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12 माताओं का एक बेटा, सुनिए उनकी दर्द भरी कहानी उन्हीं की जुबानी - Mothers Day 2024

Mothers Day 2024. धनबाद के एक वृद्धा आश्रम में 12 माताएं एक व्यक्ति को अपना बेटा मानती हैं. व्यक्ति भी सभी को अपनी मां ही मानते हैं. सभी माताओं से ईटीवी भारत संवाददाता से बात की. इस दौरान उन्होंने अपने बेटे और बहुओं द्वारा प्रताड़ना की कहानी बताई.

Mothers Day 2024
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By ETV Bharat Jharkhand Team

Published : May 12, 2024, 10:29 AM IST

जानकारी देते संवाददाता नरेंद्र निषाद (ईटीवी भारत)

धनबाद: मां की करुणा की तुलना पूरे ब्रह्मांड में किसी से नहीं की जा सकती. मां के प्यार, त्याग और बलिदान के लिए आज पूरी दुनिया में मदर्स डे मनाया जाता है. ईटीवी भारत ने ऐसी ही कुछ माताओं के दुख-दर्द को जानने और महसूस करने की कोशिश की है. जिन्हें उनके बच्चों ने ठुकरा दिया है.

अपने बच्चों की प्रताड़ना से तंग आकर वे अब वृद्धाश्रम में शांतिपूर्ण जीवन जी रही हैं. अब ये मांएं अपने घर नहीं जाना चाहतीं. उनका कहना है कि अब मेरा अंतिम संस्कार भी यहीं से होगा. वे सभी वृद्धा आश्रम के संचालक को अपना बेटा मानती हैं. संचालक भी उन्हें अपनी मां मानते हैं और उनकी सेवा करते हैं.

शहर के सरायढेला स्थित वृद्धाश्रम में इन दिनों करीब 12 माताएं रह रही हैं. सबकी नजरें अपनों के जुल्म की कहानी खुद बयां करती हैं. उन्हें देखने से ही उनके चेहरे और आंखों पर दर्द का अहसास होता है.

ईटीवी भारत से बात करते हुए यहां रहने वाली झरिया की विमला देवी ने बताया कि उनके तीन बेटे, बहुएं और चार पोते हैं. पिछले चार साल से वह वृद्धा आश्रम में रह रही हैं. पति की मौत के बाद तीनों बेटे अलग-अलग जगह रहते हैं.

उन्होंने बताया कि उनके तीनों बेटों में एक आसनसोल, एक लाल बंगला और एक गिरिडीह में रहते हैं. वह कहती हैं कि उनकी देखभाल करने वाला कोई नहीं है. अब वह यहीं रहेंगी और यहीं से उनकी अर्थी उठेगी. चार साल में किसी ने उनकी सुध लेने की जहमत तक नहीं उठाई. उनकी सारी धन-सम्पत्ति बेटों ने ले लिया है. उन्होंने कहा कि वृद्धाश्रम के नौशाद मुझे बेटे से भी ज्यादा प्यार करते हैं. अब मैं कहीं नहीं जा रही.

बलियापुर की रहने वाली एक महिला ने बताया कि वह सिर पर टोकरी रखकर सब्जी बेचकर अपने बच्चों का पालन-पोषण करती हैं. बड़े होने पर बच्चों ने उन्हें पीटना शुरू कर दिया. वह अपनी जान देने वाली थीं. लेकिन पुलिस ने उन्हें बहुत समझाया. उन्होंने कहा कि जान देना पाप है. इसके बाद वे उन्हें यहां ले आये. उनका कहना है कि वह घर नहीं जायेंगी, यहीं उनकी अब मौत होगी. हर कोई मेरे लिए मर चुका है.

भालगढ़ निवासी कमली देवी ने बताया कि उनकी बहू-बेटे उनके साथ मारपीट करते थे. उन्होंने उन्हें कभी शांति से नहीं रहने दिया. इसलिए वे वृद्ध आश्रम में रह रही हैंं. पिछले आठ साल से वे वृद्धाश्रम में रह रही हैं. उन्होंने कहा कि मुझे मेरे बेटे के बदले बेटा मिल गया है.

वृद्धाश्रम के संचालक नौशाद गद्दी ने कहा कि जो बच्चे अपने माता-पिता के साथ अच्छा व्यवहार नहीं करते हैं, उन्हें भी बुढ़ापे में यही हश्र झेलना पड़ता है. आज युवा पीढ़ी पढ़-लिखकर अच्छी-अच्छी जगहों पर नौकरी कर रही है. उनके पास पैसा भी है. लेकिन फिर भी वे अपने माता-पिता पर ध्यान नहीं दे पाते हैं. उन्होंने युवा पीढ़ी से अपने माता-पिता को भगवान की तरह मानने और उनकी सेवा करने की अपील की.

वहीं वृद्धाश्रम के सदस्य मधुरेंद्र कुमार सिंह ने कहा कि आज की युवा पीढ़ी फिल्मी अंदाज में जी रही है. यदि बच्चे अपने माता-पिता की देखभाल करें तो वृद्धाश्रम की जरूरत ही नहीं पड़ेगी.

यह भी पढ़ें: 16 महीने की बेटी की परवरिश के साथ-साथ पूरे जिले की बागडोर संभाल रही है ये अफसर मां, मदर्स डे पर जानिए कोडरमा डीसी की खास कहानी - Mothers Day

यह भी पढ़ें: धरती पर श्रेष्ठतम कृति है मां, जानिए मदर्स डे के अवसर पर इसका महत्व और इतिहास - Mothers Day 2024

यह भी पढ़ें: मदर्स डे पर मां को दें ये 5 बेहद खास और अनोखें गिफ्ट, देखते ही खिल जाएगा चेहरा - MOTHERS DAY GIFT 2024

जानकारी देते संवाददाता नरेंद्र निषाद (ईटीवी भारत)

धनबाद: मां की करुणा की तुलना पूरे ब्रह्मांड में किसी से नहीं की जा सकती. मां के प्यार, त्याग और बलिदान के लिए आज पूरी दुनिया में मदर्स डे मनाया जाता है. ईटीवी भारत ने ऐसी ही कुछ माताओं के दुख-दर्द को जानने और महसूस करने की कोशिश की है. जिन्हें उनके बच्चों ने ठुकरा दिया है.

अपने बच्चों की प्रताड़ना से तंग आकर वे अब वृद्धाश्रम में शांतिपूर्ण जीवन जी रही हैं. अब ये मांएं अपने घर नहीं जाना चाहतीं. उनका कहना है कि अब मेरा अंतिम संस्कार भी यहीं से होगा. वे सभी वृद्धा आश्रम के संचालक को अपना बेटा मानती हैं. संचालक भी उन्हें अपनी मां मानते हैं और उनकी सेवा करते हैं.

शहर के सरायढेला स्थित वृद्धाश्रम में इन दिनों करीब 12 माताएं रह रही हैं. सबकी नजरें अपनों के जुल्म की कहानी खुद बयां करती हैं. उन्हें देखने से ही उनके चेहरे और आंखों पर दर्द का अहसास होता है.

ईटीवी भारत से बात करते हुए यहां रहने वाली झरिया की विमला देवी ने बताया कि उनके तीन बेटे, बहुएं और चार पोते हैं. पिछले चार साल से वह वृद्धा आश्रम में रह रही हैं. पति की मौत के बाद तीनों बेटे अलग-अलग जगह रहते हैं.

उन्होंने बताया कि उनके तीनों बेटों में एक आसनसोल, एक लाल बंगला और एक गिरिडीह में रहते हैं. वह कहती हैं कि उनकी देखभाल करने वाला कोई नहीं है. अब वह यहीं रहेंगी और यहीं से उनकी अर्थी उठेगी. चार साल में किसी ने उनकी सुध लेने की जहमत तक नहीं उठाई. उनकी सारी धन-सम्पत्ति बेटों ने ले लिया है. उन्होंने कहा कि वृद्धाश्रम के नौशाद मुझे बेटे से भी ज्यादा प्यार करते हैं. अब मैं कहीं नहीं जा रही.

बलियापुर की रहने वाली एक महिला ने बताया कि वह सिर पर टोकरी रखकर सब्जी बेचकर अपने बच्चों का पालन-पोषण करती हैं. बड़े होने पर बच्चों ने उन्हें पीटना शुरू कर दिया. वह अपनी जान देने वाली थीं. लेकिन पुलिस ने उन्हें बहुत समझाया. उन्होंने कहा कि जान देना पाप है. इसके बाद वे उन्हें यहां ले आये. उनका कहना है कि वह घर नहीं जायेंगी, यहीं उनकी अब मौत होगी. हर कोई मेरे लिए मर चुका है.

भालगढ़ निवासी कमली देवी ने बताया कि उनकी बहू-बेटे उनके साथ मारपीट करते थे. उन्होंने उन्हें कभी शांति से नहीं रहने दिया. इसलिए वे वृद्ध आश्रम में रह रही हैंं. पिछले आठ साल से वे वृद्धाश्रम में रह रही हैं. उन्होंने कहा कि मुझे मेरे बेटे के बदले बेटा मिल गया है.

वृद्धाश्रम के संचालक नौशाद गद्दी ने कहा कि जो बच्चे अपने माता-पिता के साथ अच्छा व्यवहार नहीं करते हैं, उन्हें भी बुढ़ापे में यही हश्र झेलना पड़ता है. आज युवा पीढ़ी पढ़-लिखकर अच्छी-अच्छी जगहों पर नौकरी कर रही है. उनके पास पैसा भी है. लेकिन फिर भी वे अपने माता-पिता पर ध्यान नहीं दे पाते हैं. उन्होंने युवा पीढ़ी से अपने माता-पिता को भगवान की तरह मानने और उनकी सेवा करने की अपील की.

वहीं वृद्धाश्रम के सदस्य मधुरेंद्र कुमार सिंह ने कहा कि आज की युवा पीढ़ी फिल्मी अंदाज में जी रही है. यदि बच्चे अपने माता-पिता की देखभाल करें तो वृद्धाश्रम की जरूरत ही नहीं पड़ेगी.

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