कुचामनसिटी. नागौर शहर आखातीज के दिन अपना स्थापना मनाता है. इसकी स्थापना महाभारत काल में हुई थी. तब इसे अहिछत्रपुर नगरी के नाम से जानते थे. तब से लेकर अब तक इसने कई उतार चढ़ाव देखें है. इतिहास की कई अमरगाथाएं ये अपने आगोश में समेट है.
नागौर राजस्थान के बीचों बीच बसा शहर है, इसलिए इसे राजस्थान का दिल भी कहा जाता है. इसका मौसम सालभर अनुकूल है. राजस्थानी में कहावत है, नागीणा री धरती नामी, नर रत्ना री खान. जनम्या है कई संत सूरमां, देश भक्त विद्वान. इसी प्रकार 'सियालो खाटू भलो, ऊनालो अजमेर. नागाणो नित रो भलो, सावण बीकानेर.' इस कहावत में बताया गया है कि नागौर की धरती रत्नों की खान है. दूसरी कहावत में कहा गया है कि शीत ऋतु में नागौर का खाटू गांव अच्छा लगता है और गर्मी के दिनों में अजमेर शहर. नागाणा (नागौर) शहर का तापमान बारह मास अनुकूल व अच्छा बतलाया गया है, वहीं सावण मास में बीकानेर शहर को उत्तम बताया गया है.
रामायण व महाभारत में भी है नागौर का जिक्र: इतिहासकारों के अनुसार नागौर का जिक्र रामायण और महाभारत काल से माना जाता है. महाकाव्य रामायण के अनुसार समुद्र देव की प्रार्थना पर भगवान श्रीराम ने इस क्षेत्र में आग्नेयास्त्र अमोघ ब्रहास्त्र का प्रयोग किया था. तब यहां द्रुमकुल्य नामक समुद्र था, जो कि भारत के उत्तरी भाग में स्थित था. साथ ही वरदान से यह क्षेत्र दुर्लभ औषधियों का भण्डार हो गया. आज भी यहां की धरती पर कैर, कुमटी, धतूरा, खेजड़ी, शंखपुष्पी, बज्रदन्ती, गौखरू, खींप, नागबैल के सहित कई जीवनदायनी वनौषधियां पाई जाती हैं.
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जांगल प्रदेश की राजधानी रहा: महाभारत तथा पौराणिक ग्रन्थों के अनुसार श्रीकृष्ण इसी जांगल (नागौर-मारवाड़) क्षेत्र में महर्षि गौतम के शिष्य उतंग मुनि से आशीर्वाद प्राप्त कर द्वारिका गए थे. कहा जाता है कि नागौर कभी गुरु द्रोणाचार्य का धनुष विद्या का केन्द्र भी रहा है. नागौर के इतिहास के बारे में कहा जाता है कि महाभारत काल में नागौर जांगल प्रदेश की राजधानी रहा है. मौर्य काल में वर्तमान नागौर जिला कई जातियों के गणराज्यों में बंटा हुआ था. बिन्दुसार के शासनकाल में नागौर प्रान्त अशोक के अधिकार क्षेत्र में रहा था.
नागौर का बड़ी रियासतों से पुराना रिश्ता: नागौर के इतिहासकार जगदीश प्रसाद सोनी ने बताया कि नागौर का इतिहास काफी प्राचीन है. शोध के आधार पर नागौर में कुछ ऐसे साक्ष्य मिले हैं, जिससे नागौर को महाभारत काल के समय से भी पुराना माना जाता है. उन्होंने बताया कि महाभारत के ही उद्योग पर्व अध्याय 54 के श्लोक 7 के अनुसार उस समय का नागौर अहिच्छत्रपुर कौरवों के अधीन था. इतिहासकार सोनी ने बताया कि त्रेता युग में अक्षय तृतीया के दिन नागौर की स्थापना हुई थी.
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नागवंशी राजपूतों ने स्थापित किया किला: प्राचीन काल में नागौर नागपुर, नागदुर्ग और अहिच्छत्रपुर नाम से भी जाना जाता था. इन सभी का शाब्दिक अर्थ नागों का नगर या वह नगर जिस पर नाग (सर्पों) का एक छत्र शासन है. इन सभी जानकारी से यह अर्थ निकलता है कि किसी समय यहां नाग जाति प्रमुखता से निवास करती थी. इतिहासकार कर्नल टाॅड ने भी ऑक्सफोर्ड यूनिर्वसिटी प्रेस के 1920 के एक प्रकाशन में इसे नागा दुर्ग के नाम से उल्लेखित किया है. वहीं दी इम्पीरियल गजेटियर आफ इंडिया 1908 के अनुसार नागौर का नाम इसके संस्थापक नागा राजपूतों के नाम से लिया गया है. यहां के किले के बारे में कहा जाता है कि चौथी शताब्दी में नाग वंशीय राजा ने इसे बनाया. जिस दिन इस किले की नींव रखी गई उस दिन भी अक्षय तृतीया थी.
बनावट के लिए प्रसिद्ध है किला: नागौर का किला विश्व भर में अलग पहचान रखता है, क्योंकि इस किले को कोई भी जीत नहीं पाया है. यह अपनी बनावट के लिए भी जाना जाता है. इसे नागाणा दुर्ग अविजित किला के नाम से भी जाना जाता है. नागौर शहर में बने सात दरवाजे भी इसके गौरवशाली इतिहास को बयां करते हैं यह सभी पुरातात्विक धरोहर है.
गंगा जमुनी तहजीब की मिसाल दरगाह: यहां सुल्तानुत तारकिन सूफी हमीदुद्दीन नागौरी की दरगाह है. इसका बुलंद दरवाजा प्रसिद्ध है, जिसे 1230 ई. में इल्तुतमिश ने बनवाया था. जाली झरोखों से पुरानी तरह के बने मकान इस शहर की पुरानी बसावट को आबाद करते हैं. शहर के हृदयस्थल में ऐतिहासिक बंशीवाला मंदिर है. जोधपुर के राजगत सिंह के बेटे अमर सिंह राठौड़ की बहादुरी भी नागौर के इतिहास का एक हिस्सा है. नागौर के राजा रहे अमर सिंह राठौड़ ने आगरा के किले में जाकर मुगल बादशाह शाहजहां के साले को मौत के घाट उतार दिया था. नागौर में अमर सिंह राठौर की छतरियां है. बाद में सरकार ने अमर सिंह राठौड़ का पैनोरमा भी नागौर में बनवाया.