प्रयागराज: इलाहाबाद हाई कोर्ट ने स्पष्ट किया है कि बैंक खाते में नामांकित व्यक्ति (नामिनी) ही खाताधारक की मृत्यु के बाद बैंक से धन प्राप्त करने का अधिकारी है, लेकिन प्राप्त धन उत्तराधिकार कानूनों के अधीन होगा. मृतक के उत्तराधिकारियों को इस राशि पर अधिकार होगा. न्यायालय ने बैंक ऑफ बड़ौदा को तीन सप्ताह के भीतर याचिकाकर्ता के पक्ष में सशर्त एफडीआर की धन राशि जारी करने का आदेश दिया.
यह आदेश न्यायमूर्ति शेखर बी. सराफ और न्यायमूर्ति विपिन चंद्र दीक्षित की खंडपीठ ने मनोज कुमार शर्मा की याचिका पर दिया. याचिका में कहा गया कि नामांकित व्यक्ति के रूप में वह सावधि जमा रसीदों (एफडीआर) से बैंकिंग विनियमन अधिनियम, 1949 की धारा 45जेडए के अनुसार धन प्राप्त करने के हकदार है. याची की मां की आठ फरवरी, 2020 को मृत्यु हो गई थी. वह उनके बैंक आफ बड़ौदा में खोले गए एफडीआर खातों में जमा राशि नामांकित व्यक्ति और कानूनी उत्तराधिकारी हैं.
सिविल जज (सीनियर डिवीजन)/एफटीसी, मुरादाबाद ने उनका उत्तराधिकार मुकदमा इस आधार पर खारिज कर दिया गया था कि याची की मां की कथित वसीयत रद करने के लिए एक अन्य मुकदमा लंबित था. निजी उत्तरदाताओं और राज्य की ओर से पेश वकील ने कहा कि 1949 अधिनियम की धारा 45 जेडए हालांकि नामांकित व्यक्ति को बैंक से धन प्राप्त करने का अधिकार देती है, लेकिन प्रविधान उत्तराधिकार के कानूनों को खारिज नहीं कर सकता. तर्क दिया गया कि भले ही याचिकाकर्ता को पैसा देने की आवश्यकता हो, लेकिन इसे मृतक के कानूनी उत्तराधिकारियों के लिए ट्रस्ट के रूप में रखना होगा.
याची के वकील ने अदालत को आश्वस्त किया कि वह पैसे को ट्रस्ट में रखेगा और अदालत के उपरांत कानूनी उत्तराधिकारियों को भुगतान के लिए उत्तरदायी होगा. याची को बैंक ऑफ बड़ौदा के समक्ष इस आशय का हलफनामा दायर करने का निर्देश दिया गया है, जिसमें वह यह वचन देगा कि उसे जो पैसा मिल रहा है, उसे वह ट्रस्ट में रखा गया है और निर्णय होने पर कानूनी उत्तराधिकारियों को इसका भुगतान करेगा.
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