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याचिकाकर्ता के शोषण और प्रताड़ना मामले पर सुनवाई, सभी पक्षकारों को शपथ पत्र पेश करने के आदेश - CHORGALIA POLICE CASE

नैनीताल हाईकोर्ट में याचिकाकर्ता के शोषण-प्रताड़ना मामले पर सुनवाई हुई. सभी पक्षकारों को शपथ पत्र 6 हफ्ते के भीतर देने को कहा गया है.

Nainital High Court
नैनीताल उच्च न्यायालय (फोटो- ETV Bharat)
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By ETV Bharat Uttarakhand Team

Published : Nov 6, 2024, 9:55 PM IST

नैनीताल: हल्द्वानी के चोरगलिया पुलिस की ओर से याचिकाकर्ता का प्रताड़ना करने के खिलाफ दायर याचिका पर नैनीताल हाईकोर्ट में सुनवाई हुई. मामले की सुनवाई के बाद न्यायमूर्ति पंकज पुरोहित की एकलपीठ ने याचिकाकर्ता के अनुरोध पर याचिका में बनाए सभी पक्षकारों से अपना शपथ पत्र 6 हफ्ते के भीतर पेश करने के आदेश दिए हैं.

आज सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता ने कोर्ट को अवगत कराया कि इस मामले में उनकी ओर से 11 पक्षकार बनाए गए थे, लेकिन विपक्षी संख्या दो डीजीपी की ओर से ही कोर्ट में उनकी याचिका पर जवाब पेश किया गया, जबकि उनकी प्रताड़ना अन्य विपक्षियों की ओर से की गई. उनका अभी तक कोई व्यक्तिगत जवाब नहीं आया. लिहाजा, उनसे भी जवाब पेश करने के आदेश दिए जाएं. जिस पर कोर्ट ने सभी पक्षकारों से 6 हफ्ते के भीतर अपना जवाब पेश करने को कहा है.

याचिकाकर्ता ने अपनी याचिका में गृह सचिव, डीजीपी, कमिश्नर कुमाऊं, पूर्व जिलाधिकारी सविन बंसल, वर्तमान जिलाधिकारी, पूर्व एसएसपी सुनील मीणा, पूर्व एसडीएम विवेक रॉय, तत्कालीन एएसपी हरबंस सिंह, तत्कालीन चौकी प्रभारी संजय जोशी, संजय कुमार और राज्य मानवाधिकार को पक्षकार बनाया है, जिसमें से विपक्षी संख्या 2 डीजीपी का ही जवाब आया है. बाकी का नहीं आया, इसलिए अन्य पक्षकारों से भी जवाब मंगवाया जाए कि किस आधार पर उनकी ओर से याचिकाकर्ता के खिलाफ गुंडा एक्ट लगाया गया है.

क्या था मामला? दरअसल, चोरगलिया निवासी समाज सेवी बीसी पोखरिया ने नैनीताल हाईकोर्ट में एक याचिका दायर की है. जिसमें उन्होंने कहा है कि साल 2020 में तत्कालीन जिलाधिकारी ने सभी मानकों को नजर अंदाज करके रिहायशी क्षेत्र में स्टोन क्रशर लगाने और भंडारण की अनुमति दे दी, जिसका विरोध उनके और क्षेत्रवासियों की ओर से किया गया. इस विरोध के चलते डीएम और पुलिस ने उनके खिलाफ पहले आईपीसी की धारा 107 व 116 शांति भंग करने का मुकदमा दर्ज किया. बाद में उनका लाइसेंसी शस्त्र भी जब्त कर लिया और उनको जिला बदर कर दिया गया.

इन केसों में उन्हें निचली अदालत ने बरी कर दिया, लेकिन उनकी ओर से अपनी आत्म सम्मान को बनाए रखने के लिए राज्य मानवाधिकार के पास इनके खिलाफ कार्रवाई को लेकर साल 2020 में प्रार्थना पत्र दिया, लेकिन अभी तक उस पर कोई कार्रवाई नहीं हुई, जब कार्रवाई नहीं हुई तो उन्होंने हाईकोर्ट में याचिका दायर की. कोर्ट ने आयोग से इस प्रकरण को जल्द निस्तारण करने को कहा.

आयोग ने आनन-फानन में उनके प्रार्थना पत्र को निस्तारित करते हुए कहा कि इनके पास अनुतोष का लाभ पाने के लिए कई अन्य विकल्प हैं, लेकिन आयोग ने दोषी अधिकरियों के खिलाफ कोई उचित कार्रवाई करने का निर्णय नहीं लिया, जिसकी वजह से उन्हें दोबारे हाईकोर्ट की शरण लेनी पड़ी.

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आज सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता ने कोर्ट को अवगत कराया कि इस मामले में उनकी ओर से 11 पक्षकार बनाए गए थे, लेकिन विपक्षी संख्या दो डीजीपी की ओर से ही कोर्ट में उनकी याचिका पर जवाब पेश किया गया, जबकि उनकी प्रताड़ना अन्य विपक्षियों की ओर से की गई. उनका अभी तक कोई व्यक्तिगत जवाब नहीं आया. लिहाजा, उनसे भी जवाब पेश करने के आदेश दिए जाएं. जिस पर कोर्ट ने सभी पक्षकारों से 6 हफ्ते के भीतर अपना जवाब पेश करने को कहा है.

याचिकाकर्ता ने अपनी याचिका में गृह सचिव, डीजीपी, कमिश्नर कुमाऊं, पूर्व जिलाधिकारी सविन बंसल, वर्तमान जिलाधिकारी, पूर्व एसएसपी सुनील मीणा, पूर्व एसडीएम विवेक रॉय, तत्कालीन एएसपी हरबंस सिंह, तत्कालीन चौकी प्रभारी संजय जोशी, संजय कुमार और राज्य मानवाधिकार को पक्षकार बनाया है, जिसमें से विपक्षी संख्या 2 डीजीपी का ही जवाब आया है. बाकी का नहीं आया, इसलिए अन्य पक्षकारों से भी जवाब मंगवाया जाए कि किस आधार पर उनकी ओर से याचिकाकर्ता के खिलाफ गुंडा एक्ट लगाया गया है.

क्या था मामला? दरअसल, चोरगलिया निवासी समाज सेवी बीसी पोखरिया ने नैनीताल हाईकोर्ट में एक याचिका दायर की है. जिसमें उन्होंने कहा है कि साल 2020 में तत्कालीन जिलाधिकारी ने सभी मानकों को नजर अंदाज करके रिहायशी क्षेत्र में स्टोन क्रशर लगाने और भंडारण की अनुमति दे दी, जिसका विरोध उनके और क्षेत्रवासियों की ओर से किया गया. इस विरोध के चलते डीएम और पुलिस ने उनके खिलाफ पहले आईपीसी की धारा 107 व 116 शांति भंग करने का मुकदमा दर्ज किया. बाद में उनका लाइसेंसी शस्त्र भी जब्त कर लिया और उनको जिला बदर कर दिया गया.

इन केसों में उन्हें निचली अदालत ने बरी कर दिया, लेकिन उनकी ओर से अपनी आत्म सम्मान को बनाए रखने के लिए राज्य मानवाधिकार के पास इनके खिलाफ कार्रवाई को लेकर साल 2020 में प्रार्थना पत्र दिया, लेकिन अभी तक उस पर कोई कार्रवाई नहीं हुई, जब कार्रवाई नहीं हुई तो उन्होंने हाईकोर्ट में याचिका दायर की. कोर्ट ने आयोग से इस प्रकरण को जल्द निस्तारण करने को कहा.

आयोग ने आनन-फानन में उनके प्रार्थना पत्र को निस्तारित करते हुए कहा कि इनके पास अनुतोष का लाभ पाने के लिए कई अन्य विकल्प हैं, लेकिन आयोग ने दोषी अधिकरियों के खिलाफ कोई उचित कार्रवाई करने का निर्णय नहीं लिया, जिसकी वजह से उन्हें दोबारे हाईकोर्ट की शरण लेनी पड़ी.

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