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कारगिल के हीरो: 7 गोलियां खाकर भी दुश्मनों से लड़ते रहे नवाब वसीम, आज बच्चों को देते हैं फुटबॉल की ट्रेनिंग - Hero of Kargil War

Hero of Kargil War In Nainital हर साल 26 जुलाई को कारगिल विजय दिवस मनाया जाता है. यह दिन 'ऑपरेशन विजय' की शौर्यगाथा को बताता है. कारगिल दिवस के मौके पर ETV भारत ऐसे जांबाज की कहानी बताने जा रहा है जिसने कारगिल युद्ध में लड़ाई के दौरान दुश्मनों की 7 गोलियां खाई थी. लेकिन फिर भी वह मैदान में डटे रहे. आज वो वीर रामनगर और आसपास के 70 से ज्यादा बच्चों को फुटबॉल का प्रशिक्षण देकर नशे से दूर रहने की प्रेरणा दे रहे हैं.

Hero of Kargil War In Nainital
कारगिल के हीरो (PHOTO- ETV Bharat Graphics)
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By ETV Bharat Uttarakhand Team

Published : Jul 26, 2024, 6:19 AM IST

7 गोलियां खाकर भी दुश्मनों से लड़ते रहे नवाब वसीम (VIDEO_ ETV Bharat)

रामनगरः साल 1999 में भारत और पाकिस्तान की सेनाओं के बीच कारगिल युद्ध हुआ था. इस युद्ध में देश के कई जवानों ने अपनी शहादत दी थी. जिसमें उत्तराखंड के 75 जांबाजों के शहादत की कहानी भी दर्ज है. युद्ध में देश के कई जांबाज दुश्मन की गोली लगने से घायल भी हुए थे. उनमें से एक नैनीताल के नवाब वसीम भी थे. कारगिल युद्ध के जांबाज सिपाही नवाब वसीम के दोनों पैरों में दुश्मनों ने AK47 राइफल से 7 गोलियां मारी थी. लेकिन फिर भी वसीम दुश्मनों से लड़ते रहे. खास बात है कि पैरों में गोलियां लगने के बाद आज रिटायर्ड सूबेदार मेजर नवाब वसीम बच्चों को फुटबॉल की ट्रेनिंग दे रहे हैं.

मूलरूप से पौड़ी गढ़वाल के लैंसडाउन निवासी नवाब वसीम उर रहमान अब गढ़वाल राइफल के सूबेदार मेजर के पद से रिटायर्ड होकर अब रामनगर में रह रहे हैं. कारगिल युद्ध के पलों को याद करते हुए नवाब वसीम कहते हैं, वे 1990 में गढ़वाल राइफल में भर्ती हुए थे. दो साल जम्मू- कश्मीर के कुपवाड़ा में ड्यूटी के बाद उनकी पोस्टिंग जोशीमठ उत्तराखंड के लिए हुई. लेकिन इसी बीच उनकी बटालियन को कारगिल की बर्फीली पहाड़ी 4700 क्षेत्र को दुश्मनों से खाली कराने का टास्क मिल गया. पहले दिन ही कैप्टन सुमित राय दुश्मनों की गोली लगने से शहीद हो गए.

वसीम बताते हैं कि दुश्मन टाइगर हिल पर कब्जा कर बैठा था. सेना के लिए सबसे बड़ी चुनौती थी उसे वापस अपने कब्जे में लेने की. पाकिस्तानी जवान ऊपर से गोलियां बरसा रहे थे. तोप दाग रहे थे, लेकिन भारतीय जवानों ने अंधेरे में पहाड़ी पर चढ़ाई की और टाइगर हिल पर कब्जा कर पाकिस्तान को मुंहतोड़ जवाब दिया. लेकिन इस युद्ध में उनके दाएं पैर में 6 गोली लगी थी, जबकि बाएं पैर में एक गोली लगी थी. दाएं पैर में 6 गोली लगने के बाद उनके पैर की डॉ. मेजर जनरल चोपड़ा ने सर्जरी की थी. नवाब वसीम कहते हैं, 'गोली लगने के बाद मुझे नहीं लगता था कि मैं दोबारा कभी चल पाऊंगा. लेकिन मैं आर्मी के सारे डॉक्टर्स और मेडिकल स्टाफ का हमेशा शुक्रगुजार हूं कि उन्होंने अपने पूरे एफर्ट के साथ मुझे दोबारा खड़ा कर दिया. उसके बाद मैंने करीब 20 साल देश सेवा की और 2019 में सूबेदार मेजर के पद से रिटायर्ड हुआ'.

रिटायर्ड सूबेदार मेजर नवाब वसीम के एक बेटा और एक बेटी हैं. बेटा वाहेदु रहमान खान 11वीं के छात्र हैं. वे भी अपने पिता और दादा की तरफ देश सेवा का जज्बा रखते हैं.

ये भी पढ़ेंः कारगिल विजय दिवस की 25वीं वर्षगांठ, RIMC में सिम्फनी बैंड का शानदार प्रदर्शन

7 गोलियां खाकर भी दुश्मनों से लड़ते रहे नवाब वसीम (VIDEO_ ETV Bharat)

रामनगरः साल 1999 में भारत और पाकिस्तान की सेनाओं के बीच कारगिल युद्ध हुआ था. इस युद्ध में देश के कई जवानों ने अपनी शहादत दी थी. जिसमें उत्तराखंड के 75 जांबाजों के शहादत की कहानी भी दर्ज है. युद्ध में देश के कई जांबाज दुश्मन की गोली लगने से घायल भी हुए थे. उनमें से एक नैनीताल के नवाब वसीम भी थे. कारगिल युद्ध के जांबाज सिपाही नवाब वसीम के दोनों पैरों में दुश्मनों ने AK47 राइफल से 7 गोलियां मारी थी. लेकिन फिर भी वसीम दुश्मनों से लड़ते रहे. खास बात है कि पैरों में गोलियां लगने के बाद आज रिटायर्ड सूबेदार मेजर नवाब वसीम बच्चों को फुटबॉल की ट्रेनिंग दे रहे हैं.

मूलरूप से पौड़ी गढ़वाल के लैंसडाउन निवासी नवाब वसीम उर रहमान अब गढ़वाल राइफल के सूबेदार मेजर के पद से रिटायर्ड होकर अब रामनगर में रह रहे हैं. कारगिल युद्ध के पलों को याद करते हुए नवाब वसीम कहते हैं, वे 1990 में गढ़वाल राइफल में भर्ती हुए थे. दो साल जम्मू- कश्मीर के कुपवाड़ा में ड्यूटी के बाद उनकी पोस्टिंग जोशीमठ उत्तराखंड के लिए हुई. लेकिन इसी बीच उनकी बटालियन को कारगिल की बर्फीली पहाड़ी 4700 क्षेत्र को दुश्मनों से खाली कराने का टास्क मिल गया. पहले दिन ही कैप्टन सुमित राय दुश्मनों की गोली लगने से शहीद हो गए.

वसीम बताते हैं कि दुश्मन टाइगर हिल पर कब्जा कर बैठा था. सेना के लिए सबसे बड़ी चुनौती थी उसे वापस अपने कब्जे में लेने की. पाकिस्तानी जवान ऊपर से गोलियां बरसा रहे थे. तोप दाग रहे थे, लेकिन भारतीय जवानों ने अंधेरे में पहाड़ी पर चढ़ाई की और टाइगर हिल पर कब्जा कर पाकिस्तान को मुंहतोड़ जवाब दिया. लेकिन इस युद्ध में उनके दाएं पैर में 6 गोली लगी थी, जबकि बाएं पैर में एक गोली लगी थी. दाएं पैर में 6 गोली लगने के बाद उनके पैर की डॉ. मेजर जनरल चोपड़ा ने सर्जरी की थी. नवाब वसीम कहते हैं, 'गोली लगने के बाद मुझे नहीं लगता था कि मैं दोबारा कभी चल पाऊंगा. लेकिन मैं आर्मी के सारे डॉक्टर्स और मेडिकल स्टाफ का हमेशा शुक्रगुजार हूं कि उन्होंने अपने पूरे एफर्ट के साथ मुझे दोबारा खड़ा कर दिया. उसके बाद मैंने करीब 20 साल देश सेवा की और 2019 में सूबेदार मेजर के पद से रिटायर्ड हुआ'.

रिटायर्ड सूबेदार मेजर नवाब वसीम के एक बेटा और एक बेटी हैं. बेटा वाहेदु रहमान खान 11वीं के छात्र हैं. वे भी अपने पिता और दादा की तरफ देश सेवा का जज्बा रखते हैं.

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