कुल्लू: कहते हैं कि मां कभी अपने बच्चों में भेदभाव नहीं करती हैं. एक मां की ममता अपने बच्चों के लिए एक समान होती है. एक मां के लिए ममता का ये भाव सिर्फ खुद के बच्चों के लिए ही नहीं, बल्कि सभी बच्चों के लिए होता है. मां के प्यार के आगे दुनिया की हर खुशी छोटी पड़ जाती है. इसी को कुल्लू जिले की सुदर्शना ठाकुर ने सच साबित कर दिया है. जहां एक ओर हिमाचल प्रदेश की सुक्खू सरकार ने बेसहारा बच्चों के संरक्षण के लिए सुख आश्रय योजना का गठन किया है. वहीं, जिला कुल्लू की पर्यटन नगरी मनाली में भी एक ऐसी मां है, जो कि न सिर्फ बेसहारा बच्चों का पालन पोषण कर रही है, बल्कि उन्हें आत्मनिर्भर बनने की ट्रेनिंग भी दे रही हैं.
बेसहारा बच्चों का मां का प्यार
पर्यटन नगरी मनाली के साथ लगते खखनाल में राधा एनजीओ की संचालिका सुदर्शना ठाकुर बीते कई सालों से बेसहारा बच्चों का सहारा बन रही हैं और उनका पालन पोषण करके उन्हें समाज की मुख्य धारा में लाने का काम कर रही हैं. सुदर्शना ठाकुर कुल्लू जिले का एक जाना पहचाना नाम है. बेसहारा बच्चों के लिए सुदर्शना ठाकुर उनकी मां हैं, जिनसे उन्हें सहारा और ममता दोनों मिली है.
1977 से बेसहारा बच्चों को दे रही मां का आंचल
बता दें कि सुदर्शना ठाकुर 1997 से बेसहारा बच्चों को मां का आंचल दे रही हैं. मौजूदा समय में उनके पास 15 बच्चे हैं और सभी की उम्र 18 साल से ज्यादा है. इनमें से कई बच्चे लंबे समय से उनके साथ रहते हैं. वहीं, कुछ बच्चों को प्रशासन ने बाल आश्रम भी भेज दिया था, लेकिन वो लौटकर वापस सुदर्शना के पास आ गए, क्योंकि सुर्दशना में उन्हें अपनी मां नजर आती है. मां के प्यार का लालच उन्हें सुर्दशना से दूर जाने ही नहीं देता है.
परिवार बनने के बाद भी मिलने आते हैं बच्चे
वहीं, सुदर्शना ठाकुर की ये मेहनत रंग भी ला रही है. उनके ये बच्चे आज कई सरकारी नौकरियों से लेकर निजी नौकरियों में लगे हुए हैं. उनकी शादी हो गई है और उनके अपने परिवार भी हैं. सुदर्शना बताती हैं कि जिन बच्चों को उन्होंने कभी मां का प्यार दिया था, आज भी वो बच्चे उनसे मिलने आते हैं और अन्य बच्चों के लिए मदद का हाथ भी बढ़ाते हैं.
राधा एनजीओ उठाता है पढ़ाई का खर्च
इन बेसहारा बच्चों की पढ़ाई का खर्च राधा एनजीओ की ओर से उठाया जाता है. एनजीओ की ओर से सिलाई-कढ़ाई से लेकर फूलदान या सजावट का सामान तैयार करने या आचार आदि बनाने का काम किया जाता है. सुदर्शना इन बच्चों को भी इन कामों की ट्रेनिंग देती हैं, ताकि भविष्य में बच्चे अगर चाहें तो स्वरोजगार का भी रुख अपना सकते हैं. सुदर्शना बताती हैं कि जो बच्चे उनके साथ रहते है, वे भी संस्था के काम में उनकी मदद करते हैं. इसके अलावा एनजीओ की ओर उनके बनाए उत्पादों के स्टॉल लगते हैं. वहां भी बच्चे सामान बेचने में मदद करते हैं.
ऐसे बनी सुदर्शना बेसहारा बच्चों की मां
सुदर्शना बताती हैं कि साल 1997 में उन्होंने सड़कों पर घूम रहे जरूरतमंद बच्चों को देखा था. तब वे बच्चे काफी छोटे थे. इनमें से किसी बच्चे की मां नहीं थी, किसी के पिता नहीं थे तो कई बच्चे पूरी तरह से अनाथ थे. जिसके बाद सुदर्शना ने इन बच्चों को अपने परिवार में शामिल किया और इनका पालन पोषण करने लगी. हालांकि इन बच्चों को पालने में सुदर्शना को काफी सारी मुश्किलें भी आई, लेकिन उन्होंने हिम्मत नहीं हारी. आज राधा एनजीओ द्वारा दी गई शिक्षा से कई बच्चे अच्छे मुकामों पर पहुंच गए हैं. आज भी सुदर्शना का ये अभियान लगातार जारी है.
जब खाने को नहीं थी फूटी कौड़ी...
सुदर्शना बताती हैं कि उनके जीवन में एक समय ऐसा भी आया था कि बच्चों को खिलाने के लिए उनके पास एक फूटी कौड़ी भी नहीं बच्ची थी. तब वो रातभर जुराबें बुनकर सुबह सड़कों पर बेचती थीं. उससे मिले पैसों से रोज खाना बनता था. बच्चों की दो वक्त की रोटी के लिए उन्होंने अपने गहने भी बेच दिए. सुदर्शना ठाकुर जैसे-तैसे बच्चों का पेट भरती थीं, लेकिन तमाम मुश्किलों के बावजूद उन्होंने कभी हार नहीं मानी. सुदर्शना ठाकुर आचार, जुराबें समेत अन्य सामान बनाकर बेचती हैं. बच्चों को भी वो इन सब उत्पादों को बनाने की ट्रेनिंग देती हैं, ताकि वह भी अपने लिए रोजगार की राह को सुदृढ़ कर सकें.
बाल आश्रम के लिए नहीं मिली मंजूरी
सुदर्शना ठाकुर बताती हैं कि उन्होंने बेसहारा बच्चों के संरक्षण के लिए सरकार के पास एक बाल आश्रम चलाने के लिए आवेदन भी दिया है, लेकिन अभी तक उसे मंजूरी नहीं मिल पाई है. बावजूद इसके वह अपने स्तर पर ही संसाधनों को पूरा करके इन बेसहारा बच्चों का भविष्य बनाने में प्रयासरत हैं. उन्होंने बताया कि 2004 से उनका राधा एनजीओ रजिस्टर्ड है. एनजीओ अपने सामाजिक कार्यों के लिए रजिस्टर्ड है. जिसमें सिलाई-कढ़ाई, अचार बनाना समेत कई अन्य सामाजिक कार्य हैं, जिसमें स्थानीय महिलाओं को ट्रेनिंग दी जाती है. सुदर्शना ठाकुर ने बताया कि संस्था चलाने के लिए उन्हें कई समाजसेवियों का भी सहयोग मिलता है और सभी लोगों के सहयोग से वह बेसहारा बच्चों को अच्छी शिक्षा देने में कामयाब हो रही हैं.
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