कोडरमा: जिले में संचालित 'नारी अदालत' महिला उत्पीड़न और घरेलू हिंसा जैसे मामलों को सुलझाने में अहम भूमिका निभा रही है. पिछले 17 सालों में नारी अदालत के जरिए 1000 से ज्यादा मामलों का निष्पादन किया गया है. इतना ही नहीं बिखर चुके परिवारों को भी मिलाया गया है.
जांच होने के बाद सुनाया जाता है फैसला
कोडरमा में संचालित नारी अदालत एक ऐसी अदालत है, जहां न कोई जज है न कोई वकील. यहां कोई भेदभाव भी नहीं है. फरियादी से लेकर फरियाद सुनने वाले सभी एक साथ जमीन पर बैठते हैं और न्याय भी इसी जमीन पर बैठकर किया जाता है. 2008 से लेकर अबतक 1000 से ज्यादा मामले इसी तरह निष्पादित हो चुके हैं. यह सिलसिला अनवरत जारी है.
दामोदर महिला मंडल के द्वारा संचालित यह नारी अदालत सिर्फ कोडरमा ही नहीं, बल्कि आसपास के कई जिलों में भी प्रसिद्ध है. पूरी प्रक्रिया और जांच पड़ताल किए जाने के बाद नारी अदालत दोनों पक्षों को आमने-सामने बैठाकर अपना फैसला सुनाती है. नारी अदालत का प्रयास रहता है कि दोनों पक्ष उसके फैसले से संतुष्ट हो.
पुरुष भी लेते हैं नारी अदालत की मदद
नारी अदालत की सचिव मीना देवी ने बताया कि दुष्कर्म और जमीन संबंधी मामले को छोड़कर हर तरह के मामले नारी अदालत में सुने जाते हैं और इसका फैसला भी सुनाया जाता है. नारी अदालत में महिलाओं के अलावा पुरुष भी घरेलू मामले को लेकर अपनी शिकायत दर्ज कराते हैं.
उन्होंने बताया कि जो महिलाएं घरेलू हिंसा और उत्पीड़न से जुड़े मामले को लेकर थाने और न्यायालय तक जाने से कतराती हैं, वैसी महिलाएं इंसाफ के लिए नारी अदालत का दरवाजा खटखटाती हैं. डॉक्टर के बजाय कंपाउंडर के द्वारा गलत ऑपरेशन से बीमार हुई उमा देवी को नारी अदालत के जरिए ही इंसाफ मिला.
मुझे जरूर इंसाफ मिलेगा: पीड़ित महिला
वहीं, दूसरी तरफ रंग सांवला होने के कारण पति के द्वारा ठुकराए जाने और दूसरी शादी किए जाने के मामले को लेकर नारी अदालत में पहुंची चंद्री देवी ने विस्तार से अपनी समस्या नारी अदालत के अध्यक्ष और सदस्यों को सुनाई. चंद्री देवी ने बताया कि जिस तरह दूसरी महिलाओं को इस नारी अदालत से इंसाफ मिलता है, उसे भी न्याय मिलेगा.
बता दें कि हर महीने की 16 और 28 तारीख को नारी अदालत में मामलों की सुनवाई की जाती है. कभी-कभी विशेष परिस्थितियों में इन तिथियों के अलावा दूसरी तारीखों में भी नारी अदालत लगाकर महिला उत्पीड़न और घरेलू हिंसा से जुड़े मामलों का निष्पादन होता है. जिन मामलों में नारी अदालत में फैसला नहीं हो पाता है, उन मामलों को नारी अदालत के जरिए थाने से लेकर न्यायालय तक लेकर जाया जाता है. जहां पीड़ितों को इंसाफ मिलता है.
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