जबलपुर। ग्वालियर के बिरला नगर में सीवर चैंबर की सफाई के दौरान जहरीली गैस के रिसाव होने से दो श्रमिकों की मौत के मामले को हाई कोर्ट ने संज्ञान में लेते हुए मामले की सुनवाई जनहित याचिका के रूप में करने के निर्देश दिए. संज्ञान याचिका में कहा गया था कि यह एक दिल दहलाने वाली घटना है. सीवर चैंबर साफ करने गये दो मजदूर जहरीली गैस के रिसाव की चपेट में आ गए. बचाव के प्रयास के बावजूद भी मदद पहुंचने से पहले उनकी मौत हो गयी. इसी तरह की घटनाएं मध्य प्रदेश में कई जगहों पर हुई हैं.
मैनुअल स्कैवेंजर्स के रूप में रोजगार का निषेध एक्ट
गरीब श्रमिकों को गटर या सीवर लाइन में प्रवेश करने के लिए भेजते समय उचित उपकरण उपलब्ध नहीं कराए जाते हैं. इस बात पर जोर देने की जरूरत नहीं है कि ऐसे कार्यकर्ता समाज के निचले तबके से आते हैं. याचिका की सुनवाई के दौरान कोर्ट मित्र अधिवक्ता आकाश चौधरी की तरफ से युगलपीठ को बताया गया था कि मैनुअल स्कैवेंजर्स के रूप में रोजगार का निषेध और उनके पुनर्वास अधिनियम 2013 के तहत सरकार को विभिन्न कमेटी का गठन करना था. एक्ट के परिपालन के लिए कमेटी की समय-समय पर बैठक का आयोजित होनी थी.
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हाईकोर्ट ने सरकार से मांगा था हलफनामा
युगलपीठ ने पाया कि कुछ ही कमेटी का गठन किया गया है. युगलपीठ ने याचिका में राज्य मानव अधिकार आयोग को अनावेदक बनाते हुए ऐसे कितने मामलों में उनकी तरफ से संज्ञान लिया गया है. इस संबंध में हलफनामा पेश करने निर्देश जारी किये थे. याचिका पर हुई सुनवाई के दौरान हाईकोर्ट के आदेश पर आयोग के रजिस्ट्रार व्यक्तिगत रूप से उपस्थित हुआ था. उन्होंने युगलपीठ को बताया था कि विगत 6 माह से आयोग का अध्यक्ष पद रिक्त है. युगलपीठ ने आयोग के अध्यक्ष पद रिक्त होने के संबंध में सरकार से हलफनामा मांगा था.