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पर्यटकों को जंगल की सैर करा रहीं आदिवासी महिलाएं, परिवार को भी मिल रही आर्थिक रूप से मदद

Narmdapuram Satpura Tiger Reserve : सतपुड़ा टाइगर रिजर्व के मड़ई में पदस्थ महिला गाइड सुहानी ने कभी सोचा नहीं था कि वे एक गाइड बन पाएंगी लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी. ऐसी ही कुछ कहानी नीतू और दूसरी आदिवासी महिलाओं की है जो एसटीआर में ड्राइवर, गार्ड और गाइड की नौकरी कर रही हैं. महिला दिवस पर नर्मदापुरम से ये खास रिपोर्ट.

narmdapuram satpura tiger reserve
परिवार के लिए सहारा बनीं आदिवासी महिलाएं
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By ETV Bharat Madhya Pradesh Team

Published : Mar 8, 2024, 11:09 PM IST

नर्मदापुरम के सतपुड़ा टाइगर रिजर्व में महिलाएं बनी गाइड और ड्राइवर

नर्मदापुरम। सतपुड़ा टाइगर रिजर्व में कई आदिवासी महिलाओं को पैंट और शर्ट में देखकर चौंक जाएंगे. ठेठ देहाती परिवेश से निकलीं ये युवतियां आज अपने परिवार के लिए आर्थिक रुप से मदद भी कर रहीं हैं. गाइड ,ड्राइवर और गार्ड जैसी सभी नौकरी वे कर रहीं हैं जिस पर पुरुष अपना एकाधिकार समझते थे. ऐसा इसलिए कि ये उस आदिवासी समाज की युवतियां हैं जिन्हें ये समाज हर वक्त ताने मारता रहता है.

आदिवासी महिलाओं ने संभाली कमान

आदिवासी महिला हैं यह कुछ नहीं कर पाएगी, लड़कियों को पैंट शर्ट पहनाकर बाहर काम के लिए भेज रहे हो,जंगल में जाकर बाहरी पर्यटकों को अब यह महिलाएं पर्यटन से संबंधित जानकारी देंगी. यह सब डायलॉग उन आदिवासी ग्रामीण महिलाओं के ग्राम के ग्रामीणों के हैं, लेकिन इन महिलाओं ने इन सभी बातों को अब झुठला दिया है. यह महिलाएं एसटीआर से लगे ग्रामीण क्षेत्रों से हैं और प्रतिदिन सतपुड़ा टाइगर रिजर्व के बफर एवं कोर एरिया में गाइड और ड्राइवर का काम कर रही हैं. एक माह बाद इन महिलाओं के चेहरे पर सुकून रहता है. जब इन महिलाओं के हाथों में एक मुस्त पेमेंट आती है. यह महिलाएं आर्थिक रूप से परिवार में सहयोग कर हाथ बंटा रही हैं.

सुहानी ने बताया कैसे बनीं गाइड

सतपुड़ा टाइगर रिजर्व के मड़ई में पदस्थ महिला गाइड सुहानी बताती हैं कि "वह करीब 5 किलोमीटर दूर गांव कामतीरंगपुर की रहने वाली हैं. 2021 से एसटीआर में गाइड के रूप में काम कर रही हैं. उन्होंने बताया कि जिस समय यहां पर गाइड के लिए एग्जाम हुए उस समय यह नहीं सोचा था कि हम यह सब कर पाएंगे और फिर बाद में हमने कोशिश की और बाद में हमने भी जंगल को पास से जानने की कोशिश की फिर स्टार्ट किया तो थोड़ा सा अजीब लगा. उन्होंने बताया जब कोई काम स्टार्ट करते हैं तो थोड़ी झिझक होती है पर बाद में काम पूरा होने पर खुशी मिलती है".

सुहानी बताती है एक तो हम गांव से हैं, आदिवासी लोग हैं,आने जाने की परेशानी, हर चीज की परेशानी रहती है, मेहमान से हर रोज मिलना साथ ही जंगल के बारे में बताना थोड़ा कठिन था, लेकिन धीरे-धीरे करके और फिर हमें हैबिट आ गई और अब हम समझा पा रहे हैं. मढ़ई में 20 महिलाएं गाइड का काम कर रहीं हैं, करीब 50 जेंट्स गाइड हैं. यहां पर महिला ड्राइवर भी हैं.

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पेमेंट हाथ में आते ही होती है खुशी

एसटीआर में एक और महिला गाइड नीतू ने बताया कि "वह कामती गांव की हैं. उन्होंने बताया कि शाम के समय घर जाते हैं तो ज्यादा बेहतर लगता है. काम करने के बाद घर पर बहुत थकान सी महसूस होती है. लगता है दूसरे दिन काम पर नहीं जाएं, लेकिन जब एक महीना पूरा होता है और जब पेमेंट हाथ में आती है तो बहुत खुशी होती है.इस पैसे से घर में डेली रूटीन की चीजें लेते हैं और उसके लिए घर वालों के लिए मदद कर पाते हैं. नीतू का कहना है कि हमें भी लगता है कि जो इंसान ज्यादा स्ट्रगल करता है उतना ही निखर कर बाहर आता है. उतनी ही शख्सियत उसकी बाहर निकाल कर आती है".

नर्मदापुरम के सतपुड़ा टाइगर रिजर्व में महिलाएं बनी गाइड और ड्राइवर

नर्मदापुरम। सतपुड़ा टाइगर रिजर्व में कई आदिवासी महिलाओं को पैंट और शर्ट में देखकर चौंक जाएंगे. ठेठ देहाती परिवेश से निकलीं ये युवतियां आज अपने परिवार के लिए आर्थिक रुप से मदद भी कर रहीं हैं. गाइड ,ड्राइवर और गार्ड जैसी सभी नौकरी वे कर रहीं हैं जिस पर पुरुष अपना एकाधिकार समझते थे. ऐसा इसलिए कि ये उस आदिवासी समाज की युवतियां हैं जिन्हें ये समाज हर वक्त ताने मारता रहता है.

आदिवासी महिलाओं ने संभाली कमान

आदिवासी महिला हैं यह कुछ नहीं कर पाएगी, लड़कियों को पैंट शर्ट पहनाकर बाहर काम के लिए भेज रहे हो,जंगल में जाकर बाहरी पर्यटकों को अब यह महिलाएं पर्यटन से संबंधित जानकारी देंगी. यह सब डायलॉग उन आदिवासी ग्रामीण महिलाओं के ग्राम के ग्रामीणों के हैं, लेकिन इन महिलाओं ने इन सभी बातों को अब झुठला दिया है. यह महिलाएं एसटीआर से लगे ग्रामीण क्षेत्रों से हैं और प्रतिदिन सतपुड़ा टाइगर रिजर्व के बफर एवं कोर एरिया में गाइड और ड्राइवर का काम कर रही हैं. एक माह बाद इन महिलाओं के चेहरे पर सुकून रहता है. जब इन महिलाओं के हाथों में एक मुस्त पेमेंट आती है. यह महिलाएं आर्थिक रूप से परिवार में सहयोग कर हाथ बंटा रही हैं.

सुहानी ने बताया कैसे बनीं गाइड

सतपुड़ा टाइगर रिजर्व के मड़ई में पदस्थ महिला गाइड सुहानी बताती हैं कि "वह करीब 5 किलोमीटर दूर गांव कामतीरंगपुर की रहने वाली हैं. 2021 से एसटीआर में गाइड के रूप में काम कर रही हैं. उन्होंने बताया कि जिस समय यहां पर गाइड के लिए एग्जाम हुए उस समय यह नहीं सोचा था कि हम यह सब कर पाएंगे और फिर बाद में हमने कोशिश की और बाद में हमने भी जंगल को पास से जानने की कोशिश की फिर स्टार्ट किया तो थोड़ा सा अजीब लगा. उन्होंने बताया जब कोई काम स्टार्ट करते हैं तो थोड़ी झिझक होती है पर बाद में काम पूरा होने पर खुशी मिलती है".

सुहानी बताती है एक तो हम गांव से हैं, आदिवासी लोग हैं,आने जाने की परेशानी, हर चीज की परेशानी रहती है, मेहमान से हर रोज मिलना साथ ही जंगल के बारे में बताना थोड़ा कठिन था, लेकिन धीरे-धीरे करके और फिर हमें हैबिट आ गई और अब हम समझा पा रहे हैं. मढ़ई में 20 महिलाएं गाइड का काम कर रहीं हैं, करीब 50 जेंट्स गाइड हैं. यहां पर महिला ड्राइवर भी हैं.

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पेमेंट हाथ में आते ही होती है खुशी

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