इंदौर : मध्य प्रदेश में भगवान विष्णु की सबसे अनोखी और अद्भुत प्रतिमा दर्शन के लिए रखी गई. 22 टन वजनी इस पंच धातु की प्रतिमा को इंदौर के रजवाड़ा में दर्शन के लिए रखा गया था, जिसके बाद महाराष्ट्र के शहादा में भगवान विष्णु की इस अनोखी प्रतिमा को स्थापना के लिए शोभायात्रा के साथ रवाना किया गया. जहां मकर संक्रांति पर प्रतिमा की स्थापना शुरू हुई.
शेषशैया में भगवान विष्णु, 24 करोड़ मूर्ति की लागत
रजवाड़ा में देश की इस सबसे अद्भुत विष्णु प्रतिमा के दर्शन करने भारी भीड़ उमड़ी. शेषशैया में विराजे भगवान विष्णु के इस अनोखे रूप के दर्शन कर इंदौरवासी मंत्रमुग्ध हो गए. भक्त तुलसी दल लेकर भगवान को अर्पित करते दिखे. इस दौरान अष्टधातु से बनी प्रतिमा इस तरह चमक रही थी मानों भगवान विष्णु खुद भक्तों को आशीर्वाद दे रहे हों. इस दौरान पूरा रजवाड़ा मंत्रोच्चार से गूंजता रहा. समिति की ओर से राजपाल सिंह सिसोदिया ने बताया कि इस प्रतिमा की लागत 24 करोड़ रु है.
कहां होंगे इस अद्भुत विष्णु प्रतिमा के दर्शन?
भाजपा प्रदेश प्रवक्ता व आयोजन समिति के सदस्य राजपाल सिंह सिसोदिया ने बताया, '' इस प्रतिमा को श्री नारायणपुरम तीर्थ शहादा ने तैयार कराया है. पंचधातु की इस 11 फीट लंबी प्रतिमा की लागत 24 करोड़ रु से ज्यादा है, जो इसे भारत में सबसे अनोखी विष्णु प्रतिमा बनाता है. इसे इंदौर में दर्शन मात्र के लिए लाया गया था और महाराष्ट्र के शहादा में स्थापित किया गया है.''
प्रतिमा में ब्रह्मा, विष्णु और महेश एकसाथ
इस पंचधातु की प्रतिमा की सबसे खास बात यह भी है कि यह केवल भगवान विष्णु की प्रतिमा नहीं है. इस एक ही प्रतिमा में त्रिदेव यानी ब्रह्मा, विष्णु और महेश एकसाथ मौजूद हैं. इस प्रतिमा में भगवान श्री हरि हाथ में पुष्प लिए महादेव की आराधना करते नजर आ रहे हैं. वहीं उनकी नाभि से निकले कमल में सृष्टि के रचयिता ब्रह्मा विराजमान हैं. इतना ही नहीं भगवान विष्णु के चरणों में माता लक्ष्मी की प्रतिमा भी स्थापित है और सामने गरुड़ भी नजर आते हैं.
ढाई साल में बनी ये प्रतिमा
गौरतलब है कि इस प्रतिमा को मध्य प्रदेश और राजस्थान में कई कलाकारों ने मिलकर बनाया है. पहले मिट्टी, फिर फाइबर का मॉडल बनाने के बाद इस पंचधातु प्रतिमा का निर्माण किया गया. इसकी फिनिशिंग में ढाई साल का वक्त लगा है. दर्शन के लिए रखे जाने के बाद इस विष्णु प्रतिमा को राजवाड़ा से शोभायात्रा निकालते हुए शाहदा रवाना किया गया और मकर संक्रांति पर प्रतिमा की यहां स्थापना हुई.
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