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मदर्स डे स्पेशल: भिलाई की सिंगल मदर सरोजिनी की कहानी, पति के मौत के बाद अकेले संभाल रही बिजनेस - Mothers Day Special

भिलाई की सिंगल मदर सरोजिनी पाणिग्रही ने अपने पति की मौत के बाद अकेले अपना बिजनेस संभाला. दो बच्चों का पालन पोषण कर रही हैं. साथ ही उसने अपने दम पर दूसरी कंपनी भी खड़ी कर दी है.

Mothers Day Special
मदर्स डे स्पेशल (ETV BHARAT CHHATTISGARH)
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By ETV Bharat Chhattisgarh Team

Published : May 12, 2024, 9:03 PM IST

भिलाई की सिंगल मदर सरोजिनी की कहानी (ETV BHARAT CHHATTISGARH)

दुर्ग भिलाई: "हर दिन गिरकर भी मुक्कमल खड़े हैं, ए जिंदगी! देख मेरे हौसले तुझसे भी बड़े हैं." इस लाइन को भिलाई की रहने वाली सरोजिनी पाणिग्रही ने सही साबित कर दिया है. सरोजिनी का अब तक का सफर काफी मुश्किलों भरा रहा है. उनकी शादी के कुछ साल बाद ही पति की सड़क दुर्घटना में मौत हो गई. पति की मौत का सदमा और बच्चों की जिम्मेदारी सरोजिनी को अकेले उठानी थी.

अपने दम पर खड़ी की दूसरी कंपनी: अचानक पड़ी बोझ से विचलित हुए बिना सरोजिनी ने जिम्मेदारी संभाली और चुनौतियों का डटकर मुकाबला किया. सरोजिनी की मेहनत के आगे तामम परेशानियों ने सरेंडर कर दिया और सरोजिनी ने सफलता की नई इमारत खड़ी कर दी. महज चार साल में सरोजिनी ने मेहनत और काबिलयत के दम पर कंपनी का दूसरा ब्रांच शुरू कर लिया. वर्तमान में दोनों कंपनी में करीब 45 कर्मचारी काम कर रहे हैं.

पति के जाने के बाद किया बच्चों का भरण-पोषण: सरोजिनी के दो बच्चे हैं. उन्होंने सिंगल मदर होते हुए भी अपने बच्चों की परवरिश में कोई कमी नहीं छोड़ी. ईटीवी भारत ने मदर्स डे के मौके पर कहा कि, "365 दिन माताओं का होता है. कहा जाता है कि भगवान हर जगह न आ सकते, इसीलिए उन्होंने मां को बनाया. मेरे भी पति के जाने के बाद सिंगल मदर के रूप में मैने काम किया. मेरे दो बच्चों के पालन-पोषण और उनके भविष्य की जिम्मेदारी मुझ पर छोड़ गए थे. उनके भविष्य के लिए मैंने सोचा कि दोनों बच्चों को पढ़ाऊंगी. उनको एक अच्छे मुकाम पर पहुंचाऊंगी. मैं सिंगल रहते हुए भी बहुत कष्ट से दोनों बच्चों का पालन पोषण कर रही हूं."

5 साल की उम्र में पापा खत्म हो गए थे. उसके बाद हम दोनों भाई को मां ने संभाला है. कठिन परिस्थितियों में भी पापा की कमी होने नहीं दी.- शुभम पाणिग्रही, सरोजिनी का बेटा

साल 2007 में हो गई थी पति की मौत: सरोजिनी की मानें तो 5 दिसंबर 2007 को परिवार के साथ वो जगन्नाथपुरी से दर्शन कर लौट रही थी. इसी बीच एक सड़क हादसा हो गया. हादसे में सरोजिनी के पति की मौके पर ही मौत हो गई. सरोजिनी के साथ उनके दोनों बच्चे भी गाड़ी पर सवार थे. गनीमत रहा वे लोग बच गए. इसके बाद बच्चों की देखरेख और पति की कंपनी सरोज इंडस्ट्रीज की कमान मेरे कंधे पर आ गई. शुरुआत में जैसे-तैसे मैंने काम संभाला. हालांकि धीरे-धीरे मैंने खुद को मजबूत बनाया. हादसे के बाद कुछ भी समझ नहीं आ रहा था. बच्चों की देखरेख के साथ ही पति की कंपनी की जिम्मेदारी भी संभालनी थी, क्योंकि इससे पहले कंपनी और व्यापार से दूर-दूर तक मेरा कोई वास्ता नहीं था.

हादसे में जो मेरे साथ हुआ वो किसी के भी साथ होता तो वो टूट जाती, लेकिन महिलाओं को टूटना नहीं चाहिए. संकट और विपत्तियां आती रहती है. उनसे मुकाबला करने वाले ही समाज को नई दिशा देते हैं. महिलाओं को हर परिस्थितियों का सामना करने के लिए तैयार रहना चाहिए, क्योंकि परिस्थिति कभी किसी को बताकर नहीं आती. कब क्या हो जाए, भरोसा नहीं. यदि गलती से भी हिम्मत हार गए और डिप्रेशन में चले गए तो सरवाइव करना मुश्किल हो जाता है.-सरोजिनी पाणिग्रही

दूसरी महिलाओं के लिए बनी मिसाल: हालांकि सरोजिनी ने हार नहीं मानी, खुद को मजबूत बनाया और पति के सपने को साकार करने में लग गई. इस बीच कई चुनौतियां भी आई, लेकिन कहते हैं न कि संघर्ष कभी बेकार नहीं जाता. बच्चों को देखकर सरोजनी को हिम्मत मिलती गई और हिम्मत ने सफलता के उस मुकाम तक पहुंचा दिया, जहां जाना कोई आम बात नहीं है.

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अपने दम पर खड़ी की दूसरी कंपनी: अचानक पड़ी बोझ से विचलित हुए बिना सरोजिनी ने जिम्मेदारी संभाली और चुनौतियों का डटकर मुकाबला किया. सरोजिनी की मेहनत के आगे तामम परेशानियों ने सरेंडर कर दिया और सरोजिनी ने सफलता की नई इमारत खड़ी कर दी. महज चार साल में सरोजिनी ने मेहनत और काबिलयत के दम पर कंपनी का दूसरा ब्रांच शुरू कर लिया. वर्तमान में दोनों कंपनी में करीब 45 कर्मचारी काम कर रहे हैं.

पति के जाने के बाद किया बच्चों का भरण-पोषण: सरोजिनी के दो बच्चे हैं. उन्होंने सिंगल मदर होते हुए भी अपने बच्चों की परवरिश में कोई कमी नहीं छोड़ी. ईटीवी भारत ने मदर्स डे के मौके पर कहा कि, "365 दिन माताओं का होता है. कहा जाता है कि भगवान हर जगह न आ सकते, इसीलिए उन्होंने मां को बनाया. मेरे भी पति के जाने के बाद सिंगल मदर के रूप में मैने काम किया. मेरे दो बच्चों के पालन-पोषण और उनके भविष्य की जिम्मेदारी मुझ पर छोड़ गए थे. उनके भविष्य के लिए मैंने सोचा कि दोनों बच्चों को पढ़ाऊंगी. उनको एक अच्छे मुकाम पर पहुंचाऊंगी. मैं सिंगल रहते हुए भी बहुत कष्ट से दोनों बच्चों का पालन पोषण कर रही हूं."

5 साल की उम्र में पापा खत्म हो गए थे. उसके बाद हम दोनों भाई को मां ने संभाला है. कठिन परिस्थितियों में भी पापा की कमी होने नहीं दी.- शुभम पाणिग्रही, सरोजिनी का बेटा

साल 2007 में हो गई थी पति की मौत: सरोजिनी की मानें तो 5 दिसंबर 2007 को परिवार के साथ वो जगन्नाथपुरी से दर्शन कर लौट रही थी. इसी बीच एक सड़क हादसा हो गया. हादसे में सरोजिनी के पति की मौके पर ही मौत हो गई. सरोजिनी के साथ उनके दोनों बच्चे भी गाड़ी पर सवार थे. गनीमत रहा वे लोग बच गए. इसके बाद बच्चों की देखरेख और पति की कंपनी सरोज इंडस्ट्रीज की कमान मेरे कंधे पर आ गई. शुरुआत में जैसे-तैसे मैंने काम संभाला. हालांकि धीरे-धीरे मैंने खुद को मजबूत बनाया. हादसे के बाद कुछ भी समझ नहीं आ रहा था. बच्चों की देखरेख के साथ ही पति की कंपनी की जिम्मेदारी भी संभालनी थी, क्योंकि इससे पहले कंपनी और व्यापार से दूर-दूर तक मेरा कोई वास्ता नहीं था.

हादसे में जो मेरे साथ हुआ वो किसी के भी साथ होता तो वो टूट जाती, लेकिन महिलाओं को टूटना नहीं चाहिए. संकट और विपत्तियां आती रहती है. उनसे मुकाबला करने वाले ही समाज को नई दिशा देते हैं. महिलाओं को हर परिस्थितियों का सामना करने के लिए तैयार रहना चाहिए, क्योंकि परिस्थिति कभी किसी को बताकर नहीं आती. कब क्या हो जाए, भरोसा नहीं. यदि गलती से भी हिम्मत हार गए और डिप्रेशन में चले गए तो सरवाइव करना मुश्किल हो जाता है.-सरोजिनी पाणिग्रही

दूसरी महिलाओं के लिए बनी मिसाल: हालांकि सरोजिनी ने हार नहीं मानी, खुद को मजबूत बनाया और पति के सपने को साकार करने में लग गई. इस बीच कई चुनौतियां भी आई, लेकिन कहते हैं न कि संघर्ष कभी बेकार नहीं जाता. बच्चों को देखकर सरोजनी को हिम्मत मिलती गई और हिम्मत ने सफलता के उस मुकाम तक पहुंचा दिया, जहां जाना कोई आम बात नहीं है.

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