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गंभीर अपराध में आपसी समझौते के आधार पर आरोप-पत्र नहीं होगा निरस्त : हाईकोर्ट - MP High Court

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By ETV Bharat Madhya Pradesh Team

Published : Sep 10, 2024, 2:21 PM IST

मध्यप्रदेश हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया है कि बड़े अपराध करने के बाद दोनों पक्षों में अगर समझौता हो जाता है, तब भी चार्जशीट खारिज नहीं हो सकती.

MP High Court
गंभीर अपराध में आपसी समझौते से आरोप पत्र निरस्त नहीं (ETV BHARAT)

जबलपुर। हाईकोर्ट जस्टिस विशाल धगट की एकलपीठ ने अपने आदेश में कहा है "जघन्य अपराध में आपसी समझौते के आधार पर आरोप-पत्र को निरस्त नहीं किया जा सकता." याचिकाकर्ता के खिलाफ दर्ज अपराध में 10 साल से लेकर आजीवन कारावास की सजा प्रावधान है. एकलपीठ ने इस आदेश के साथ याचिका को खारिज कर दिया.

गंभीर अपराध में आरोप पत्र निरस्त करने के लिए याचिका

भोपाल निवासी जसप्रीत सिंह चीमा की तरफ से दायर की गयी याचिका में आपराधिक प्रकरण में दायर आरोप-पत्र को निरस्त किये जाने की राहत चाही गयी थी. याचिका में कहा गया था कि उसका मामूली बात पर अनावेदक सौरभ चौकसे से विवाद हो गया था. उसकी शिकायत पर पिपलानी थाने में धारा 326 के तहत आपराधिक प्रकरण दर्ज किया गया था. दोनों के बीच आपसी समझौता हो गया है. आपसी समझौता होने के कारण प्रकरण में दायर आरोप-पत्र को निरस्त किया जाए.

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सरकारी वकील ने याचिका पर की आपत्ति

इस मामले में सरकार की तरफ से आपत्ति पेश करते हुए बताया गया कि दर्ज अपराध में 10 साल से लेकर आजीवन कारावास का प्रावधान है. एकलपीठ ने याचिका को निरस्त करते हुए अपने आदेश में कहा है कि जघन्य संज्ञेय अपराध गैर जमानती होते है. संज्ञेय व गैर जमानतीय अपराध में आपसी समझौते के तहत दायर आरोप-पत्र को निरस्त नहीं किया जा सकता है.

जबलपुर। हाईकोर्ट जस्टिस विशाल धगट की एकलपीठ ने अपने आदेश में कहा है "जघन्य अपराध में आपसी समझौते के आधार पर आरोप-पत्र को निरस्त नहीं किया जा सकता." याचिकाकर्ता के खिलाफ दर्ज अपराध में 10 साल से लेकर आजीवन कारावास की सजा प्रावधान है. एकलपीठ ने इस आदेश के साथ याचिका को खारिज कर दिया.

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भोपाल निवासी जसप्रीत सिंह चीमा की तरफ से दायर की गयी याचिका में आपराधिक प्रकरण में दायर आरोप-पत्र को निरस्त किये जाने की राहत चाही गयी थी. याचिका में कहा गया था कि उसका मामूली बात पर अनावेदक सौरभ चौकसे से विवाद हो गया था. उसकी शिकायत पर पिपलानी थाने में धारा 326 के तहत आपराधिक प्रकरण दर्ज किया गया था. दोनों के बीच आपसी समझौता हो गया है. आपसी समझौता होने के कारण प्रकरण में दायर आरोप-पत्र को निरस्त किया जाए.

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इस मामले में सरकार की तरफ से आपत्ति पेश करते हुए बताया गया कि दर्ज अपराध में 10 साल से लेकर आजीवन कारावास का प्रावधान है. एकलपीठ ने याचिका को निरस्त करते हुए अपने आदेश में कहा है कि जघन्य संज्ञेय अपराध गैर जमानती होते है. संज्ञेय व गैर जमानतीय अपराध में आपसी समझौते के तहत दायर आरोप-पत्र को निरस्त नहीं किया जा सकता है.

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