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उत्तराखंड में नियमितीकरण पर HC का बड़ा फैसला, संविदा कर्मियों को नियमित करने के फैसले को माना जायज

Employees Regularization in Uttarakhand नैनीताल हाईकोर्ट में कर्मचारियों के नियमितीकरण पर बड़ा फैसला सुनाया है. हाईकोर्ट ने 4 दिसंबर 2018 से पहले के दैनिक वेतन, तदर्थ और संविदा कर्मियों को नियमित करने के फैसले को जायज माना है. साथ ही 2013 की नियमावली को चुनौती देती याचिकाओं को निस्तारित कर दिया है.

Nainital High Court
नैनीताल हाईकोर्ट
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By ETV Bharat Uttarakhand Team

Published : Feb 23, 2024, 5:27 PM IST

नैनीताल: उत्तराखंड में कर्मचारियों के नियमितीकरण को लेकर सरकार की ओर से साल 2013 में बनाई नियमावली को चुनौती देती याचिकाकाओं को नैनीताल हाईकोर्ट ने निस्तारित कर दिया है. साथ ही 4 दिसंबर 2018 से पहले जिन दैनिक वेतन, तदर्थ और संविदा कर्मियों को नियमित नियुक्ति दी गई, उन्हें कोर्ट ने नियमित ठहराया है. जबकि, बाकी कर्मचारियों को 2013 की नियमावली के अनुसार दस साल सेवा दैनिक वेतन, संविदा में पूरी होने के बाद ही नियमित करने को कहा है.

गौर हो कि नैनीताल हाईकोर्ट ने सरकार की 31 दिसंबर 2013 की नियमावली के क्रियान्वयन पर 4 दिसंबर 2018 में रोक लगाते हुए सरकारी विभागों, निगमों, परिषदों और अन्य सरकारी उपक्रमों में कार्यरत दैनिक वेतन कर्मचारियों के नियमितीकरण पर रोक लगा दी थी. तब से नियमितीकरण की प्रक्रिया बंद थी. यह सुनवाई मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति रितु बाहरी और न्यायमूर्ति आलोक वर्मा की खंडपीठ ने नैनीताल के सौड़ बगड़ निवासी नरेंद्र सिंह बिष्ट, हल्द्वानी के हिमांशु जोशी समेत अन्य की याचिका पर की.

याचिकाकर्ताओं के मुताबिक, निगमों, विभागों, परिषदों और अन्य सरकारी उपक्रमों में बिना किसी चयन प्रक्रिया के कर्मचारियों का नियमितीकरण किया जा रहा है. जिससे उनका हित प्रभावित हो रहा है. इस मामले में सरकार ने सुप्रीम कोर्ट की ओर से उमा देवी बनाम कर्नाटक राज्य मामले में दिए निर्देशों के क्रम में 2011 में कर्मचारी नियमितीकरण नियमावली बनाई. जिसके तहत 10 वर्ष या उससे ज्यादा समय से दैनिक वेतन, तदर्थ, संविदा में कार्यरत कर्मियों को नियमित करने का फैसला लिया गया.

वहीं, उत्तराखंड राज्य गठन के बाद बने नए विभागों में दैनिक वेतन, तदर्थ या संविदा में कार्यरत कर्मचारी इस नियमावली में नहीं आ सके. जिस पर सरकार ने 31 दिसंबर 2013 को एक नई नियमावली जारी की. जिसमें कहा गया कि दिसंबर 2008 में जो कर्मचारी 5 साल या उससे ज्यादा की सेवा पूरी कर चुके हैं, उन्हें नियमित किया जाएगा. जबकि, कई याचिकाकर्ताओं ने इसे 5 साल के बजाय 10 साल करने की मांग की. जिसे सरकार ने बाद में 10 साल कर दिया था.

इस मामले में पक्षों को सुनने के बाद मुख्य न्यायाधीश की अध्यक्षता वाली खंडपीठ ने इन सभी याचिकाओं को निस्तारित कर दिया है. साथ ही मामले में निर्णय दिया कि 4 दिसंबर 2018 से पहले जिन कार्मिकों को नियमितीकरण किया जा चुका है, उन्हें नियमित माना जाए. साथ ही अन्य को दस वर्ष की दैनिक वेतन के रूप में सेवा करने की बाध्यता के आधार पर नियमित किया जा सकता है.

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गौर हो कि नैनीताल हाईकोर्ट ने सरकार की 31 दिसंबर 2013 की नियमावली के क्रियान्वयन पर 4 दिसंबर 2018 में रोक लगाते हुए सरकारी विभागों, निगमों, परिषदों और अन्य सरकारी उपक्रमों में कार्यरत दैनिक वेतन कर्मचारियों के नियमितीकरण पर रोक लगा दी थी. तब से नियमितीकरण की प्रक्रिया बंद थी. यह सुनवाई मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति रितु बाहरी और न्यायमूर्ति आलोक वर्मा की खंडपीठ ने नैनीताल के सौड़ बगड़ निवासी नरेंद्र सिंह बिष्ट, हल्द्वानी के हिमांशु जोशी समेत अन्य की याचिका पर की.

याचिकाकर्ताओं के मुताबिक, निगमों, विभागों, परिषदों और अन्य सरकारी उपक्रमों में बिना किसी चयन प्रक्रिया के कर्मचारियों का नियमितीकरण किया जा रहा है. जिससे उनका हित प्रभावित हो रहा है. इस मामले में सरकार ने सुप्रीम कोर्ट की ओर से उमा देवी बनाम कर्नाटक राज्य मामले में दिए निर्देशों के क्रम में 2011 में कर्मचारी नियमितीकरण नियमावली बनाई. जिसके तहत 10 वर्ष या उससे ज्यादा समय से दैनिक वेतन, तदर्थ, संविदा में कार्यरत कर्मियों को नियमित करने का फैसला लिया गया.

वहीं, उत्तराखंड राज्य गठन के बाद बने नए विभागों में दैनिक वेतन, तदर्थ या संविदा में कार्यरत कर्मचारी इस नियमावली में नहीं आ सके. जिस पर सरकार ने 31 दिसंबर 2013 को एक नई नियमावली जारी की. जिसमें कहा गया कि दिसंबर 2008 में जो कर्मचारी 5 साल या उससे ज्यादा की सेवा पूरी कर चुके हैं, उन्हें नियमित किया जाएगा. जबकि, कई याचिकाकर्ताओं ने इसे 5 साल के बजाय 10 साल करने की मांग की. जिसे सरकार ने बाद में 10 साल कर दिया था.

इस मामले में पक्षों को सुनने के बाद मुख्य न्यायाधीश की अध्यक्षता वाली खंडपीठ ने इन सभी याचिकाओं को निस्तारित कर दिया है. साथ ही मामले में निर्णय दिया कि 4 दिसंबर 2018 से पहले जिन कार्मिकों को नियमितीकरण किया जा चुका है, उन्हें नियमित माना जाए. साथ ही अन्य को दस वर्ष की दैनिक वेतन के रूप में सेवा करने की बाध्यता के आधार पर नियमित किया जा सकता है.

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