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ऑटिस्टिक बेटे की परवरिश के लिए छोड़ दी सरकारी नौकरी, चुनौतियों से जूझकर बनाया काबिल - Mothers Day 2024

'मां' को शब्दों में बांध पाना असंभव है. मां ममता का वो सागर है, जिसमें भावनाएं हिलोरे लेती रहती हैं. कहा जाता है कि अगर ईश्वर को देखना है तो मां को देख लेना चाहिए. मां वो है जो अपनी औलाद के लिए हर चुनौती से लड़ जाती है. आज मातृ दिवस पर Etv भारत पर मिलिए एक ऐसी ही मां से, जिसने अपने बच्चे के लिए हर त्याग किया और हर सीमाएं लांघी...

मदर्स डे स्पेशल
मदर्स डे स्पेशल (Etv Bharat GFX)
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By ETV Bharat Rajasthan Team

Published : May 12, 2024, 6:36 AM IST

प्रतिभा भटनागर से ETV भारत की खास बातचीत (ETV Bharat Jaipur)

जयपुर. मातृत्व का सम्मान करने के लिए हर साल मई के दूसरे रविवार को मातृ दिवस मनाया जाता है. इस वर्ष 12 मई को दुनिया भर में मदर्स डे मनाया जाएगा. मदर्स डे की शुरुआत अन्ना जार्विस ने की थी, जिन्होंने 1907 में माताओं और मातृत्व के सम्मान में मदर्स डे मनाने का विचार दिया था. राष्ट्रीय स्तर पर इस दिन को 1914 में मान्यता दी गई थी. इस खास दिन हम आपको मिलाते हैं प्रतिभा भटनागर से, जिन्होंने ऑटिस्टिक बेटे की देखभाल के लिए सरकारी नौकरी छोड़ दी और बेटे को इस कदर परवरिश दी कि आज वो सरकारी कर्मचारी बन गया.

सरकारी नौकरी बचपन का सपना : प्रतिभा भटनागर कहती हैं कि उनका बचपन से ही सपना आईएएस बनने का था, लेकिन किन्हीं परिस्थितियों की वजह से वह इसके एग्जाम को नहीं दे पाईं. इसके बाद वो अन्य एग्जाम के जरिए सरकारी नौकरी में सिलेक्ट हुईं. सब कुछ अच्छा चल रहा था. शादी हो गई थी. एक बेटी हुई, इसके पांच साल बाद बेटा हुआ. सब खुश थे, लेकिन जैसे-जैसे बेटा अक्षय भटनागर बड़ा होता गया तो उसका व्यवहार सामान्य बच्चों से अलग था. अक्षय काफी चिड़चिड़ा था, बार-बार रोता था, अन्य बच्चों के साथ मिक्सअप नहीं होता था.

प्रतिभा भटनागर
प्रतिभा भटनागर (ETV Bharat File Photo)

पढ़ें. मदर्स डे पर मां को दें ये 5 बेहद खास और अनोखें गिफ्ट, देखते ही खिल जाएगा चेहरा - MOTHERS DAY GIFT 2024

उन्होंने बताया कि जब डॉक्टर को दिखाया तो उन्होंने कहा कि बच्चे की बौद्धिक विकास में कुछ कमी है. इसे केयर करने की जरूरत है. उस समय मेरे सामने यही ऑप्शन था कि या तो सरकारी जॉब छोड़ दी जाए या फिर मेड को बच्चों की देखभाल की जिम्मेदारी दी जाए. ऐसे में उन्होंने नौकरी छोड़ दी और बेटे की परवरिश पर ध्यान दिया. वक्त के साथ अक्षय के व्यवहार में काफी कुछ बदलाव आया, फिर 1996 में पता लगा कि अक्षय ऑटिस्टिक है. उस समय तक ऑटिज्म के बारे में ज्यादा कुछ जागरूकता नहीं थी. डॉक्टर से बात की तब उन्होंने इस बीमारी के बारे में बताया. ऐसे में उन्होंने एक से डेढ़ साल तक स्पीच थेरिपी ली ताकि अक्षय से बात करने में आसानी हो.

ऑटिज्म को मेंटल डिसेबल में मानना गलत : प्रतिभा भटनागर कहती हैं कि शुरुआती दौर में ऑटिज्म को लेकर समाज में अलग तरह की धारणाएं थी और न केवल समाज में बल्कि सरकारी सिस्टम में भी ऑटिज्म को मेंटल डिसेबिलिटी में माना जाता था. ऑटिज्म कोई मानसिक बीमारी नहीं है. इसको लेकर अलग तरह का कानून भी है, जिसमें ऑटिस्टिक को उसके अधिकार दिए गए हैं. प्रतिभा कहती हैं कि यहीं से एक अलग संघर्ष की शुरुआत हुई. अक्षय को पहले स्कूल में, फिर कॉलेज में और उसके बाद सरकारी नौकरी में, हर जगह पर अधिकारों के लिए संघर्ष करना पड़ा. सब जगह कानूनी अधिकार लागू कराए गए, जिसकी बदौलत अक्षय स्कूल और कॉलेज में शिक्षा ले पाया. इसके बाद फिर बात उसके रोजगार के अधिकारों की आई तो हाईकोर्ट में याचिका दायर कर अक्षय के लिए अधिकारों की बात की, तब कोर्ट ने भी माना कि ऑटिज्म कोई मेंटल डिसेबिलिटी नहीं है. इसके बाद अक्षय ने सामान्य बच्चों की तरह कॉम्पिटिशन एग्जाम फाइट कर सचिवालय में एलडीसी के पद पर नौकरी हासिल की.

अक्षय की बचपन की तस्वीर
अक्षय की बचपन की तस्वीर (ETV Bharat File Photo)

पढे़ं. Mother Day Special: सुपोषित मां अभियान से मिल रहा जच्चा-बच्चा को ताकत, 5 हजार महिलाओं को हर महीने देते हैं 'किट'

राज्यपाल से लेकर राष्ट्रपति तक गुहार : प्रतिभा कहती हैं कि ये सब इतना सामान्य नहीं था, 1996 में कोई नियम नहीं थे. ऑटिज्म के बारे में कोई जानता ही नहीं था. इसको मेंटल डिसेबिलिटी माना जाता था. हमारी पहली लड़ाई सरकारी सिस्टम से थी, ऑटिस्टिक बच्चों को मेंटल डिसेबिलिटी वाले सर्टिफिकेट ही जारी होते थे, लेकिन एक लम्बे संघर्ष के बाद 1999 में हमारी जीत हुई. मानवाधिकार आयोग के निर्देश के बाद मेंटल डिसेबिलिटी को अलग माना गया और ऑटिज्म को अलग. 2011 में पता चला कि रोजगार में इनको रिजर्वेशन नहीं है, वह सिर्फ शारीरिक दिव्यांगों को लिए है.

उन्होंने बताया कि हमने हाईकोर्ट में याचिका लगाई और इसके अलावा मुख्यमंत्री से लेकर राज्यपाल और प्रधानमंत्री से लेकर राष्ट्रपति तक गुहार लगाई. पत्र पर पत्र लिखे गए. बहुत लंबा संघर्ष हुआ और आखिरकार 2016 में एक एक्ट आया दिव्यांग अधिकार अधिनियम, जिसमें ऑटिस्टिक को भी रिजर्वेशन मिला. अक्षय राजस्थान का पहला बच्चा है, जिसने ऑटिस्टिक होते हुए सरकारी नौकरी हासिल की. प्रतिभा कहती हैं जब अक्षय सरकारी नौकरी में आया तो इसे अपनी कामयाबी के साथ देखा. उस वक्त लगा कि बेटे की अच्छी देखभाल के लिए नौकरी छोड़ी, लेकिन उसी बेटे ने सरकारी नौकरी हासिल कर उन अधूरे सपनों पूरा कर दिया.

राज्यपाल कलराज मिश्र के साथ प्रतिभा और अक्षय
राज्यपाल कलराज मिश्र के साथ प्रतिभा और अक्षय (ETV Bharat File Photo)

पढे़ं. Pannadhai of Mewar, एक दासी जिसने पराए के लिए अपने बच्चे का किया बलिदान

अक्षय के साथ अन्य बच्चों को मिले अधिकार : प्रतिभा भटनागर कहती हैं कि अक्षय के अधिकारों की लड़ाई लड़ते अब तो एडवोकेसी सीख ली. अभी ऑटिज्म को लेकर जागरूकता नहीं है. खास कर गांव में, जिसकी वजह से इन बच्चों को मेंटल डिसेबल माना जाता है. इनके लिए अभी भी काम करने की जरूरत है. ऑटिज्म को लेकर सरकारी सिस्टम में भी जागरूकता हो, इसको लेकर कर्मचारियों और अधिकारियों को सेमिनार के जरिए अवेयर किया जाता है. प्रतिभा कहती हैं कि इन बच्चों में हो सकता है कि कुछ कमियां हों, लेकिन कुछ खूबियां भी ऐसी हैं जो आप और हममें नहीं हैं. अक्षय इसका उदाहरण है. अक्षय ने पढ़ाई और सरकारी नौकरी के साथ स्पोर्ट्स में भी कई तरह के राज्य स्तरीय, राष्ट्र स्तरीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तरीय प्रतियोगिता में भाग लेकर मेडल जीते हैं.

ये उपलब्धि की हासिल :

  1. अक्षय को राष्ट्रीय स्तर पर कई अवॉर्ड मिल चुके हैं.
  2. राष्ट्रीय पुरस्कार-रोल मॉडल ऑटिज्म -2018
  3. राज्य पुरस्कार रोल मॉडल -2017
  4. केविन केयर एबिलिटी मास्टरी अवार्ड-2019
  5. दिव्यांग रत्न अवार्ड-2018
  6. जयपुर रत्न अवार्ड-2019
  7. राजस्थान चुनाव आयोग की ओर से लोकसभा चुनाव-2019 और विधानसभा चुनाव 2023 के लिए जयपुर जिला आइकन और ब्रांड एंबेसडर के रूप में नामित किया गया.

खेल पदक:

अक्षय भटनागर
अक्षय भटनागर (ETV Bharat Jaipur)
  1. राजस्थान राज्य पैरा एथलेटिक्स चैंपियनशिप 1500 मीटर में स्वर्ण पदक, 400 मीटर में कांस्य पदक-2017
  2. शॉट-पुट में 2019, 2020, 2021, 2022 और 2023 में स्वर्ण पदक
  3. 2 स्वर्ण पदक- तैराकी फ्रीस्टाइल- 50 मीटर और 100 मीटर - 2021 स्टेट पैरा टूर्नामेंट, जोधपुर
  4. राष्ट्रीय: सेरेब्रल पाल्सी के लिए 16वीं राष्ट्रीय पैरा एथलेटिक्स चैंपियनशिप-2020: शॉटपुट में रजत पदक
  5. 4X100 मीटर रिले में कांस्य पदक
  6. शॉट-पुट-2021 में कांस्य पदक
  7. राष्ट्रीय पैरा एथलेटिक्स 2021: शॉट-पुट में कांस्य पदक
  8. अंतर्राष्ट्रीय (ओशिनिया एशियन गेम्स, ब्रिसबेन, ऑस्ट्रेलिया-2022)
  9. रजत पदक: भाला फेंक
  10. स्वर्ण पदक: डिस्कस थ्रो
  11. स्वर्ण पदक: शॉट-पुट थ्रो
  12. अक्षय भटनागर, राजस्थान में ऑटिज्म प्रभावित प्रथम स्नातक (2014)
  13. राजस्थान में ऑटिज्म प्रभावित पहला सरकारी कर्मचारी.

मदर्स डे पर सन्देश : प्रतिभा भटनागर मदर्स डे पर सन्देश देती हैं कि मां वो है जो कभी भी हार नहीं मानती. बच्चों के भविष्य के लिए वो सबसे लड़ जाती है. अगर आपके सामने कोई ऐसा चैलेंज भी आ जाए तो हिम्मत न हारें, अपनी शक्ति जुटाइए और किसी लक्ष्य की ओर आगे बढ़ते रहिए. ईश्वर भी हमारा साथ देता है. कुछ भी इंपॉसिबल नहीं है, अगर आप ठान लें तो दुनिया में हर चीज संभव है.

प्रतिभा भटनागर से ETV भारत की खास बातचीत (ETV Bharat Jaipur)

जयपुर. मातृत्व का सम्मान करने के लिए हर साल मई के दूसरे रविवार को मातृ दिवस मनाया जाता है. इस वर्ष 12 मई को दुनिया भर में मदर्स डे मनाया जाएगा. मदर्स डे की शुरुआत अन्ना जार्विस ने की थी, जिन्होंने 1907 में माताओं और मातृत्व के सम्मान में मदर्स डे मनाने का विचार दिया था. राष्ट्रीय स्तर पर इस दिन को 1914 में मान्यता दी गई थी. इस खास दिन हम आपको मिलाते हैं प्रतिभा भटनागर से, जिन्होंने ऑटिस्टिक बेटे की देखभाल के लिए सरकारी नौकरी छोड़ दी और बेटे को इस कदर परवरिश दी कि आज वो सरकारी कर्मचारी बन गया.

सरकारी नौकरी बचपन का सपना : प्रतिभा भटनागर कहती हैं कि उनका बचपन से ही सपना आईएएस बनने का था, लेकिन किन्हीं परिस्थितियों की वजह से वह इसके एग्जाम को नहीं दे पाईं. इसके बाद वो अन्य एग्जाम के जरिए सरकारी नौकरी में सिलेक्ट हुईं. सब कुछ अच्छा चल रहा था. शादी हो गई थी. एक बेटी हुई, इसके पांच साल बाद बेटा हुआ. सब खुश थे, लेकिन जैसे-जैसे बेटा अक्षय भटनागर बड़ा होता गया तो उसका व्यवहार सामान्य बच्चों से अलग था. अक्षय काफी चिड़चिड़ा था, बार-बार रोता था, अन्य बच्चों के साथ मिक्सअप नहीं होता था.

प्रतिभा भटनागर
प्रतिभा भटनागर (ETV Bharat File Photo)

पढ़ें. मदर्स डे पर मां को दें ये 5 बेहद खास और अनोखें गिफ्ट, देखते ही खिल जाएगा चेहरा - MOTHERS DAY GIFT 2024

उन्होंने बताया कि जब डॉक्टर को दिखाया तो उन्होंने कहा कि बच्चे की बौद्धिक विकास में कुछ कमी है. इसे केयर करने की जरूरत है. उस समय मेरे सामने यही ऑप्शन था कि या तो सरकारी जॉब छोड़ दी जाए या फिर मेड को बच्चों की देखभाल की जिम्मेदारी दी जाए. ऐसे में उन्होंने नौकरी छोड़ दी और बेटे की परवरिश पर ध्यान दिया. वक्त के साथ अक्षय के व्यवहार में काफी कुछ बदलाव आया, फिर 1996 में पता लगा कि अक्षय ऑटिस्टिक है. उस समय तक ऑटिज्म के बारे में ज्यादा कुछ जागरूकता नहीं थी. डॉक्टर से बात की तब उन्होंने इस बीमारी के बारे में बताया. ऐसे में उन्होंने एक से डेढ़ साल तक स्पीच थेरिपी ली ताकि अक्षय से बात करने में आसानी हो.

ऑटिज्म को मेंटल डिसेबल में मानना गलत : प्रतिभा भटनागर कहती हैं कि शुरुआती दौर में ऑटिज्म को लेकर समाज में अलग तरह की धारणाएं थी और न केवल समाज में बल्कि सरकारी सिस्टम में भी ऑटिज्म को मेंटल डिसेबिलिटी में माना जाता था. ऑटिज्म कोई मानसिक बीमारी नहीं है. इसको लेकर अलग तरह का कानून भी है, जिसमें ऑटिस्टिक को उसके अधिकार दिए गए हैं. प्रतिभा कहती हैं कि यहीं से एक अलग संघर्ष की शुरुआत हुई. अक्षय को पहले स्कूल में, फिर कॉलेज में और उसके बाद सरकारी नौकरी में, हर जगह पर अधिकारों के लिए संघर्ष करना पड़ा. सब जगह कानूनी अधिकार लागू कराए गए, जिसकी बदौलत अक्षय स्कूल और कॉलेज में शिक्षा ले पाया. इसके बाद फिर बात उसके रोजगार के अधिकारों की आई तो हाईकोर्ट में याचिका दायर कर अक्षय के लिए अधिकारों की बात की, तब कोर्ट ने भी माना कि ऑटिज्म कोई मेंटल डिसेबिलिटी नहीं है. इसके बाद अक्षय ने सामान्य बच्चों की तरह कॉम्पिटिशन एग्जाम फाइट कर सचिवालय में एलडीसी के पद पर नौकरी हासिल की.

अक्षय की बचपन की तस्वीर
अक्षय की बचपन की तस्वीर (ETV Bharat File Photo)

पढे़ं. Mother Day Special: सुपोषित मां अभियान से मिल रहा जच्चा-बच्चा को ताकत, 5 हजार महिलाओं को हर महीने देते हैं 'किट'

राज्यपाल से लेकर राष्ट्रपति तक गुहार : प्रतिभा कहती हैं कि ये सब इतना सामान्य नहीं था, 1996 में कोई नियम नहीं थे. ऑटिज्म के बारे में कोई जानता ही नहीं था. इसको मेंटल डिसेबिलिटी माना जाता था. हमारी पहली लड़ाई सरकारी सिस्टम से थी, ऑटिस्टिक बच्चों को मेंटल डिसेबिलिटी वाले सर्टिफिकेट ही जारी होते थे, लेकिन एक लम्बे संघर्ष के बाद 1999 में हमारी जीत हुई. मानवाधिकार आयोग के निर्देश के बाद मेंटल डिसेबिलिटी को अलग माना गया और ऑटिज्म को अलग. 2011 में पता चला कि रोजगार में इनको रिजर्वेशन नहीं है, वह सिर्फ शारीरिक दिव्यांगों को लिए है.

उन्होंने बताया कि हमने हाईकोर्ट में याचिका लगाई और इसके अलावा मुख्यमंत्री से लेकर राज्यपाल और प्रधानमंत्री से लेकर राष्ट्रपति तक गुहार लगाई. पत्र पर पत्र लिखे गए. बहुत लंबा संघर्ष हुआ और आखिरकार 2016 में एक एक्ट आया दिव्यांग अधिकार अधिनियम, जिसमें ऑटिस्टिक को भी रिजर्वेशन मिला. अक्षय राजस्थान का पहला बच्चा है, जिसने ऑटिस्टिक होते हुए सरकारी नौकरी हासिल की. प्रतिभा कहती हैं जब अक्षय सरकारी नौकरी में आया तो इसे अपनी कामयाबी के साथ देखा. उस वक्त लगा कि बेटे की अच्छी देखभाल के लिए नौकरी छोड़ी, लेकिन उसी बेटे ने सरकारी नौकरी हासिल कर उन अधूरे सपनों पूरा कर दिया.

राज्यपाल कलराज मिश्र के साथ प्रतिभा और अक्षय
राज्यपाल कलराज मिश्र के साथ प्रतिभा और अक्षय (ETV Bharat File Photo)

पढे़ं. Pannadhai of Mewar, एक दासी जिसने पराए के लिए अपने बच्चे का किया बलिदान

अक्षय के साथ अन्य बच्चों को मिले अधिकार : प्रतिभा भटनागर कहती हैं कि अक्षय के अधिकारों की लड़ाई लड़ते अब तो एडवोकेसी सीख ली. अभी ऑटिज्म को लेकर जागरूकता नहीं है. खास कर गांव में, जिसकी वजह से इन बच्चों को मेंटल डिसेबल माना जाता है. इनके लिए अभी भी काम करने की जरूरत है. ऑटिज्म को लेकर सरकारी सिस्टम में भी जागरूकता हो, इसको लेकर कर्मचारियों और अधिकारियों को सेमिनार के जरिए अवेयर किया जाता है. प्रतिभा कहती हैं कि इन बच्चों में हो सकता है कि कुछ कमियां हों, लेकिन कुछ खूबियां भी ऐसी हैं जो आप और हममें नहीं हैं. अक्षय इसका उदाहरण है. अक्षय ने पढ़ाई और सरकारी नौकरी के साथ स्पोर्ट्स में भी कई तरह के राज्य स्तरीय, राष्ट्र स्तरीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तरीय प्रतियोगिता में भाग लेकर मेडल जीते हैं.

ये उपलब्धि की हासिल :

  1. अक्षय को राष्ट्रीय स्तर पर कई अवॉर्ड मिल चुके हैं.
  2. राष्ट्रीय पुरस्कार-रोल मॉडल ऑटिज्म -2018
  3. राज्य पुरस्कार रोल मॉडल -2017
  4. केविन केयर एबिलिटी मास्टरी अवार्ड-2019
  5. दिव्यांग रत्न अवार्ड-2018
  6. जयपुर रत्न अवार्ड-2019
  7. राजस्थान चुनाव आयोग की ओर से लोकसभा चुनाव-2019 और विधानसभा चुनाव 2023 के लिए जयपुर जिला आइकन और ब्रांड एंबेसडर के रूप में नामित किया गया.

खेल पदक:

अक्षय भटनागर
अक्षय भटनागर (ETV Bharat Jaipur)
  1. राजस्थान राज्य पैरा एथलेटिक्स चैंपियनशिप 1500 मीटर में स्वर्ण पदक, 400 मीटर में कांस्य पदक-2017
  2. शॉट-पुट में 2019, 2020, 2021, 2022 और 2023 में स्वर्ण पदक
  3. 2 स्वर्ण पदक- तैराकी फ्रीस्टाइल- 50 मीटर और 100 मीटर - 2021 स्टेट पैरा टूर्नामेंट, जोधपुर
  4. राष्ट्रीय: सेरेब्रल पाल्सी के लिए 16वीं राष्ट्रीय पैरा एथलेटिक्स चैंपियनशिप-2020: शॉटपुट में रजत पदक
  5. 4X100 मीटर रिले में कांस्य पदक
  6. शॉट-पुट-2021 में कांस्य पदक
  7. राष्ट्रीय पैरा एथलेटिक्स 2021: शॉट-पुट में कांस्य पदक
  8. अंतर्राष्ट्रीय (ओशिनिया एशियन गेम्स, ब्रिसबेन, ऑस्ट्रेलिया-2022)
  9. रजत पदक: भाला फेंक
  10. स्वर्ण पदक: डिस्कस थ्रो
  11. स्वर्ण पदक: शॉट-पुट थ्रो
  12. अक्षय भटनागर, राजस्थान में ऑटिज्म प्रभावित प्रथम स्नातक (2014)
  13. राजस्थान में ऑटिज्म प्रभावित पहला सरकारी कर्मचारी.

मदर्स डे पर सन्देश : प्रतिभा भटनागर मदर्स डे पर सन्देश देती हैं कि मां वो है जो कभी भी हार नहीं मानती. बच्चों के भविष्य के लिए वो सबसे लड़ जाती है. अगर आपके सामने कोई ऐसा चैलेंज भी आ जाए तो हिम्मत न हारें, अपनी शक्ति जुटाइए और किसी लक्ष्य की ओर आगे बढ़ते रहिए. ईश्वर भी हमारा साथ देता है. कुछ भी इंपॉसिबल नहीं है, अगर आप ठान लें तो दुनिया में हर चीज संभव है.

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