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भारंगम में नटुआ नाटक 'शीत-बसंत' का मंचन, प्रस्तुति ने रंगमंच प्रेमियों का मोहा मन

National School Of Drama: रंगमंच प्रेमियों के लिए दिल्ली के नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा में भारत रंग महोत्सव (भारंगम) रोज़ाना नाटकों का मंचन किया जा रहा है. 11 फरवरी से 21 फरवरी के बीच NSD के अलावा कमानी, एलटीजी, एसआरसी और मेघदूत सभागार में नाटकों का मंचन किया जा रहा है.

भारंगम में नटुआ नाटक 'शीत-बसंत' का मंचन
भारंगम में नटुआ नाटक 'शीत-बसंत' का मंचन
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By ETV Bharat Delhi Team

Published : Feb 10, 2024, 10:43 PM IST

भारंगम में नटुआ नाटक 'शीत-बसंत' का मंचन

नई दिल्ली: मिथिला के जनमानस में प्रचलित 'शीत-बसंत' कथा दो जुड़वा राजकुमारों की कहानी पर आधारित है. एक दिन दोनों बच्चों के खेल के दोरान गेंद से सौतेली माँ को चोट लग जाती है. गुस्से में सौतेली मां कसम खाती है कि जब तक मेरे हाथ में इन दोनों भाइयों का कलेजा नहीं रखा जाएगा, मैं कोप भवन से नहीं निकलूंगी. राजा अपने दोनों मासूम बेटों को बहुत प्यार करते हैं पर, नई नवेली रानी की जिद के आगे झुक जाते हैं.

राजा दो कसाइयों को बुलाकर आदेश देता है कि जंगल में जाकर इन दोनों बच्चों को मार कर उनका कलेजा लाकर नई रानी के हाथों में रखा जाए. पर, कसाई दयालु था. उन्हें बड़ी रानी का प्रेम याद आ जाता है. वह दोनों मासूम राजकुमारों को घने जंगल में ले जाकर छोड़ देते हैं और दो हिरनों को मारकर उनका कलेजा सौतेली (माँ) रानी के हाथ में प्रमाण स्वरूप रख देते हैं. रानी खुश हो जाती है. आगे जंगल में भटकते हुए दोनों राजकुमार 'शीत-बसंत' की विभिन्न स्थितियों-परिस्थियों का दृश्य चलता है. इन्हीं कथाओं के इर्द गिर्द यह मार्मिक कथा बढ़ती चलती है. उपरोक्त नाटक को को मधुबनी की लोक नाट्य शैली में प्रस्तुत किया गया है.

रंगमंच प्रेमियों के लिए दिल्ली के नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा (NSD) में भारत रंग महोत्सव (भारंगम) रोज़ाना नाटकों का मंचन किया जा रहा है
रंगमंच प्रेमियों के लिए दिल्ली के नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा (NSD) में भारत रंग महोत्सव (भारंगम) रोज़ाना नाटकों का मंचन किया जा रहा है

नटुआ नाटक के निर्देशक अजीत कुमार झा ने बताया कि शनिवार को 'शीत-बसंत' को लोक शैली में प्रस्तुत किया गया. इसमें उन कलाकारों ने प्रस्तुति दी जिन्होंने कभी भी नाट्य विद्यालय का रुख नहीं किया. लेकिन उनका अनुभव कहीं ज्यादा बेहतर है. अजीत ने बताया कि मिथिला में कोई भी पर्व-त्योहर हो नटुआ नाच की प्रस्तुति अनिवार्यता के साथ होती है. गौरतलब है कि इसे देखने प्रत्येक दिन क्षेत्र से हजारों की संख्या में जनमानस पहुँचते हैं. इस तरह मिथिला के लिए 'नटुआ नाच' सदियों से इसका एक अभिन्न अंग बना हुआ है.

मिथिला के जनमानस में प्रचलित 'शीत-बसंत' कथा दो जुड़वा राजकुमारों की कहानी पर आधारित है.
मिथिला के जनमानस में प्रचलित 'शीत-बसंत' कथा दो जुड़वा राजकुमारों की कहानी पर आधारित है.

मिथिला में लोक नाट्य परंपरा अति दीर्घ एवं प्राचीन है. संभवत लोक नाट्य की मौखिक परंपरा विदेहवंशी जनक राजाओं के समय से ही चली आ रही है. इसके लिखित साक्ष्य का संदर्भ तेरहवी शताब्दी में ज्योतिरीश्वर लिखित ग्रंथ 'वर्णरत्नाकर' में 'लोरिक नाच' के उल्लेख से प्रारम्भ हो जाता है. मिथिला के लोक नाट्य में पद्यमय संवाद तथा नृत्य का प्रयोग प्रचुर मात्रा में समावेशित है. इसके कथ्य प्राय सामाजिक, धार्मिक, पौराणिक या ऐतिहासिक हुआ करते हैं. बता दें कि नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा में 25 वें भारत रंग महोत्सव चल रहा है. 21 जनवरी को राजधानी के मंडी हाउस स्थित कमानी सभागार में इस महोत्सव का समापन किया जाएगा.

भारंगम में नटुआ नाटक 'शीत-बसंत' का मंचन

नई दिल्ली: मिथिला के जनमानस में प्रचलित 'शीत-बसंत' कथा दो जुड़वा राजकुमारों की कहानी पर आधारित है. एक दिन दोनों बच्चों के खेल के दोरान गेंद से सौतेली माँ को चोट लग जाती है. गुस्से में सौतेली मां कसम खाती है कि जब तक मेरे हाथ में इन दोनों भाइयों का कलेजा नहीं रखा जाएगा, मैं कोप भवन से नहीं निकलूंगी. राजा अपने दोनों मासूम बेटों को बहुत प्यार करते हैं पर, नई नवेली रानी की जिद के आगे झुक जाते हैं.

राजा दो कसाइयों को बुलाकर आदेश देता है कि जंगल में जाकर इन दोनों बच्चों को मार कर उनका कलेजा लाकर नई रानी के हाथों में रखा जाए. पर, कसाई दयालु था. उन्हें बड़ी रानी का प्रेम याद आ जाता है. वह दोनों मासूम राजकुमारों को घने जंगल में ले जाकर छोड़ देते हैं और दो हिरनों को मारकर उनका कलेजा सौतेली (माँ) रानी के हाथ में प्रमाण स्वरूप रख देते हैं. रानी खुश हो जाती है. आगे जंगल में भटकते हुए दोनों राजकुमार 'शीत-बसंत' की विभिन्न स्थितियों-परिस्थियों का दृश्य चलता है. इन्हीं कथाओं के इर्द गिर्द यह मार्मिक कथा बढ़ती चलती है. उपरोक्त नाटक को को मधुबनी की लोक नाट्य शैली में प्रस्तुत किया गया है.

रंगमंच प्रेमियों के लिए दिल्ली के नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा (NSD) में भारत रंग महोत्सव (भारंगम) रोज़ाना नाटकों का मंचन किया जा रहा है
रंगमंच प्रेमियों के लिए दिल्ली के नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा (NSD) में भारत रंग महोत्सव (भारंगम) रोज़ाना नाटकों का मंचन किया जा रहा है

नटुआ नाटक के निर्देशक अजीत कुमार झा ने बताया कि शनिवार को 'शीत-बसंत' को लोक शैली में प्रस्तुत किया गया. इसमें उन कलाकारों ने प्रस्तुति दी जिन्होंने कभी भी नाट्य विद्यालय का रुख नहीं किया. लेकिन उनका अनुभव कहीं ज्यादा बेहतर है. अजीत ने बताया कि मिथिला में कोई भी पर्व-त्योहर हो नटुआ नाच की प्रस्तुति अनिवार्यता के साथ होती है. गौरतलब है कि इसे देखने प्रत्येक दिन क्षेत्र से हजारों की संख्या में जनमानस पहुँचते हैं. इस तरह मिथिला के लिए 'नटुआ नाच' सदियों से इसका एक अभिन्न अंग बना हुआ है.

मिथिला के जनमानस में प्रचलित 'शीत-बसंत' कथा दो जुड़वा राजकुमारों की कहानी पर आधारित है.
मिथिला के जनमानस में प्रचलित 'शीत-बसंत' कथा दो जुड़वा राजकुमारों की कहानी पर आधारित है.

मिथिला में लोक नाट्य परंपरा अति दीर्घ एवं प्राचीन है. संभवत लोक नाट्य की मौखिक परंपरा विदेहवंशी जनक राजाओं के समय से ही चली आ रही है. इसके लिखित साक्ष्य का संदर्भ तेरहवी शताब्दी में ज्योतिरीश्वर लिखित ग्रंथ 'वर्णरत्नाकर' में 'लोरिक नाच' के उल्लेख से प्रारम्भ हो जाता है. मिथिला के लोक नाट्य में पद्यमय संवाद तथा नृत्य का प्रयोग प्रचुर मात्रा में समावेशित है. इसके कथ्य प्राय सामाजिक, धार्मिक, पौराणिक या ऐतिहासिक हुआ करते हैं. बता दें कि नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा में 25 वें भारत रंग महोत्सव चल रहा है. 21 जनवरी को राजधानी के मंडी हाउस स्थित कमानी सभागार में इस महोत्सव का समापन किया जाएगा.

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