभी चीजों से निश्चित रूप से प्राकृतिक खेती किसानों के लिए फायदेमंद साबित होगी.