मुजफ्फरपुरः अपने कारनामों से सुर्खियों में रहनेवाली बिहार पुलिस का एक और कांड सामने आया है. जी हां, मुजफ्फरपुर में पुलिस ने एक मृत व्यक्ति के खिलाफ 27 लाख रुपये के गबन के साथ-साथ एससी-एसटी एक्ट के तहत केस दर्ज किया है. मामला जब कोर्ट में पहुंचा तो कोर्ट ने पुलिस से जवाब मांगा है.
काजी मोहम्मदपुर थाना इलाके का मामलाः जानकारी के मुताबिक मृत व्यक्ति को आरोपी बनाते हुए केस दर्ज करने के लिए विशेष एससी/एसटी कोर्ट के न्यायाधीश अजय कुमार मल्ल ने थानेदार राम विनय पासवान से जवाब तलब किया है. बताया जाता है कि काजी मोहम्मदपुर थाना क्षेत्र के गन्नीपुर रामदयालुनगर निवासी कुमारी मधु ने 6 अक्टूबर को एससी-एसटी थाने में आवेदन देकर एफआईआर कराई थी.
पैसे लेकर जमीन न देने का आरोपः केस के मुताबिक पूर्वी चंपारण के बाराचकिया निवासी पुण्यदेव प्रसाद से दामोदरपुर में हाउसिंग बोर्ड कॉलोनी के पास टू बीएचके मकान सहित जमीन बेचने की बात तय हुई थी. इस एवज में पुण्यदेव प्रसाद ने 27 लाख रुपये लिए लेकिन जमीन-मकान देने में टालमटोल करने लगे. इस बीच फरवरी महीने में पुण्यदेव प्रसाद का देहांत हो गया.इसके बाद उनकी पत्नी आभा देवी ने रुपए लौटाने का भरोसा दिलाया.
रुपये नहीं मिले तो दर्ज कराया केसः आरोप के मुताबिक आभा देवी भी पैसे देने में टालमटोल करने लगी. इतना ही नहीं पैसे मांगने जाति सूचक शब्दों का इस्तेमाल करते हुए झूठे मुकदमे में फंसाने की धमकी भी दी. जिसके बाद कुमारी मधु थाने पहुंची. मधु के आवेदन के आधार पर थानेदार ने एसएसी-एसटी और गबन की धारा में एफआईआर दर्ज की.
मृत पुण्यदेव प्रसाद को भी बनाया आरोपीः थानेदार ने एफआईआर के अभियुक्त कॉलम में स्वर्गीय पुण्यदेव प्रसाद और उनकी पत्नी आभा देवी को नामजद आरोपी बनाया है. 6 अक्टूबर को दर्ज एफआईआर विशेष एससी-एसटी कोर्ट में भेजी गई. इसे विशेष न्यायाधीश अजय कुमार मल्ल के अवलोकन के लिए लाया गया. जिसके बाद उन्होंने मृत व्यक्ति को आरोपी बनाने पर संज्ञान लिया और थानेदार से इस संबंध में स्थिति स्पष्ट करने के लिए कहा कि किस नियम के तहत मृत व्यक्ति को नामजद आरोपी बनाया गया है.
क्या कहते हैं कानून के जानकार ?: इस मामले को लेकर अधिवक्ता एसके झा का कहना है कि इतनी बड़ी गलती थाना स्तर से होती है तो सवाल बड़े अधिकारियों पर भी उठना स्वाभाविक है. क्या अनुसंधान पदाधिकारी एवं थानेदार के क्रियाकलाप को बड़े अधिकारी नहीं देखते हैं ?
"आखिर इतनी बड़ी जो चूक हुई है, वो पुलिस की कार्यशैली और कानून के लिहाज से ठीक नहीं है. इससे यह साफ जाहिर होता है कि बिना देखे सोचे समझे कांड दर्ज होता है. ऐसी गलती अगर कानून के रखवाले करेंगे तो सभी लोग परेशान होंगे."- एसके झा, अधिवक्ता
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