पटना: बिहार के चर्चित बालिका गृह कांड के मुख्य आरोपी ब्रजेश ठाकुर पर मुजफ्फरपुर कोर्ट में अंतिम फैसला हो सकता है. इस पूरे मामले में 2020 में सीबीआई के समक्ष बालिका गृह की लड़कियों ने मूंछ वाले अंकल, तोंद वाले अंकल को लेकर बयान दिया. लड़कियां ये बयान देने के बाद सिहर उठी. लेकिन आजतक मूंछ वाले और तोंद वाले अंकल पर कोई कार्रवाई नहीं हुई है.
23 नवंबर को लाया गया मुजफ्फरपुर: वहीं ब्रजेश ठाकुर को पूर्व में 23 नवंबर को दिल्ली की तिहाड़ जेल से विशेष सुरक्षा व्यवस्था के तहत मुजफ्फरपुर लाया गया था. 25 नवंबर को विशेष एससी-एसटी कोर्ट में उनकी पेशी की गई थी.
मुख्य आरोपी ब्रजेश ठाकुर की मुजफ्फरपुर में पेशी: शेल्टर होम से 11 महिलाओं और उनके चार बच्चों को गायब करने के आरोप में ब्रजेश ठाकुर, कृष्णा और अन्य आरोपियों के खिलाफ मामला चल रहा है. फैसले के लिए सोमवार नौ दिसंबर 2024 की तारीख तय की गई. बहस भी पूरी हो चुकी है. अब अदालत द्वारा सजा की अवधि और अन्य कानूनी पहलुओं पर निर्णय लिया जाएगा.
ब्रजेश पर हो सकता है अंतिम फैसला: सीबीआई ने मामले की जांच की थी, जिसमें कई अहम राज भी खुले थे. जिसके बाद दिल्ली साकेत कोर्ट ने दुष्कर्म व पॉक्सो (प्रोटेक्शन ऑफ चिल्ड्रेन फ्रॉम सेक्सुअल ऑफेंस एक्ट) केस में सुनवाई करते हुए ब्रजेश ठाकुर समेत अन्य को दोषी करार दिया था. जिसके बाद से ब्रजेश तिहाड़ जेल में बंद हैं. बताया जा रहा है कि ब्रजेश पर अंतिम फैसला साबित हो सकता है.
आजीवन कारावास की सजा काट रहा ब्रजेश : बालिका गृह कांड मामले में ब्रजेश ठाकुर समेत 19 आरोपियों को दिल्ली के साकेत कोर्ट ने दोषी ठहराया था. कोर्ट ने शेल्टर होम के संचालक ब्रजेश ठाकुर को गैंगरेप और पॉक्सो मामले में दोषी ठहराया था. बृजेश ठाकुर बालिका गृह कांड में आजीवन कारावास की सजा काट रहा है.
अखबार के दम पर बनाया रसूख: बताया जाता है कि वह अखबार के दम पर ऊंचाइयां चढ़ता गया. ब्रजेश ठाकुर प्रातः कमल नाम से अपना एक अखबार चलाया करता था. इसी के काम के सिलसिले में वह मंत्रियों और अधिकारियों से मिलता था और उनसे संंपर्क बनाता था. ब्रजेश का अखबार प्रातः कमल को सालाना 30 लाख से ज्यादा का सरकारी विज्ञापन मिलता था.
बंद होने के समय 60 हजार सर्कुलेशन: जिस साल ये अखबार बंद हुआ उस वक्त बिहार सरकार के मुताबिक इसका सर्कुलेशन 60 हजार से ऊपर दिखाया गया था. इसके अलावा एक अंग्रेजी अखबार न्यूज नेक्स्ट और समस्तीपुर से उर्दू में प्रकाशित अखबार हालात-ए-बिहार का संचालन भी ब्रजेश करता था. इन्हीं अखबारों के बदौलत अपना रसूख राजनीति में बढ़ाता चला गया.
एनजीओ से मोटी कमाई: ब्रजेश ठाकुर ने सन 1987 में सेवा संकल्प एवं विकास समिति नाम की एनजीओ की स्थापना की. सन 1982 में ब्रजेश के पिता राधा मोहन ठाकुर ने प्रातः कमल अखबार की शुरुआत की थी. उन्होंने अखबार को माध्यम बनाकर मोटी कमाई की और पैसा रियल स्टेट में लगाया. इसके बाद राधा मोहन ने अखबार और रियल स्टेट का सारा काम ब्रजेश को सौंप दिया. 1987 में ब्रजेश ने अपना ध्यान रियल स्टेट से हटाकर एनजीओ के कारोबार में लगाया.
बालिका गृह के रखरखाव के लिए लेता था 40 लाख: ब्रजेश ने 1987 में सेवा संकल्प एवं विकास समिति के नाम से एनजीओ की स्थापना की. 2013 में इसी एनजीओ को बालिका गृह के रखरखाव की जिम्मेदारी मिली. इसके लिए सरकार से उसे सालाना 40 लाख रुपए मिलते थे. उसे मुजफ्फरपुर में वृद्धाश्रम, अल्पावास, खुला आश्रय और स्वाधार गृह (बालिका गृह) के लिए भी टेंडर मिले थे. ब्रजेश को खुला आश्रय के लिए हर साल 16 लाख, वृद्धाश्रम के लिए 15 लाख और अल्पावास के लिए 19 लाख रुपए मिलते थे.
मंत्री को देना पड़ा था इस्तीफा: 26 मई 2018 को टाटा इंस्टिट्यूट ऑफ सोशल साइंस द्वारा बिहार सरकार को भेजी गई रिपोर्ट में मुजफ्फरपुर शेल्टर होम में दरिंदगी का खुलासा हुआ था. इस रिपोर्ट के सामने आने के बाद ब्रजेश ठाकुर पर शिकंजा कसने लगा. उससे जुड़े अफसर और नेताओं में हड़कंप मच गया.
मंजू वर्मा के पित से जुड़ा था नाम: तब तत्कालीन समाज कल्याण मंत्री मंजू वर्मा के पति के साथ भी ब्रजेश ठाकुर का नाम जुड़ा था. इसके बाद मंजू वर्मा को इस्तीफा देना पड़ा था. सरकार ने ब्रजेश ठाकुर के तीनों अखबार पर बैन लगा दिया. बालिका गृह को प्रशासन ने तोड़ दिया और ब्रजेश के नाम पर मौजूद चल और अचल संपत्ति को जब्त कर लिया गया.
राजनीति में भी सक्रिय था ब्रजेश: बताया जाता है कि अखबार के दम पर नेताओं से करीबी संबंध बनाने वाला ब्रजेश ठाकुर राजनीति में भी हाथ आजमा चुका था. भूमिहार जाति से आने वाला ब्रजेश दो बार 1995 और 2000 में कुढ़नी विधानसभा सीट से चुनाव लड़ चुका था लेकिन, दोनों बार उसकी हार हुई थी. उसने आनंद मोहन की पीपल्स पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़ा था.
बताया था फंसाने का कारण: बाद में आनंद मोहन ने अपनी पार्टी का विलय कांग्रेस में कर लिया और इसके बाद ब्रजेश कभी चुनाव नहीं लड़ सका. गिरफ्तारी के वक्त ब्रजेश ने कहा भी था कि वह कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ने की प्लानिंग कर रहा था और इसी वजह से कुछ राजनीतिक लोग उसे फंसाने की कोशिश कर रहे हैं.
कई सवाल है लेकिन जबाब नहीं: इस पूरे मामले में पहले दिन से लगातार रिपोर्टिंग कर रहे वरिष्ठ पत्रकार संतोष सिंह आज भी जांच एजेंसियों से संतुष्ट नहीं है. ईटीवी भारत ने जब उनसे बात की तो उन्होंने कहा कि इस पूरे मामले में छोटी मछलियां तो फंस गई लेकिन, बड़ी मछली अभी भी बाहर हैं.
"ब्रजेश ठाकुर महज एक मोहरा था, जिसे आजीवन कारावास तो जरूर मिल गया है लेकिन, कई ऐसे सवाल हैं जिसके जवाब अब तक सीबीआई ने भी नहीं खोजे हैं. जब इस खबर को हम लोग कवर कर रहे थे तो मूंछ वाले अंकल, तोंद वाले अंकल की चर्चा खूब हुई थी. आखिर सीबीआई ने अब तक उन लोगों को क्यों नहीं खोजा?"- संतोष सिंह, वरिष्ठ पत्रकार
बड़ी मछलियां आज भी बाहर: वरिष्ठ पत्रकार संतोष सिंह ने कहा कि ब्रजेश ठाकुर पर जब यह आरोप लगा तो पूरी जांच एजेंसियां ब्रजेश ठाकुर के इर्द गिर्द ही काम करती रही. अपने जांच के दायरे को नहीं बढ़ाया गया. ब्रजेश ठाकुर की पेशी होनी है और मुजफ्फरपुर में एससी-एसटी कोर्ट में जो फैसला आने वाला है वह सुधार गृह मामले में जो महिलाएं और बच्चे गायब थे उसको लेकर है.
सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली केस किया था ट्रांसफर: अभी भी सवाल अहम है कि आखिर जो लड़कियां सवाल उठाई थी उसका जवाब क्यों नहीं दिया गया? उन्होंने बताया कि दरअसल इस शेल्टर होम के आड़ में यह लोग गंदा काम करते थे और बड़ी मछलियां ना फंसे इसलिए ब्रजेश ठाकुर के इर्द-गिर्द ही जांच को रखा गया. यह तो सुप्रीम कोर्ट ने एक अहम फैसला लेते हुए इस पूरे केस को दिल्ली ट्रांसफर कर दिया नहीं तो, इस मामले में कई राज दबे के दबे रह जाते.
घटना के बाद सरकार का बड़ा कदम: बता दें कि मुजफ्फरपुर की घटना के बाद बिहार सरकार ने एनजीओ के संचालन में चल रहे ज़्यादातर बालिका गृह को अपने नियंत्रण में ले लिया है. राज्य में बच्चियों के लिए 11 ऐसे शेल्टर होम चल रहे हैं, जिनमें तक़रीबन 700 बच्चियां रह रही हैं. हालांकि इनकी संख्या कभी निश्चित नहीं होती है.
कब-कब क्या हुआ?: मुजफ्फरपुर शेल्टर होम केस में टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंस(टीआईएसएस) के रिपोर्ट के कारण प्रकाश में आया था. तब 26 मई 2018 में टीआईएसएस ने बिहार सरकार को एक रिपोर्ट सौंपी थी. मामले में कोर्ट ने 20 जनवरी को ब्रजेश ठाकुर को दोषी ठहराया. कोर्ट ने 20 में से 19 आरोपियों को दोषी पाया था. ब्रजेश ठाकुर पर नाबालिग बच्चियों और युवतियों के यौन शोषण के आरोप थे. इसे दिल्ली की साकेत कोर्ट ने सही पाया.
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