प्रयागराज : इलाहाबाद हाईकोर्ट ने प्रदेश के उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य के खिलाफ दाखिल दिवाकर नाथ त्रिपाठी की निगरानी याचिका खारिज कर दी है. कोर्ट ने याचिका खारिज करते हुए कहा कि याची ने अर्जी दाखिल करने में अनावश्यक का विलंब किया है तथा इस विलंब का उसने कोई भी ठोस कारण नहीं बताया है.
याचिका पर न्यायमूर्ति समित गोपाल ने सुनवाई की. दिवाकर नाथ त्रिपाठी ने उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य पर कई प्रकार के आरोप लगाते हुए उनके शैक्षणिक दस्तावेजों और चुनाव में गलत घोषणा पत्र भरने आदि में दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 156(3) के तहत अवर न्यायालय में अर्जी दाखिल की थी. जिसे कोर्ट ने 4 सितंबर 2021 को खारिज कर दिया था. इसके खिलाफ दिवाकर त्रिपाठी ने उच्च न्यायालय में निगरानी याचिका दाखिल की. हाईकोर्ट रजिस्ट्री की रिपोर्ट के मुताबिक याचिका दाखिल करने में 327 दिन का विलंब किया गया. याची की ओर से विलंब की अवधि माफ करने के लिए अर्जी दाखिल की गई. जिसमें कहा गया कि यह विलंब जानबूझकर नहीं किया गया है, बल्कि परिस्थितियवश हुआ है.
याची ने पहले हाईकोर्ट में धारा 482 के तहत प्रार्थना पत्र दाखिल किया था, जिससे कि उसने स्वयं ही यह कहते हुए वापस कर लिया कि वह अपने पास उपलब्ध अन्य विधिक उपचार प्राप्त करना चाहता है. इसके पश्चात उसने लगभग एक वर्ष बाद निगरानी याचिका प्रस्तुत की. विलंब क्षमा करने के लिए उसने दलील दी की उसने हाईकोर्ट में निगरानी दाखिल करने के लिए अवर न्यायालय के आदेश की प्रमाणित प्रतिलिपि प्राप्त हेतु आवेदन किया था. प्रमाणित प्रतिलिपि उसे 2 फरवरी 2023 को मिली. इसके बाद याची बीमार पड़ गया और डेंगू से पीड़ित होने के कारण वह बेड रेस्ट पर था. ठीक होने के उपरांत उसने यह याचिका दाखिल की है.
राज्य सरकार की ओर से अपर महाधिवक्ता एम सी चतुर्वेदी और शासकीय अधिवक्ता एके संड ने याचिका का विरोध करते हुए कहा कि याची की ओर से विलंब का कोई उचित कारण नहीं बताया गया है. याचिका बिना किसी कारण के दाखिल की गई है तथा यह मियाद अधिनियम से बाधित है. कोर्ट ने याचिका खारिज करते हुए कहा कि याची द्वारा विलंब माफी के लिए दी गई अर्जी में कोई गंभीरता नहीं है. जिस प्रकार से उसने पहले धारा 482 के तहत प्रार्थना पत्र दाखिल किया, फिर उसे खुद ही वापस ले लिया और विलंब से याचिका दाखिल करने का जो कारण बताया है, उसमें कोई तथ्यात्मक बात नहीं है. याची ने अवर न्यायालय की प्रमाणित प्रतिलिपि प्राप्त करने के लिए किस तारीख को आवेदन किया था, यह भी नहीं बताया है. याची खुद को समाजसेवक व आरटीआई एक्टिविस्ट बताता है, उससे इस प्रकार की लापरवाही की उम्मीद नहीं की जा सकती है. कोर्ट ने विलंब माफी की कोई ठोस वजह न पाते हुए याचिका खारिज कर दी है.
यह भी पढ़ें : सेल्फ डिफेंस में पिस्टल से फायर करना लाइसेंस शर्त का उल्लंघन नहीं: High Court
यह भी पढ़ें : हाईकोर्ट ने कहा- किशोरों के प्रेम संबंध को अपराध मानना पोक्सो एक्ट का मकसद नहीं