नैनीताल: उत्तराखंड विधानसभा सचिवालय में अवैध और बैकडोर नियुक्तियों के खिलाफ दायर दो जनहित याचिकाओं पर नैनीताल हाईकोर्ट में एक साथ सुनवाई हुई. मामले की सुनवाई के बाद मुख्य न्यायाधीश रितु बाहरी और न्यायमूर्ति आलोक कुमार वर्मा की खंडपीठ ने विधानसभा सचिवालय को 6 फरवरी 2003 के शासनादेश के तहत मामले में शामिल लोगों पर कार्रवाई करने के निर्देश दिए. साथ ही सचिवालय से जवाब पेश करने को कहा है. अब इस मामले की अगली सुनवाई 20 जून को होगी.
दरअसल, देहरादून के रहनेव वाले अभिनव थापर और बैजनाथ ने नैनीताल हाईकोर्ट में अलग-अलग जनहित याचिकाएं दायर की हैं. जिसमें अभिनव थापर की जनहित याचिका में विधानसभा सचिवालय में हुई बैकडोर भर्ती, भ्रष्टाचार और अनियमितताओं को चुनौती दी गई है. उन्होंने याचिका में कहा है कि विधानसभा ने एक जांच समिति बनाकर साल 2016 के बाद की विधानसभा सचिवालय में हुई भर्तियों को निरस्त कर दिया है. जबकि, उससे पहले की नियुक्तियों को नहीं किया.
अभिनव थापर का आरोप था कि सचिवालय में यह घोटाला साल 2000 यानी राज्य बनने से अब तक होता आ रहा है, जिस पर सरकार अनदेखी कर रही है. जनहित याचिका में हाईकोर्ट से प्रार्थना की है कि विधानसभा भर्ती में भ्रष्टाचार से नौकरियों को लगाने वाले ताकतवर लोगों के खिलाफ उच्च न्यायालय के सिटिंग जज की निगरानी में जांच कराई जाए. साथ ही उनसे सरकारी धन की वसूली कर उनके खिलाफ कार्रवाई अमल में लाई जाए.
वहीं, दूसरी जनहित याचिका में विधानसभा सचिवालय के सचिव की अवैध नियुक्ति को चुनौती दी गई है. आज सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता के अधिवक्ता ने कोर्ट को बताया कि सरकार ने 6 फरवरी 2003 का शासनादेश जिसमें तदर्थ नियुक्ति पर रोक संविधान का अनुच्छेद 14, 16 और 187 का उल्लंघन है. जिसमें हर किसी को सरकारी नौकरियों में समान अधिकार और नियमानुसार भर्ती होने का प्रावधान है. ऐसे में उत्तर प्रदेश विधानसभा की 1974 की सेवा नियमावली के साथ उत्तराखंड विधानसभा की 2011 नियमावलियों का उल्लंघन किया गया है. फिलहाल, मामले में नैनीताल हाईकोर्ट ने सचिवालय से जवाब तलब किया है.
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