नागौर. राजस्थान के हृदयस्थल नागौर से 2 अक्टूबर 1959 को देश के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित नेहरू ने पंचायतीराज व्यवस्था लागू की थी.उसकी स्मृति में शहर के पुलिस लाइन के पीछे चूबतरा बना हुआ है, जहां से पंडित नेहरू ने इसकी घोषणा की थी, लेकिन वह चबूतरा आज भी ज्यों का त्यों है. पूववर्ती कांग्रेस सरकार ने करीब दो साल पहले यहां पंचायतीराज शोध केन्द्र खोलने की घोषणा की थी, लेकिन वह घोषणा आज तक पूरी नहीं हुई.
तत्कालीन राज्य सरकार के पंचायतीराज विभाग के तत्कालीन मंत्री ने 15 मार्च 2022 को विधानसभा में नागौर में पंचायतीराज शोध केन्द्र की घोषणा की थी. इसके बावजूद अब तक न तो जमीन आवंटित की गई है और न ही बजट दिया गया है. जिला प्रशासन ने 11 अक्टूबर 2022 को पंचायतीराज शोध केन्द्र के लिए बीकानेर रोड पर करीब 4.85 हैक्टेयर जमीन आवंटन करने का प्रस्ताव राज्य सरकार को भेजा था. उस पर भी अब तक स्वीकृति की मुहर नहीं लग पाई. ऐसे में राज्य सरकार की घोषणा थोथी साबित हो रही है.
क्या कहती है नागौर की जनता: नागौर के आम लोग भी पंचायती राज चबूतरा का विकास नहीं होने और पंचायतीराज शोध केन्द्र नहीं बनने से निराश हैं. यहां के लोकेश श्रीवास्तव का मानना है कि नागौर में 1959 में पंचायतीराज की स्थापना के बाद से जो विकास होने चाहिए थे, वे नहीं हो पाए. जिस चबूतरे पर खड़े होकर देश के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने पंचायती राज की शुरुआत की घोषणा की थी, 65 वर्ष बीत जाने के बाद भी उस स्मारक को सुरक्षित करने या विकसित करने का कोई प्रयास नहीं हुआ. दो वर्ष पहले की गई पंचायती राज शोध संस्थान विकसित करने की घोषणा कागजों तक ही सीमित रह गई, अभी तक धरातल पर इसे लेकर कोई भी कार्य नहीं किए गए हैं. विश्व स्तर पर नागौर को पहचान दिलाने वाले पंचायती राज व्यवस्था को संरक्षण के नाम पर नागौर में गौर नहीं किया गया है. जल्द ही इस क्षेत्र को विकास में गति प्रदान की जानी चाहिए.