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भोपाल की महिला डॉक्टर ने नहीं मानी हार, हाईकोर्ट में 18 साल कानूनी लड़ाई लड़ी, आखिरकार मिली जीत - MP high court

मध्यप्रदेश हाईकोर्ट में 18 साल की कानूनी लड़ाई के बाद महिला चिकित्सा अधिकारी के पक्ष में फैसला आया है. हाईकोर्ट जस्टिस विवेक अग्रवाल ने महिला चिकित्सा अधिकारी को पुरानी पेंशन नियम के तहत पेंशन राशि तथा अन्य देयकों का लाभ 8 प्रतिशत वार्षिक ब्याज के साथ करने के निर्देश भी दिये हैं.

MP high court
महिला डॉक्टर को मिली हाईकोर्ट में जीत (ETV BHARAT)
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By ETV Bharat Madhya Pradesh Team

Published : Jul 26, 2024, 4:24 PM IST

जबलपुर। भोपाल की रचना नगर निवासी डॉ.गीतांजलि की तरफ से मध्यप्रदेश हाईकोर्ट में याचिका साल 2006 में दायर की गई थी. इसमें कहा गया था कि वह राज्य बीमा सेवा में चिकित्सा अधिकारी के रूप में पदस्थ रही हैं. उन्होंने सेवा के 15 साल पूर्ण होने के बाद स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति के लिए 10 मार्च 2006 को आवेदन करने हुए अपना त्यागपत्र दिया था. इसका कोई जवाब नहीं आने पर उन्होंने 1 मई 2006 को पुनः इस संबंध में विभाग को सूचित किया था.

महिला डॉक्टर ने याचिका में ये तर्क रखे

याचिकाकर्ता की तरफ से कहा गया कि उनकी नियुक्ति अगस्त 1989 में हुई थी. पेंशन नियम 42 के तहत 15 साल की सेवा अनिवार्य है. निर्धारित अवधि पूर्ण करने के बावजूद उन्हें पेंशन का लाभ प्रदान नहीं किया जा रहा है. राज्य सरकार की तरफ से पक्ष रखा गया कि प्रदेश सरकार द्वारा सिविल सेवा संशोधित पेंशन नियम का गजट नोटिफिकेशन 7 अप्रैल 2006 को प्रकाशित किया गया था. जिसके अनुसार पेंशन के लिए 20 साल की सेवा अनिवार्य है.

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सरकार की दलील को कोर्ट ने गलत माना

सरकार की तरफ से बताया गया कि याचिकाककर्ता का आवेदन जब स्वीकार किया गया, उस समय नया संशोधित नियम प्रभावी था. इसलिए वह पेंशन की हकदार नहीं है. इस मामले में एकलपीठ ने सर्वोच्च न्यायालय के आदेश का हवाला देते हुए अपने आदेश में कहा कि राज्य सरकार की कार्रवाई मनमानी पूर्ण नहीं बल्कि निष्पक्ष होनी चाहिए. याचिकाकर्ता ने जिस दिन आवेदन व त्याग-पत्र दिया, उस दिन पूर्वव्यापी कानून प्रभावशील था. एकलपीठ ने याचिका का निराकरण करते हुए महिला डॉक्टर को बड़ी राहत दी.

जबलपुर। भोपाल की रचना नगर निवासी डॉ.गीतांजलि की तरफ से मध्यप्रदेश हाईकोर्ट में याचिका साल 2006 में दायर की गई थी. इसमें कहा गया था कि वह राज्य बीमा सेवा में चिकित्सा अधिकारी के रूप में पदस्थ रही हैं. उन्होंने सेवा के 15 साल पूर्ण होने के बाद स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति के लिए 10 मार्च 2006 को आवेदन करने हुए अपना त्यागपत्र दिया था. इसका कोई जवाब नहीं आने पर उन्होंने 1 मई 2006 को पुनः इस संबंध में विभाग को सूचित किया था.

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याचिकाकर्ता की तरफ से कहा गया कि उनकी नियुक्ति अगस्त 1989 में हुई थी. पेंशन नियम 42 के तहत 15 साल की सेवा अनिवार्य है. निर्धारित अवधि पूर्ण करने के बावजूद उन्हें पेंशन का लाभ प्रदान नहीं किया जा रहा है. राज्य सरकार की तरफ से पक्ष रखा गया कि प्रदेश सरकार द्वारा सिविल सेवा संशोधित पेंशन नियम का गजट नोटिफिकेशन 7 अप्रैल 2006 को प्रकाशित किया गया था. जिसके अनुसार पेंशन के लिए 20 साल की सेवा अनिवार्य है.

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