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रोचक है मां शाकंभरी का धाम की कहानी, दरबार में जहांगीर ने झुकाया था शीश - Shardiya Navratri 2024 - SHARDIYA NAVRATRI 2024

शारदीय नवरात्रि के मौके पर आपको सांभर झील के बीच विराजी मां शाकंभरी के दर्शन कराएंगे.

SHARDIYA NAVRATRI 2024
मां शाकंभरी की अलौकिक महिमा (ETV BHARAT JAIPUR)
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By ETV Bharat Rajasthan Team

Published : Oct 5, 2024, 6:32 AM IST

Updated : Oct 5, 2024, 7:14 AM IST

जयपुर : शक्ति की आराधना का पर्व शारदीय नवरात्रि पर आज हम आपको ले चलते हैं सांभर झील के बीचों-बीच स्थित मां शाकंभरी के धाम पर. जन-जन की आस्था का केंद्र शाकंभरी माता चौहान वंश की कुलदेवी हैं. इसके अलावा कई जातियों के अलग-अलग 116 गोत्र के लोग भी कुलदेवी के रूप में माता शाकंभरी की पूजा करते हैं. एक जमाने में मुगल शासक जहांगीर ने भी इस स्थान का चमत्कार माना था और यहां शीश झुकाया था. पहाड़ी पर बनी छतरी आज भी इसकी मिसाल है.

राजस्थान की राजधानी जयपुर से करीब 90 किलोमीटर दूर एशिया की सबसे बड़ी खारे पानी की झील 'सांभर झील' के बीचों-बीच पहाड़ी पर शाकंभरी माता का मंदिर बना है. यहां पहाड़ी पर मुगल शासक जहांगीर की बनवाई छतरी आज भी इस स्थान के चमत्कार और ऐतिहासिकता की गवाही देती है.

मां शाकंभरी का दरबार (ETV BHARAT JAIPUR)

इसे भी पढ़ें - मुस्लिम भक्त की अनूठी भक्ति, मनसा देवी के मंदिर में चार पीढ़ियों से बजा रहे नगाड़ा... यहां पूरी होती है हर मनोकामना - Shardiya Navratri 2024

लोहे के सात तवे चीरकर निकली दीपक की ज्योति : मान्यता है कि मुगल शासक जहांगीर ने जब इस स्थान और मां शाकंभरी के चमत्कार के बारे में सुना तो वह खुद यहां पहुंचा. उसने देवी के चमत्कार से साक्षात्कार करने के लिए यहां जल रही अखंड ज्योत (दीपक) पर लोहे के सात तवे रखवा दिए और कहा, अगर दीपक की लौ सात तवों को पार करेगी. तभी वह देवी के चमत्कार को मानेगा.

अगले ही पल उसकी आंखें फटी रह गई. जब लोहे के सात तवों को चीरकर दीपक की लौ जलने लगी. जहांगीर ने श्रद्धा से माता शाकंभरी के चरणों में अपना सिर झुकाया और पहाड़ी पर एक छतरी बनवाई. यह छतरी आज भी माता शाकंभरी के चमत्कार और जहांगीर की देवी के प्रति आस्था की निशानी के रूप में मौजूद है. इस घटना का जिक्र शाकंभरी माता के भजनों में किया जाता है.

चौहान राजा वासुदेव को माता ने दिया अनूठा वरदान : चौहान वंश के राजा वासुदेव चौहान शाकंभरी माता के अनन्य भक्त थे. राजा को मां शाकंभरी के वरदान से ही सांभर में खारे पानी की यह झील बनी. जहां नमक पैदा होता है. किवदंती है कि वासुदेव चौहान की भक्ति से प्रसन्न होकर देवी ने मनचाहा वरदान मांगने को कहा.

इसे भी पढ़ें - करणी माता मंदिर में भरा लक्खी मेला, दूर दराज से दर्शन के लिए आते हैं लोग, माता की स्थापना की है रोचक कथा - Shardiya Navratri 2024

उन्होंने इस जमीन को चांदी की खान में बदलने का वर मांगा तो देवी ने कहा कि वह जितनी दूरी तक बिना पीछे देखे अपना घोड़ा दौड़ा सकते हैं. उतनी दूरी में चांदी की खान हो जाएगी. राजा ने करीब 90 वर्गमील इलाके में घोड़ा दौड़ाया और यह पूरा इलाका चांदी की खान में बदल गया.

राजा ने देवी से लगाई वरदान वापस लेने की गुहार : बाद में राजा की माता ने इसे बड़ा खतरा बताते हुए कहा कि इस अकूत संपदा के लिए भयंकर मारकाट मचेगी. इस बात को समझते हुए राजा ने देवी शाकंभरी से अपना वरदान वापस लेने की प्रार्थना की तो देवी ने इस पूरे इलाके की चांदी की खान को कच्ची चांदी (नमक की धरती) में बदल दिया.

आज भी हजारों परिवार नमक उत्पादन और इसके विक्रय से जुड़े हैं. राजा वासुदेव के ही वंश में सम्राट पृथ्वीराज चौहान हुए. जिन्होंने पहले अजमेर और फिर दिल्ली पर राज किया. आज भी चौहान वंश के लोग देशभर से माता शाकंभरी के दर्शन के लिए आते हैं. वे माता की कुलदेवी के रूप में पूजा करते हैं.

देवी शाकंभरी को हरी सब्जी और फल हैं प्रिय : देवी के शाकंभरी स्वरूप का पौराणिक ग्रंथों में भी उल्लेख है. कहा जाता है कि अपने भक्तों को भयंकर दुर्भिक्ष (अकाल) से बचाने के लिए देवी ने अपने नेत्रों के आंसुओं से बारिश की. शाकंभरी माता को वनस्पति की देवी माना जाता है. इसलिए यहां आने वाले भक्त हरी सब्जियां और फल का प्रसाद खास तौर पर चढ़ाते हैं.

इसके अलावा नारियल, मखाने, मिश्री और अन्य मिष्ठान्न का भी देवी को भोग लगाया जाता है. हर साल जब नमक की पहली खेप तैयार होती है तो नमक उत्पादन करने वाले लोग नमक भी माता के चरणों में अर्पित करते हैं.

इसे भी पढ़ें - शारदीय नवरात्रि के लिए मेहरानगढ़ में व्यवस्थाएं चाक-चौबंद, सुबह 7 बजे से होंगे मां चामुंडा के दर्शन - Shardiya Navratri 2024

देश के कुल उत्पादन का सात फीसदी सांभर का : सांभर झील करीब 90 वर्गमील में फैली है. भौगोलिक रूप से सांभर झील तीन जिलों (जयपुर, अजमेर और नागौर) में फैली है. यहां की जमीन में लवण की मात्रा इतनी है कि बारिश का मीठा पानी यहां गिरकर कुछ ही दिनों में खारा हो जाता है. सांभर झील के आसपास बड़ी संख्या में नमक उत्पादन होता है.

खारे पानी को क्यारियों में डालकर नमक बनाया जाता है. इन तीनों जिलों के हजारों लोग नमक उत्पादन और व्यापार से जुड़े हैं. देश के कुल नमक उत्पादन में करीब सात फीसदी भागीदारी सांभर के नमक की होती है. खास बात यह है कि इसमें सबसे ज्यादा NaCl कंटेंट होता है, जो इस नमक को अपने आप में खास बनाता है.

जयपुर : शक्ति की आराधना का पर्व शारदीय नवरात्रि पर आज हम आपको ले चलते हैं सांभर झील के बीचों-बीच स्थित मां शाकंभरी के धाम पर. जन-जन की आस्था का केंद्र शाकंभरी माता चौहान वंश की कुलदेवी हैं. इसके अलावा कई जातियों के अलग-अलग 116 गोत्र के लोग भी कुलदेवी के रूप में माता शाकंभरी की पूजा करते हैं. एक जमाने में मुगल शासक जहांगीर ने भी इस स्थान का चमत्कार माना था और यहां शीश झुकाया था. पहाड़ी पर बनी छतरी आज भी इसकी मिसाल है.

राजस्थान की राजधानी जयपुर से करीब 90 किलोमीटर दूर एशिया की सबसे बड़ी खारे पानी की झील 'सांभर झील' के बीचों-बीच पहाड़ी पर शाकंभरी माता का मंदिर बना है. यहां पहाड़ी पर मुगल शासक जहांगीर की बनवाई छतरी आज भी इस स्थान के चमत्कार और ऐतिहासिकता की गवाही देती है.

मां शाकंभरी का दरबार (ETV BHARAT JAIPUR)

इसे भी पढ़ें - मुस्लिम भक्त की अनूठी भक्ति, मनसा देवी के मंदिर में चार पीढ़ियों से बजा रहे नगाड़ा... यहां पूरी होती है हर मनोकामना - Shardiya Navratri 2024

लोहे के सात तवे चीरकर निकली दीपक की ज्योति : मान्यता है कि मुगल शासक जहांगीर ने जब इस स्थान और मां शाकंभरी के चमत्कार के बारे में सुना तो वह खुद यहां पहुंचा. उसने देवी के चमत्कार से साक्षात्कार करने के लिए यहां जल रही अखंड ज्योत (दीपक) पर लोहे के सात तवे रखवा दिए और कहा, अगर दीपक की लौ सात तवों को पार करेगी. तभी वह देवी के चमत्कार को मानेगा.

अगले ही पल उसकी आंखें फटी रह गई. जब लोहे के सात तवों को चीरकर दीपक की लौ जलने लगी. जहांगीर ने श्रद्धा से माता शाकंभरी के चरणों में अपना सिर झुकाया और पहाड़ी पर एक छतरी बनवाई. यह छतरी आज भी माता शाकंभरी के चमत्कार और जहांगीर की देवी के प्रति आस्था की निशानी के रूप में मौजूद है. इस घटना का जिक्र शाकंभरी माता के भजनों में किया जाता है.

चौहान राजा वासुदेव को माता ने दिया अनूठा वरदान : चौहान वंश के राजा वासुदेव चौहान शाकंभरी माता के अनन्य भक्त थे. राजा को मां शाकंभरी के वरदान से ही सांभर में खारे पानी की यह झील बनी. जहां नमक पैदा होता है. किवदंती है कि वासुदेव चौहान की भक्ति से प्रसन्न होकर देवी ने मनचाहा वरदान मांगने को कहा.

इसे भी पढ़ें - करणी माता मंदिर में भरा लक्खी मेला, दूर दराज से दर्शन के लिए आते हैं लोग, माता की स्थापना की है रोचक कथा - Shardiya Navratri 2024

उन्होंने इस जमीन को चांदी की खान में बदलने का वर मांगा तो देवी ने कहा कि वह जितनी दूरी तक बिना पीछे देखे अपना घोड़ा दौड़ा सकते हैं. उतनी दूरी में चांदी की खान हो जाएगी. राजा ने करीब 90 वर्गमील इलाके में घोड़ा दौड़ाया और यह पूरा इलाका चांदी की खान में बदल गया.

राजा ने देवी से लगाई वरदान वापस लेने की गुहार : बाद में राजा की माता ने इसे बड़ा खतरा बताते हुए कहा कि इस अकूत संपदा के लिए भयंकर मारकाट मचेगी. इस बात को समझते हुए राजा ने देवी शाकंभरी से अपना वरदान वापस लेने की प्रार्थना की तो देवी ने इस पूरे इलाके की चांदी की खान को कच्ची चांदी (नमक की धरती) में बदल दिया.

आज भी हजारों परिवार नमक उत्पादन और इसके विक्रय से जुड़े हैं. राजा वासुदेव के ही वंश में सम्राट पृथ्वीराज चौहान हुए. जिन्होंने पहले अजमेर और फिर दिल्ली पर राज किया. आज भी चौहान वंश के लोग देशभर से माता शाकंभरी के दर्शन के लिए आते हैं. वे माता की कुलदेवी के रूप में पूजा करते हैं.

देवी शाकंभरी को हरी सब्जी और फल हैं प्रिय : देवी के शाकंभरी स्वरूप का पौराणिक ग्रंथों में भी उल्लेख है. कहा जाता है कि अपने भक्तों को भयंकर दुर्भिक्ष (अकाल) से बचाने के लिए देवी ने अपने नेत्रों के आंसुओं से बारिश की. शाकंभरी माता को वनस्पति की देवी माना जाता है. इसलिए यहां आने वाले भक्त हरी सब्जियां और फल का प्रसाद खास तौर पर चढ़ाते हैं.

इसके अलावा नारियल, मखाने, मिश्री और अन्य मिष्ठान्न का भी देवी को भोग लगाया जाता है. हर साल जब नमक की पहली खेप तैयार होती है तो नमक उत्पादन करने वाले लोग नमक भी माता के चरणों में अर्पित करते हैं.

इसे भी पढ़ें - शारदीय नवरात्रि के लिए मेहरानगढ़ में व्यवस्थाएं चाक-चौबंद, सुबह 7 बजे से होंगे मां चामुंडा के दर्शन - Shardiya Navratri 2024

देश के कुल उत्पादन का सात फीसदी सांभर का : सांभर झील करीब 90 वर्गमील में फैली है. भौगोलिक रूप से सांभर झील तीन जिलों (जयपुर, अजमेर और नागौर) में फैली है. यहां की जमीन में लवण की मात्रा इतनी है कि बारिश का मीठा पानी यहां गिरकर कुछ ही दिनों में खारा हो जाता है. सांभर झील के आसपास बड़ी संख्या में नमक उत्पादन होता है.

खारे पानी को क्यारियों में डालकर नमक बनाया जाता है. इन तीनों जिलों के हजारों लोग नमक उत्पादन और व्यापार से जुड़े हैं. देश के कुल नमक उत्पादन में करीब सात फीसदी भागीदारी सांभर के नमक की होती है. खास बात यह है कि इसमें सबसे ज्यादा NaCl कंटेंट होता है, जो इस नमक को अपने आप में खास बनाता है.

Last Updated : Oct 5, 2024, 7:14 AM IST
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